भोपाल। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने ग्रामीण आजीविका मिशन अंतर्गत कार्यरत संविदा कर्मचारियों के लिए प्रत्यायोजन संबंधी आदेश जारी किया है, जिसे मप्र राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन कर्मचारी संघ ने विरोध करते हुए इसे शोषण की दमनकारी नीति बताई है। संगठन के अध्यक्ष लीलाधर अहिरवार ने पत्र में कहा कि सरकार ने इस आदेश को वापस नहीं लिया तो विधानसभा सत्र के दौरान सभी मिशन कर्मचारियों द्वारा सामूहिक रूप से त्यागपत्र मुख्यमंत्री को सौंपा जाएगा।
पत्र में उल्लेख किया कि कर्मचारियों ने प्रथम नियुक्ति के समय प्रचलित संविदा नीति का 500 रुपये के नान-ज्यूडिशियल स्टॉम्प पर बॉड निष्पादित कर रखा है। इसमें कहीं पर भी नहीं लिखा कि प्रतिवर्ष 500 रुपये के स्टॉम्प पर बॉंड निष्पादित करना होगा, फिर हम नई नीति स्वीकार क्यों करें। प्रथम नियुक्ति के समय जो शर्ते लागू थीं, उसमें एक जिले से दूसरे जिले में स्थान परिवर्तन होने पर नवीन अनुबंध निष्पादित करने का कही पर भी उल्लेख नहीं है। मप्र शासन 5 जून 2018 संविदा नीति के तहत संविदा कर्मचारियों की उम्र 62 वर्ष कर चुकी है, तो फिर भी संविदा कर्मचारियों की लगातार सेवायें समाप्त की जा रही हैं।
प्रति एक वर्ष (1 अप्रैल से 31 मार्च तक) के लिए अनुबंध करने से क्या अभिप्राय है। जब शासन नीतिगत निर्णय लेने में सक्षम है तो पदनाम परिवर्तन संबंधी अनार्थिक मांग (समूह प्रेरक के स्थान पर सहायक विकास खंड प्रबंधक) को इस पत्र में शामिल क्यों नहीं किया। उन्होंने कहा कि यदि सरकार की सोच ग्रामीण आजीविका मिशन के संविदा कर्मचारियों के प्रति ठीक होती तो इस प्रकार का पत्र जारी नहीं करते। हालही में निकाले गए आदेश से कर्मचारियों में आक्रोश है। सरकार को कर्मचारियों के हित में निर्णय लेना चाहिए।