भोपाल। मध्यप्रदेश, मंत्रिमंडल गठन के नाम पर नवाचार की प्रयोगशाला बन गया है। कांग्रेस की सरकार में सब कैबिनेट मंत्री थे, कोई किसी से कम नहीं। भाजपा ने जैसे तैसे कुनबे को जोड़ा और “एकला चलो” पद्धति पर सरकार का श्री गणेश किया तो एकला चलो की पद्धति किसी को पसंद नहीं आई और हर रोज एक सवाल बवाल मचाता था कि मंत्रिमंडल कब? महाराजा के सिपहसालार वफादारी का ख़िताब एक बड़ी मसनद के सौदे के रूप में चाहते थे और अभी भी उनके अरमान बाकी है। इधर भाजपा के झंडे को 15 साल तक उठाये अलमबरदार भी बैचेन थे। बड़ी मुश्किल से विस्तार का मुहूर्त आया, रास्ता निकला सारे सिपहसालारों में से कुछ की ताजपोशी की जाये। मंगलवार को हुई ताजपोशी से “राजा” का राजकाज याद आ गया मेरे पास कुछ नहीं, सब तुम्हारे नाम। उस काल से ही सीख कर संभाग बंट गये। खेती से जुडी एक कहावत भी याद आ गई, “गाडी बैल तुम्हारे, बस हुँकार हमारी”। अब इस छोटे मंत्रिमंडल में भी सब कैबिनेट हैं, और वो कहानी अभी जीवंत है, कोई किसी से कम नहीं।
बहुत सी तकनीकी और राजनीतिक आपत्तियों के बाद बुधवार को विभागों का बंटवारा हो गया। गंभीर कोरोना संकट के बीच नरोत्तम मिश्रा को दोहरी जिम्मेदारी सौंपी गई है। मिश्रा राज्य के गृह मंत्री और स्वास्थ्य मंत्री की जिम्मेदारी संभालेंगे और कमल पटेल मध्य प्रदेश के नए कृषि मंत्री होंगे। तुलसी सिलावट को जल संसाधन विभाग दिया गया है। वहीं, गोविंद सिंह राजपूत खाद्य प्रसंस्करण मंत्री होंगे तो मीना सिंह आदिवासी कल्याण का काम देखेंगी। इससे पहले फौरी तौर पर नरोत्तम मिश्रा को भोपाल और उज्जैन संभाग, तुलसी सिलावट को इंदौर और सागर संभाग, कमल पटेल को जबलपुर और नर्मदापुरम संभाग, गोविंद सिंह राजपूत को चंबल और ग्वालियर संभाग, मीना सिंह को रीवा और शहडोल संभाग का प्रभार सौंपा गया था ।
संभाग सौपने के नवाचार से सबसे अधिक आपत्ति मध्यप्रदेश के मंत्रालय को थी फिर कुछ कम विधान सभा की संचालन पद्धति को। संविधान के जानकार एकला चलो पद्धति को संविधान की मंशा के विपरीत कहते थे, अब भी उनकी राय नहीं बदली है। उनकी राय में संविधान की मंशा अभी भी पूरी नहीं हुई। सबसे पहले मंत्रालय – मत्रालय के छोटे-बड़े बाबूओं की समस्या थी की कैसे मंत्री जी का आदेश और मंशा समझ में आएगी, नस्ती कैसे चलेगी हर मंत्री के उस संभाग के सारे विभाग होने से अजीब सी होंच-पोंच मच जाएगी। छोटे बाबुओं की गुहार में बड़े बाबूओं को दम नजर आई। शासन संचालन नियमावली की खोज मची, ग्रन्थालय से निकाल कर परायण किया गया। सबसे बड़े बाबू ने राय पेश की “सरकार सामूहिक उत्तरदायित्व है, और मुख्यमंत्री सब विभाग देख सकते हैं। ” अभी भी तो देखते आ रहे है। संकट के स्वर विधानसभा सचिवालय से भी उभरे, कौन सा मंत्री कौन से संभाग के कौन से विभाग का उत्तर देगा। एक विभाग से सम्बन्धित प्रदेश के सारे जिलों के उत्तर 5 मंत्रियों को देना होगा या मुख्यमंत्री ही सारे जवाब देंगे ?
इन दोनों से महत्वपूर्ण राजनीति के अखाड़े की हलचल है। जिसने जैसे तैसे विभागों का बंटवारा करा दिया।भाजपा के पुराने अलमबरदार शुक्रिया के ट्विट व्हाट्सएप कर क्षेत्र को प्रस्थित होने लगे। महाराजा का सपना राज्यसभा के चुनाव स्थगन के साथ टलने लगा है। बैचेनी सम्मान को लेकर भी यहाँ कोई भी नहीं कहता है “आप मेरे घर २४ घंटे में कभी भी आ सकते हैं”। सम्बोधन की भी अजीब परम्परा है नाम के पहले कुछ नहीं नाम के बाद सबके लिए “जी” लगता है, इसी से काम चल जाता है। जिस सेवा भाव के लिए इतनी उठा पटक की और आज जब पूरा प्रदेश कोरोना के कारण त्राहिमाम त्राहिमाम कर रहा हो “सेवाभावी” को किसी भी कमेटी में जगह न मिलना कैसे सही हो सकता है?
मध्यप्रदेश की राजनीतिक कुंडली में “मंत्रिमंडल” की ग्रह दशा जो पिछली सरकार से बिगड़ी है संभलने का नाम नहीं ले रही | कुछ तो उपाय होगा “नाथ” “महाराजा” “राजा” “प्रजा” कोई तो बताओ।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।