नई दिल्ली। कोरोना का दुष्काल कितना लम्बा चलेगा कोई नहीं बता सकता अभी तक इस बात की ठोस जानकारी तक सामने नहीं आई है कि इस वायरस के उद्गम का उद्देश्य क्या था? परिस्थिति इस बात के पक्ष में ज्यादा दिखाई देती हैं कि यह आपदा प्राकृतिक नहीं है। 2018 में चिकित्सा क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार प्राप्त जापान के डॉक्टर तोसुकु होंजो के अनुसार “कोरोना वायरस प्राकृतिक नहीं है यदि प्राकृतिक होता पूरी दुनिया में यह यूं तबाही नहीं मचाता। विश्व के हर देश में अलग अलग तापमान है, यदि यह कोरोना वायरस प्राकृतिक होता तो चीन जैसे अन्य देशो में जहां चीन से विपरीत तापमान है वहीं विनाश करता यह स्विट्जरलैंड जैसे देश मैं फैल रहा है ठीक वैसा ही इसका असर रेगिस्तानी इलाकों में है, अगर यह प्राकृतिक होता तो ठंडे स्थानों पर फैलता, परंतु गर्म स्थानों पर जाकर यह दम तोड़ देता।“ उनकी बात का खंडन नहीं हुआ है, परंतु भारत के सन्दर्भ में आज ये विचार करना जरूरी हो गया है कि व्यक्ति क्या करे? समाज क्या क्या करे ?
अमेरिका, इटली, स्पेन तथा अनेक यूरोपीय देशों में रोगियों तथा मृतकों की संख्या दिल दहलानेवाली है| ये सब दुनिया के सबसे विकसित देश हैं और यहां के सार्वजनिक स्वास्थ्य पर जीडीपी का छह से साढ़े आठ प्रतिशत धन खर्च होता है। अपने भारत में यह खर्च सिर्फ डेढ़ प्रतिशत है। ऐसे में विकासशील भारत में व्यक्ति और समाज का कर्तव्य बड़ा और संवेदनशील हो जाता है। सारा समाज लॉक डाउन में दवा ,खाना आदि वितरण तो कर सरकार की मदद कर रहा है। अब वह चिकित्सीय उपकरण भी उपलब्ध करा रहा है। जैसे भोपाल में गुजराती समाज ने इन्फ्रारेड थर्मामीटर सरकार को उपलब्ध कराए और वे अपने समाज में जाँच के लिए उपयोग करने वाले हैं।
व्यक्ति से समाज बनता है। आम नागरिक के रूप सरकार द्वारा प्रसारित कुछ सामान्य उपायों का पालन करना चाहिये जैसे दिनभर गर्म पानी पीये ,हर दिन में 30 मिनट योग अभ्यास, प्राणायाम, निर्देश के मुताबिक, भोजन पकाने के दौरान हल्दी, जीरा और धनिया जैसे मसालों का प्रयोग| शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को मजबूत बनाने के लिए भोजन फल औषिधि का प्रयोग। निर्देशिका में सब लिखा है| सबसे ज्यादा कारगर “फिजिकल डिस्टेनसिंग” जिसे “सोशल डिस्टेनसिंग” भी कहा गया है का हर व्यक्ति को पालन करना चाहिये। यह सब प्रतिरक्षा है। शरीर का तापमान इन्फ्रारेड थर्मामीटर से लेना भी “फिजिकल डिस्टेनसिंग” ही है। मेडिसिन विशेषग्य डॉ महेश उपाध्याय का कहना है कि पीसीआर [पॉलीमरेज चेन रिएक्शन] टेस्ट के बगैर कोरोना का निदान नहीं हो सकता। शरीर का तापमान तो अन्य किसी विकृति से भी बढ़ सकता है।
वैसे कोरोना वायरस की जांच में दो टेस्ट का नाम सबसे ज्यादा किये जा रहे है- रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट और पीसीआर टेस्ट। इनमें सबसे बड़ा फर्क यह है कि जब किसी व्यक्ति को कोई बीमारी होती है, तो शरीर उससे लड़ने के लिए शरीर में एंटीबॉडी बना लेता है। इस तरह रक्त में संबंधित एंटीबॉडी मिलने से व्यक्ति के उस बीमारी से संक्रमित होने का संकेत मिलता है, लेकिन यह अन्य बीमारियों के कारण भी हो सकता है। इसीलिये इस चरण में संक्रमण होने की आशंका वाले व्यक्ति का पीसीआर टेस्ट किया जाता है।यह डीएनए पर आधारित विश्लेषण कर कोरोना की पुष्टि करता है, जिसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं बचती। इसे अंतिम और प्रामाणिक माना जाता है। समाज को इन टेस्टों को सुगम बनाने में सरकार की मदद करना चाहिए। सामान्य जानकारी के अनुसार कोरोना की जांच में कुछ चरण शामिल होते हैं। एक या अधिक लक्षण पाए जाने पर व्यक्ति की निम्न जांच कर संक्रमण की पुष्टि के लिए की जानी चाहिए।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के मुताबिक जिस व्यक्ति में कोरोना संक्रमण की आशंका होती है, उसके गले या नाक के अंदर से कॉटन के जरिए सैंपल लेकर उसकी जांच की जाती है। सैंपल गले या नाक से इसलिए लिया जाता है क्योंकि कोरोना का वायरस इन्हीं जगहों पर सबसे ज्यादा सक्रिय होता है। इसे स्वाब टेस्ट कह जाता है। 2.नेजल एस्पिरेट- नाक में एक विशेष रसायन डालकर सैंपल एकत्र कर उसकी जांच की जाती है।3.ट्रेशल एस्पिरेट- ट्रेशल एस्पिरेट टेस्ट में व्यक्ति के फेफड़ों तक ब्रोंकोस्कोप नाम की एक पतली ट्यूब डाली जाती है। ट्यूब के जरिए सैंपल एकत्र कर उसमें संक्रमण की स्थिति का पता लगाया जाता है। 4.सप्टम टेस्ट- फेफड़े या नाक से लिए गए सैंपल का टेस्ट सप्टम टेस्ट के रूप में जाना जाता है। 5. ब्लड टेस्ट- संक्रमित व्यक्ति के रक्त की भी जांच की जाती है और उसमें ऑक्सीजन की मात्रा इत्यादि की चेकिंग की जाती है।
लक्षण के आधार पर अगर कोई व्यक्ति इस स्तर पर संक्रमित पाया जाता है तो पीसीआर टेस्ट कर उसके संक्रमण की सही स्थिति पता लगाई जा सकती है। रिअल टाइम पॉलीमरेज चेन रिएक्शन या पीसीआर टेस्ट कोरोना की टेस्टिंग का महत्वपूर्ण आयाम है। पॉलीमर वे एंजाइम होते हैं जो डीएनए की नकल बनाते हैं। इसमें कोरोना संक्रमित व्यक्ति के स्वैब सैंपल से डीएनए की नकल तैयार कर संक्रमण की जांच की जाती है। इन्ही जांचों के लिए डाक्टर और स्वास्थ्य कर्मी घर-घर जा रहे हैं, व्यक्ति और समाज के स्तर पर उनका सहयोग करना हम सबका कर्तव्य और मानव होने का प्रमाण है। सबसे ज्यादा जरूरी बात व्यक्तिगत स्तर पर है, अफवाहों से बचे और वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग करें।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।