मप्र: पहाड़ के ऊपर स्कूल बना दिया, बोले बच्चे तंदुरुस्त रहेंगे | NATIONAL NEWS

Bhopal Samachar
भोपाल। मध्य प्रदेश के दमोह जिले की पथरिया तहसील में शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने एक प्राइमरी स्कूल को पहाड़ के ऊपर शिफ्ट कर दिया। जब इस शिफ्टिंग का विरोध किया गया तो अधिकारियों ने तर्क दिया कि रोज पहाड़ चढ़ने से बच्चे तंदुरुस्त रहेंगे। यदि पहाड़ चढ़ते समय कोई हादसा हो जाता है तब क्या होगा। इस प्रश्न का कोई जवाब नहीं दिया और फाइल क्लोज कर दी। मजेदार बात यह है कि जांच के दौरान 15 अभिभावकों के बयान दर्ज किए गए लेकिन इनमें से 10 नाम ऐसे हैं जिनके बच्चे स्कूल में पढ़ते ही नहीं है।

आधा किलो मीटर का पहाड़, 200 सीढ़ियां फिर आता है स्कूल

दमोह। जिले के पथरिया तहसील से एक ऐसा मामला प्रकाश में आया है, जिसे देख कर लगता है, कि सिस्टम को मासूम बच्चो से ज्यादा फिक्र न होकर स्वयं की सुविधा से है। पथरिया तहसील में स्थित सिद्ध पहाड़ी पर शासकीय प्राथमिक शाला संचालित है, जहां दो शिक्षक और शाला में दर्ज छात्रों की संख्या 34 है। पहाड़ी पर मन्दिर, भवन तो है पर आवास/रहवास पहाड़ी के नीचे है, जहां से छोटे बच्चे दुर्गम रास्ते, 200 के लगभग सीढ़िया औऱ लगभग आधा किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल पहुंचते है। 

पर्वतारोहण के लिए सुरक्षा के इंतजाम होते हैं, परंतु यहां बच्चे लावारिस हैं 

भारत में पर्वतारोहण के लिए नियम बने हुए हैं। आयोजक को पर्वतारोहियों की सुरक्षा के इंतजाम करने होते हैं। शिक्षा विभाग ने 34 बच्चों को पर्वतारोही बना रखा है। वह रोज पहाड़ चढ़ते हैं, उनकी पीठ पर स्कूल बैग होता है परंतु सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं है। शिक्षा विभाग में बच्चों को लावारिस छोड़ रखा है। वह जान हथेली पर लेकर पढ़ने जाते हैं।

मामला मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग तक आया था

स्थानीय लोगों ने इस संबंध में मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग भोपाल को जानकारी प्रदान की गई, जिस पर संज्ञान लिया गया और दमोह जिले के शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने उस स्कूल से संबंधित एक प्रतिवेदन बना कर माननीय आयोग को भेजा। इस प्रतिवेदन को माननीय मानव अधिकार आयोग ने दमोह जिले के आयोगमित्र धीरज जॉनसन को अभिमत के लिये प्रेषित किया, जिसे आयोगमित्र द्वारा अभिमत सहित भेज दिया गया है। 

शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने कहा: बच्चों को पहाड़ चढ़ने में आनंद आता है इसलिए स्कूल ट्रांसफर नहीं करेंगे

इस संबंध में आयोगमित्र धीरज जॉनसन का कहना है कि यह बच्चो के अधिकार, स्वास्थ्य, सुरक्षा औऱ उनके भविष्य से जुड़ा हुआ मामला है, जिसे नजरअंदाज नही किया जा सकता। शिक्षा विभाग ने जो प्रतिवेदन आयोग को भेजा है, उसकी जानकारी के अनुसार शिक्षा विभाग ने पहाड़ी पर स्थित स्कूल में चौपाल लगाई और रिपोर्ट तैयार की जिसमे बताया गया कि, अभिभावकों के अनुसार बच्चे तंदरुस्त है उन्हें सीढ़िया चढ़ने में आनन्द आता है इसलिये शाला स्थानांतरित न की जाए, कि सहमति दी गई।

शिक्षा विभाग के प्रतिवेदन में 15 अभिभावकों के हस्ताक्षर, 10 फर्जी

इस निरीक्षण के दौरान 15 अभिभावकों ने हस्ताक्षर किए व बीआरसी,डीपीसी व स्कूल के प्रधानाध्यापक ने भी हस्तक्षरित किए, परंतु जब जानकारी इकट्ठा की गई तो पता चला कि स्कूल में 34 बच्चे दर्ज है, कुछ परिवारों के दो- दो या तीन बच्चो का भी यहाँ एडमिशन है, अतः कुल 19 परिवारों के बच्चे इस स्कूल में दर्ज है औऱ निरीक्षण के दौरान 15 अभिभावकों ने पहाड़ी पर स्कूल लगने की सहमति दी है, परन्तु जब बच्चो की समग्र आई डी से उनके अभिभावकों के नाम का मिलान किया गया, जिन्होंने चौपाल के दौरान हस्ताक्षर किया थे तो सिर्फ 05 नाम ऐसे मिले जो बच्चो के अभिभावकों के नाम से मिलान हो रहे थे, बाकी 10 नाम पर संशय कि स्थिति है, क्योकि बच्चो की समग्र आईडी औऱ परिवार की समग्र आईडी देखने पर नामो का मिलान नही हुआ।

क्यों जिद पर अड़े हैं अधिकारी, फायदा कैसे हो रहा है

शोध का विषय यह है कि यह स्कूल जो संज्ञान के पहले तक, एक परिसर में लगता था, जिसे आनन फानन में पहाड़ी पर बने भवन में स्थानांतरित किया गया,पर नगर में होने के बावजूद छात्र संख्या का कम होना और प्रतिदिन सभी बच्चो की उपस्थिति न होने से किसे फायदा और किसे नुकसान इसका अध्ययन अभी बाकी है।

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