राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम 1980, देश की सुरक्षा के लिए सरकार को अधिक शक्ति देने से संबंधित एक कानून है। यह कानून केंद्र और राज्य सरकार को किसी भी संदिग्ध नागरिक को हिरासत में लेने की शक्ति देता है।
जानिए कब बना था राष्ट्रीय सुरक्षा कानून
हमारे देश में कई प्रकार के कानून बनाए गए हैं। ये सभी कानून अलग-अलग स्थिति में लागू किए जाते हैं। इन्हीं मे से एक कानून हैं रा.सु.का.यानि राष्ट्रीय सुरक्षा कानून। 23 सितंबर, 1980 को भारत सरकार द्वारा इसे बनाया गया था। ये कानून देश की सुरक्षा प्रदान करने के लिए सरकार को अधिक शक्ति देने से संबंधित है। यह कानून केंद्र और राज्य सरकार को संदिग्ध व्यक्ति को हिरासत में लेने की शक्ति देता है।।
कैसे होती हैं नागरिकों की गिरफ्तारी
अगर सरकार को लगता कि कोई व्यक्ति उसे देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने वाले कार्यों को करने से रोक रहा है , तो वह उसे गिरफ्तार करने की शक्ति दे सकती है। सरकार को ये लगे कि कोई व्यक्ति कानून-व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने में उसके सामने बाधा खड़ा कर रहा है तो वह उसे गिरफ्तार करने का आदेश दे सकती है। साथ ही, अगर उसे लगे कि वह व्यक्ति आवश्यक सेवा की आपूर्ति में बाधा बन रहा है तो वह उसे गिरफ्तार करवा सकती है। इस कानून के तहत जमाखोरों की भी गिरफ्तारी की जा सकती है। इस कानून का उपयोग जिलाधिकारी, पुलिस आयुक्त, राज्य सरकार अपने सीमित दायरे में भी कर सकती है।
विदेशी नागरिक को भी गिरफ्तार किया जा सकता हैं
अगर सरकार को ये लगे तो कोई व्यक्ति अनावश्यक रूप से देश में रह रहा है और उसे गिरफ्तारी की नौबत आ रही है तो वह उसे गिरफ्तार करवा सकती है।
गिरफ्तारी की समय-सीमा
कानून के तहत किसी व्यक्ति को पहले तीन महीने के लिए गिरफ्तार किया जा सकता है। फिर, आवश्यकतानुसार, तीन-तीन महीने के लिए गिरफ्तारी की अवधि बढ़ाई जा सकती है। एक बार में तीन महीने से अधिक की अवधि नहीं बढ़ाई जा सकती है। अगर, किसी अधिकारी ने ये गिरफ्तारी की हो तो उसे राज्य सरकार को बताना होता है कि उसने किस आधार पर ये गिरफ्तारी की है। जब तक राज्य सरकार इस गिरफ्तारी का अनुमोदन नहीं कर दे, तब तक यह गिरफ्तारी बारह दिन से ज्यादा समय तक नहीं हो सकती है। अगर यह अधिकारी पांच से दस दिन में जवाब दाखिल करता है तो इस अवधि को बारह की जगह पंद्रह दिन की जा सकती है। अगर रिपोर्ट को राज्य सरकार स्वीकृत कर देती है तो इसे सात दिनों के भीतर केंद्र सरकार को भेजना होता है। इसमें इस बात का जिक्र करना आवश्यक है कि किस आधार पर यह आदेश जारी किया गया और राज्य सरकार का इस पर क्या विचार है और यह आदेश क्यों जरूरी है।
गिरफ्तारी के आदेश का क्रियान्वयन
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के तहत जिस व्यक्ति के खिलाफ आदेश जारी किया जाता है, उसकी गिरफ्तारी भारत में कहीं भी हो सकती है।
गिरफ्तारी के नियमन की शक्ति
गिरफ्तारी के आदेश का नियमन किसी भी व्यक्ति पर किया जा सकता है। उसे एक जगह से दूसरी जगह पर भेजा जा सकता है। हां, संबंधित राज्य सरकार के संज्ञान के बगैर व्यक्ति को उस राज्य में नहीं भेजा जा सकता है।
गिरफ्तारी की वैधता के आधार
गिरफ्तारी के आदेश को सिर्फ इस आधार पर अवैध नहीं माना जा सकता है कि इसमें से एक या दो कारण 1.अस्पष्ट हो । 2.उसका अस्तित्व नहीं हो। 3.अप्रसांगिक हो। 4. उस व्यक्ति से संबंधित नहीं हो
【इसलिए किसी अधिकारी को उपरोक्त आधार पर गिरफ्तारी का आदेश पालन करने से नहीं रोका जा सकता है। गिरफ्तारी के आदेश को इसलिए अवैध करार नहीं दिया जा सकता है कि वह व्यक्ति उस क्षेत्र से बाहर हो जहां से उसके खिलाफ आदेश जारी किया गया है।】
फरार होने की स्थिति में शक्तियां
अगर वह व्यक्ति फरार हो तो सरकार या अधिकारी,
1.वह व्यक्ति के निवास क्षेत्र के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट या प्रथम श्रेणी के ज्यूडीशियल मजिस्ट्रेट को लिखित रूप से रिपोर्ट दे सकता है।
2. अधिसूचना जारी कर व्यक्ति को तय समय सीमा के अंदर बताई गई जगह पर उपस्थित करने के लिए कह सकता है।
3. अगर, वह व्यक्ति उपरोक्त अधिसूचना का पालन नहीं करता है तो उसकी सजा एक साल और जुर्माना, या दोनों बढ़ाई जा सकती है।
गिरफ्तारी की अधिकतम अवधि
अगर, गिरफ्तारी के कारण पर्याप्त साबित हो जाते हैं तो व्यक्ति को गिरफ्तारी की अवधि से एक साल तक हिरासत में रखा जा सकता है। समया अवधि पूरा होने से पहले न तो सजा समाप्त की जा सकती है और ना ही उसमें फेरबदल हो सकता है।
गिरफ्तारी के आदेश की समाप्त
1. गिरफ्तारी के आदेश को रद्द किया जा सकता है या बदला जा सकता है (i) इसके बावजूद, कि गिरफ्तारी केंद्र या राज्य सरकार के आदेश के उसके अधीनस्थ अधिकारी ने की है।
(ii) इसके बावजूद कि ये गिरफ्तारी केंद्र या राज्य सरकार के आदेश के हुई हो।
निम्न व्यक्ति पर लागया गया था राष्ट्रीय सुरक्षा कानून
1.राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर को कई महीने तक जेल में रखा गया था।
2.इसी कानून के तहत मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेम को जेल में रखा गया था। सोशल मीडिया पर सरकार की आलोचना करने पर उन्हें नवंबर 2018 में गिरफ्तार किया गया था. वह 133 दिन जेल में रहे थे।
(सूत्रों की माने तो हाल ही में मध्यप्रदेश के इंदौर में 13 लोगों को गिरफ्तार किया गया है उनमें से 4 लोगों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत करवाई की गई हैं)
बी. आर. अहिरवार होशंगाबाद (पत्रकार एवं लाँ छात्र) मोब.9827737665