भोपाल। कोरोना संक्रमण का गंभीर होता संकट भविष्य में क्या रूप लेगा, यह कहना मुश्किल है। भोपाल में खास तौर पर उन लोगों के बीच एक नई बहस शुरू हो गई है, जो गैस पीड़ित है। गैस पीड़ितों के बीच से आजतक यह भ्रम दूर नहीं हो पाया है कि उनका कभी कोई मुकम्मल इलाज हुआ है। मुआवजे का भी अता–पता अब तक नहीं है। अगर कोविड-19 भी वैसी ही कोई रासायनिक विभीषिका निकली और न भी निकली तो नुकसान भोपाल के लोगो का ज्यादा होगा। भोपाल के लोगों के फेफड़े तो पहले से ही क्षतिग्रस्त हैं और विशेषग्य इस महामारी के एसिम्टमेटिक मरीजों की बढ़ती संख्या की ओर इशारा कर रहे हैं।
एसिम्टमेटिक ऐसे कोरोना संक्रमित हैं, जिनमें कोरोना का कोई लक्षण जैसे- खांसी, तेज बुखार, सांस फूलना आदि दिखायी नहीं देते, लेकिन वे इस वायरस से संक्रमित होते हैं| कई शोध-पत्रों के अनुसार, अभी विश्व भर में कुल कोरोना संक्रमितों में से 80 प्रतिशत मरीज ऐसे हैं, जो इस श्रेणी में हैं। इनसे महामारी के फैलने का खतरा इसलिए बढ़ रहा है क्योंकि जब तक किसी व्यक्ति में लक्षण दिखायी नहीं पड़ते, तब तक वह स्वयं को संक्रमित नहीं समझता, जिस कारण जो लोग उसके संपर्क में आते हैं, वे भी संक्रमित हो जाते हैं। एसिम्टमेटिक संक्रमितों में लक्षण न दिखने का प्रमुख कारण उनकी बेहतर प्रतिरोधक क्षमता को माना जा सकता है, जो संक्रमित होने के बावजूद शरीर में कोरोना के लक्षण पनपने नहीं देती| जिन व्यक्तियों की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है, उनके एसिम्टमेटिक होने की संभावना कम होती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ-साथ अन्य कई स्वास्थ्य संगठन भी कोविड-19 वायरस की वैक्सीन तैयार करने में लगे हुए हैं। अभी कुछ वैक्सीन मानव परीक्षण के चरण तक पहुंच चुकी हैं, लेकिन इन सभी प्रक्रियाओं के बाद भी वैक्सीन को तैयार करने में एवं आम जनता तक पहुंचने में अनुमानित 18 महीने का समय लग सकता है। [ध्यान रहे, भोपाल के गैस पीड़ितों के लिए तो आज तक एम् आई सी का कोई एंटी डॉट नहीं मिला। अनुमान कुछ भी हो सकता है 2022 से पहले किसी भी वैक्सीन के उपलब्ध होने की संभावना बहुत कम है। वर्तमान में बचाव के लिए ज्यादातर देशों में अभी भी लॉकडाउन लगा हुआ है, इसके बावजूद इस महामारी के प्रसार में कुछ खास कमी नहीं आयी है। दुनिया में अब इस महामारी से बचाव के लिए ‘हर्ड इम्युनिटी’ की भी चर्चा हो रही है।
यदि दुनियाभर में इसे निर्बाध रूप से फैलने दिया जाये और 60 प्रतिशत से भी अधिक लोग इससे संक्रमित हो जाते हैं और वे अपनी प्रतिरोधक क्षमता के बल पर इस संक्रमण को हरा देते हैं, तो उन्हें संक्रमण के प्रति इम्यून कहा जाता है। जब इम्यून लोगों की संख्या बहुत बढ़ जाती है, तब यह वायरस संक्रमण नहीं फैला पाता। इस सामूहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता को ‘हर्ड इम्युनिटी’ कहते हैं। ‘हर्ड इम्युनिटी’ को वैक्सीन के माध्यम से भी बढ़ाया जा सकता है। भारत में पोलियो के उन्मूलन के लिए ‘हर्ड इम्युनिटी’ का इस्तेमाल किया गया था। अगर अभी कोरोना संक्रमण नहीं रुकता है, तो यह जल्दी ही विश्व की 60 प्रतिशत आबादी को संक्रमित कर देगा, तब लोगों में अपने आप ही ‘हर्ड इम्युनिटी’ आ जायेगी, जो इस संक्रमण को फैलने से रोक देगी, लेकिन इस दौरान बड़े स्तर पर जनहानि की संभावना भी अधिक होगी। और भोपाल के गैस पीड़ितों के लिए तो यह त्रासदी दुबले और दो आषाढ़ से कम नहीं है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।