नई दिल्ली। महामारी को फैलने से रोकने के लिए देश भर में किए गए 21 दिनों के लॉकडाउन के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है, जिसमें केंद्र सरकार को संविधान के अनुच्छेद 360 के तहत 'वित्तीय आपातकाल' घोषित करने का निर्देश देने की मांग की गई है।
थिंक-टैंक सेंटर फॉर एकाउंटेबिलिटी एंड सिस्टमिक चेंज (CASC) द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि लॉकडाउन को CrPC की धारा 144 या आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत अधिसूचना या महामारी रोग अधिनियम 1897 के प्रावधानों के अनुसार प्रबंधित नहीं किया जा सकता। याचिका में कहा गया है कि यह एक वैश्विक महामारी है जिससे जिला स्तर पर नहीं निपटा जा सकता बल्कि इससे जनता और सरकार को मिलकर लड़ना चाहिए।
याचिका में कहा गया है कि यह स्वतंत्र भारत की सबसे बड़ी आपात स्थिति है और इसे केंद्र और राज्य सरकारों के बीच एकीकृत आदेश के अनुसार संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार संबोधित किया जाना चाहिए। इसके लिए न केवल कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई जीतना आवश्यक होगा, बल्कि लॉकडाउन समाप्त होने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था की रिकवरी भी होगी। याचिका में आगे कहा गया है कि पीएम द्वारा 21 दिनों के लिए देशव्यापी लॉक डाउन की घोषणा करने के बाद गृह मंत्रालय द्वारा आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत 24.03.2020 को आदेश जारी किए गए, लेकिन विभिन्न राज्यों और पुलिस अधिकारियों द्वारा अपने तौर पर दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 144 के तहत कार्रवाई की जा रही है।
विभिन्न प्राधिकरणों द्वारा उठाए गए कदमों का विचलन अराजकता का कारण बन रहा है। लॉकडाउन के कारण, आर्थिक गतिविधियों एक ठहराव आ गया है। वित्तमंत्री द्वारा 1.7 लाख करोड़ की घोषणा की गई है। इस वित्तीय पैकेज के बेहतर उपयोग के लिए वित्तीय आपातकाल घोषित करना होगा। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से भारत के संविधान के अनुच्छेद 360 के अनुसार देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का निर्देश देने की प्रार्थना की। अंतरिम उपाय के रूप में याचिकाकर्ता ने निम्न प्रार्थना की।
i) उपयोगी सेवा बिलों के कलेक्शन (बिजली, पानी, गैस, टेलीफोन, इंटरनेट) और लॉकडाउन अवधि के दौरान देय ईएमआई भुगतान के निलंबन के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश दिए जाएं।
ii) गृह मंत्रालय के निर्देशों का कड़ाई से अनुपालन करने के लिए राज्य पुलिस और स्थानीय अधिकारियों को निर्देशित करें ताकि आवश्यक सेवाएं बाधित न हों।
वित्तीय आपात क्या है?
अब हम वित्तीय आपात को संक्षिप्त रूप एवं कम शब्दों मे समझते है -: भारतीय संविधान के भाग 18, के अनुच्छेद 360 में वित्तीय आपात के बारे मे परिभाषित किया गया है, अनुच्छेद 360 की उपधारा(1). यदि राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता हैं कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई हैं, जिससे भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग का वित्तीय स्थायित्व या प्रत्यय संकट में हैं तो वह उद्द्घोषणा द्वारा उपधारा2 में खंड(1) के अधीन उद्द्घोषणा बताई गई हैं , उपधारा(3). संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार किसी राज्य को वित्तीय औचित्य संबंधी ऐसे सिद्धान्तों का पालन करने के लिए निदेश देने तक, जो निदेशों में विनिद्रिष्ट किए जाएं, और ऐसे अन्य निदेश देने तक होगा जिन्हें राष्ट्रपति उस प्रयोजन के लिए देना आवश्यक ओर पर्याप्त समझे।।
उपधारा(4) क-: (i). किसी राज्य के कार्यकलाप के संबंध में सेवा करने वाले सभी या किसी वर्ग के व्यक्तियों के वेतनों और भत्तों में कमी की अपेक्षा करने वाला उपबंध,(ii). धन विधेयक या अन्य विधेयक को जिनका अनुच्छेद 207 के उपबंध लागू होते है, राज्य के विधान मंडल द्वारा पारित किए जाने के पश्चात राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखने के लिए उपबंध।
(ख):- राष्ट्रपति उस अवधि के दौरान जिसमें इस अनुच्छेद के अधीन की गई उद्द्घोषणा प्रवृत्त रहतीं हैं, संघ के कार्यकलाप के संबंध में सेवा करने वाले सभी या किसी वर्ग के व्यक्तियों के, जिनके अंतर्गत उच्चतम न्यायालय ओर उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश हैं, वेतनों ओर भत्तो में कमी करने के लिए निदेश देने के लिए सक्षम होगा।।
बी. आर. अहिरवार(पत्रकार एवं लॉ छात्र) मोब. 9827737665*
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