यह तो हम सभी जानते हैं कि बंदूक की गोली में बारूद भरा होता है और बंदूक का ट्रिगर दबाते ही गोली के पिछले हिस्से पर चिंगारी पैदा होती है। इसी के साथ गोली हवा की स्पीड से छूटती है और अपने टारगेट को खत्म कर देती है। सवाल यह है कि यदि बंदूक ना हो तो क्या केवल कारतूस को माचिस से आग लगाकर चलाया जा सकता है। आइए इस मजेदार प्रश्न का उत्तर जानने की कोशिश करते हैं।
सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (CBI) में 10 साल (2003-2013) सेवाएं दे चुके श्री निशांत मिश्र, दिल्ली बताते हैं कि बंदूक की गोली और कारतूस में बहुत अंतर होता है। कारतूस चलाने पर कारतूस का खोल धमाके से अलग हो जाता है और निशाने पर लगनेवाली चीज़ धातु की नुकीली गोली होती है जो बहुत तेज गति से जाकर निशाने को भेद देती है। धातु की यह गोली बहुत तेज आग में गल जाती है। इसका गलना इस बात पर भी निर्भर करता है कि यह किस धातु या एलॉय से बनी है या आग कितनी तेज धधक रही है।
कारतूस इन चीजों से मिलकर बनता हैः
धातु की गोली (1), खोल या आवरण (2), मसाला या बारूद (3), रिम (4), और प्राइमर (5)।
यदि हम कारतूस को आग में जलाएं तो उसके बहुत रोचक परिणाम होंगे। गोली अपने आप नहीं चल पड़ेगी, ऐसा केवल फिल्मों मे ही होता है।। आग के संपर्क में आने पर प्राइमर और मसाला आग पकड़ लेंगे। प्राइमर विस्फोटक सामग्री से बनता है लेकिन कारतूस में इसकी मात्रा बहुत कम होती है। यह केवल एक छोटा धमाका और चिंगारी उत्पन्न करके मसाले को जलाने का काम करता है।
मसाला जलने पर विस्फोट नहीं करता। यह एक सुनिश्चित दर या गति से जलता है। इसके जलने पर बहुत गरम गैसें निकलती हैं जो बंदूक की नली (बैरल) के अंदर गोली को गति प्रदान करती हैं। गोली के तेज धमाके से नली से बाहर निकलते ही कारतूस का खोल वहीं कुछ दूरी पर गिर जाता है। कारतूस में मसाले का काम वही है जो स्पेस रॉकेट में बूस्टर में भरे ईंधन का होता है।
कारतूस को इस तरह से डिजाइन किया जाता है कि प्राइमर के जलने पर गैसें तेजी से निकलें। प्राइमर हल्की सी चोट या धमक पहुंचने ऐक्टिव हो सकता है, इसीलिए कारतूसों को हमेशा गत्ते के डिब्बों में बेचा और स्टोर किया जाता है। कारतूसों को आग में फेंक देने पर छोटे-मोटे धमाके होते हैं। कुछ प्राइमर फूटते हैं और गोलियां थोड़ा-बहुत उछलती हैं लेकिन यह वास्तविक गोली चलने जितना खतरनाक नहीं होता।
निष्कर्ष क्या निकला
सरल शब्दों में बात यह है कि गोली की स्पीड कारतूस के मसाले और बंदूक की नाल पर निर्भर करती है। सिर्फ चिंगारी लगने से गोली में स्पीड नहीं आती। यदि आप किसी भी प्रकार से बिना बंदूक की गोली जलाने की कोशिश करेंगे तो वह दीपावली की आतिशबाजी की तरह छोटा सा धमाका करके फट जाएगी। बंदूक से निकली गोली की तरह टारगेट की तरफ दौड़ नहीं लगाएगी।
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