भोपाल। अरेरा कॉलोनी भोपाल की संभ्रांत कॉलोनियों में अव्वल है। सोशल मीडिया पर यहाँ से आ रहे संदेशों में ऐसी बातें लिखी जा रही है, जो समाज की सभ्यता और समझ पर प्रश्नचिंह खड़े करती हैं। जैसे “तीन दिन से सब्जी नहीं मिली”, “ दूध आज देर से आया”, “ सरकार में समझ नहीं है “ यह बस्ती भोपाल के पूर्व नौकरशाहों, नव धनाढ्य लोगों का प्रतिनिधत्व करती है। बाबा तुलसीदास को ये सब जानते हैं, रामचरितमानस के अध्येता हैं, सम्पूर्ण सम्मान के साथ रामचरितमानस की एक चौपाई दिलाता हूँ। “ धीरज धर्म”------------ “आपतकाल” --------। जी हाँ यह आपातकाल है। आप दूध और सब्जी के बगैर हलकान है कुछ लोगो को तो रोटी भी नहीं मिली है। अपने धीरज को खोने से पहले इस पर गौर कीजिये।
कोरोना वायरस के बढ़ते संकम्रण के कारण लागू किए गए लॉकडाउन के कारण लोगों, खासकर प्रवासी मजदूरों, को अनेक प्रकार की मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। प्रदेश में लगभग 42 प्रतिशत मजदूरों के पास एक दिन का राशन तक नहीं है और ये मनरेगा से मिले अनाज में से एक हिस्सा दान भी दे रहे हैं। काम बंद है। प्रदेश के एक बड़े अधिकारी का अनुमान इस दौरान प्रदेश में बाहर से आये मजदूरों की संख्या लाखों में है।स्व सहायता समूह जितनो को काम दे सकते हैं दे रहे हैं। आपके चेहरे पर लगा मास्क और आपको कीटाणुरोधी बना रहा सेनेटाईजर वे ही हाथ बना रहे है, जो कल देश के किसी हिस्से में गगनचुंबी इमारत बनाते थे। सीमा पर प्रदेश में आने के लिए खड़े कई लोगों को तो रोटी देखने को भी नहीं मिली।
अब देश की बात। गैर सरकारी संगठन “जन सहस” द्वारा 3196 प्रवासी मजदूरों के बीच किए गए अध्ययन से ये जानकारी सामने आई है कि अगर लॉकडाउन ज्यादा रहता है तो इसमें से 66 प्रतिशत लोग अपना घर नहीं चला पाएंगे| सर्वे में एक और महत्वपूर्ण बात ये सामने आई है कि एक तिहाई मजदूर लॉकडाउन के चलते शहरों में फंसे हुए हैं जहां पर न तो पानी है, न खाना और न ही पैसा। जो मजदूर अपने गांव पहुंच भी गए है वे भी पैसे और राशन की समस्या से जूझ रहे हैं। इसके अलावा इनमें से अधिसंख्य के ऊपर कर्ज है और अब रोजगार खत्म होने के चलते वे इसकी भरपाई नहीं कर पाएंगे। इसमें से ज्यादातर कर्ज साहूकारों से लिए गए हैं। ऐसे लोन की संख्या बैंकों से लिए गए लोन के मुकाबले करीब तीन गुना अधिक है।
अब अंतर्राष्ट्रीय बात। संयुक्त राष्ट्र के श्रम निकाय ने चेतावनी दी है कि कोरोना वायरस संकट के कारण भारत में अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले लगभग 40 करोड़ लोग गरीबी में फंस सकते हैं और अनुमान है कि इस साल दुनिया भर में 19.5 करोड़ लोगों की पूर्णकालिक नौकरी छूट सकती है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने अपनी रिपोर्ट ‘आईएलओ निगरानी- दूसरा संस्करण: कोविड-19 और वैश्विक कामकाज’ में कोरोना वायरस संकट को दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे भयानक संकट बताया है। आईएलओ के महानिदेशक गाय राइडर ने कहा, ‘विकसित और विकासशील दोनों अर्थव्यवस्थाओं मे श्रमिकों और व्यवसायों को तबाही का सामना करना पड़ रहा है।
दुनिया भर में दो अरब लोग अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं. इनमें से ज्यादातर उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में हैं और ये विशेष रूप से संकट में हैं। ‘भारत में अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में काम करने वालों की हिस्सेदारी लगभग 90 प्रतिशत है, इसमें से करीब 40 करोड़ श्रमिकों के सामने गरीबी में फंसने का संकट है।’
जरा सोचिये, 22 मार्च से पांच अप्रैल के बीच शहरों में बेरोजगारी 22 फीसदी बढ़ गई है। भारतीय अर्थव्यवस्था निगरानी केंद्र (सीएमआईई) द्वारा जारी आंकड़ों में यह बात सामने आई है। इन आंकड़ों के के मुताबिक बीते पांच अप्रैल में समाप्त हुए हफ्ते में शहरी बेरोजागारी दर 30.93 प्रतिशत थी, जबकि 22 मार्च 2020 तक ये दर 8.66 प्रतिशत थी।
अरेरा कालोनी और उस जैसी कुछ कालोनी के सम्मानीय आंकड़ो से ही समझते हैं। ये आंकड़े उनको नजर है, इनके प्रकाश में अपनी सब्जी, दूध की किल्लत देखे और फिर से बाबा तुलसीदास को याद करें। इस दुष्काल में धीरज ही धर्म है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।