हिंदुओं के वैष्णव संप्रदाय में चरणामृत एवं पंचामृत का विशेष महत्व बताया गया है। शास्त्रों में मनुष्य के लिए दोनों को अनिवार्य बताया गया है। यदि केवल नाम से समझने की कोशिश करें तो पंचामृत का तात्पर्य हुआ पांच अमृत, यह तो नाम से ही फायदेमंद है परंतु चरणामृत का तात्पर्य हुआ चरण का अमृत। यानी पैर धोने के बाद का पानी। इसका सेवन फायदेमंद कैसे हो सकता है। क्या इसके पीछे कोई लॉजिक है या फिर ब्राह्मणों ने दूसरी जाति के लोगों को नीचा दिखाने के लिए चरणामृत पीने की परंपरा बनाई है। मध्यप्रदेश के नीमच में रहने वाले यतिन मेहता एक शासकीय कर्मचारी हैं, खेती करते हैं और सबसे बड़ी बात कि लगातार अध्ययन करते हैं। आइए इस संदर्भ में श्री मेहता की स्टडी रिपोर्ट पढ़ते हैं:
पंचामृत क्या होता है, कैसे बनाया जाता है, क्या लाभ होता है
पंचामृत का अर्थ होता है पांच अमृत यानी पांच पवित्र वस्तुओं दूध, दही, तुलसी, घी, शहद, शक्कर या खाँड या आजकल चीनी (नये गन्ने के रस से बनी मीठी वस्तु का महत्व है) और गंगा जल से मिलकर बनता है। पंचामृत का प्रथम भाग दूध है, जो शुभ्रता का प्रतीक है अर्थात जीवन में दूध की तरह निष्कलंक हो सद्गुण अपनाएं। दूसरा भाग दही है जिसका गुण है दूसरों को अपने जैसा बनाना यानी पहले हम निष्कलंक हो सद्गुण अपनाएं और फिर दूसरों को भी अपने जैसा बनाएं। तीसरा भाग है घी जो प्रतीक है स्नेह का अर्थात सभी से हमारे स्नेहयुक्त संबंध हो, यही भावना हो। चौथा भाग है शहद जो बेहद शक्तिशाली होता है। कमजोर व्यक्ति जीवन में कुछ नहीं कर सकता, तन और मन से शक्तिशाली व्यक्ति ही सफलता पा सकता है। शक्कर का गुण है मिठास। यानी सबसे मीठा बोल कर मधुर व्यवहार बनाएं। शृद्धा भक्ति पूर्वक मन को शांत रखकर इस अमृत का सेवन करने से इंसान में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
पंचामृत ग्रहण करने की विधि
पंचामृत हमेशा दाएं हाथ से लेना चाहिए ताकि वो आपको स्थिर कर सके। (हमारे शरीर का दायाँ भाग मस्तिष्क के दो पाटो के बायें भाग से संचालित होता है जो सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह के लिये जिम्मेदार है) ।
चरणामृत क्या होता है, कैसे बनाया जाता है, क्या लाभ होता है
चरणामृत जल का महत्व सिर्फ धार्मिक ही नहीं, चिकित्सकीय भी है। चरणामृत जल हमेशा तांबे के पात्र में रखा जाना चाहिए। (पित्तशामक होता है)। ताम्र पात्र में रखे चरणामृत जल का सेवन करने से शरीर में रोगों से लडऩे की क्षमता पैदा हो जाती है तथा रोग नहीं होते व इसमे डले तुलसी पत्ता, शहद,गौ घ्रत या गौ दुग्ध, दही व गँगा जल (हिमालय की अनेक औषधियों के गुण को अपने अंदर समाहित किये होता है) से इसके गुणो में वृद्धि होती है।
चरणामृत ग्रहण करने की विधि
चरणामृत दाएं हाथ में अंजुलिभर ग्रहण किया जाता है। चरण अमृत जल पीकर अपने सिर पर हाथ फिराने की आदत होती है जो गलत है क्योंकि पूजन के बाद प्रवाहित सकारात्मक ऊर्जा जो हमारे शरीर का आभा मँडल आकर्षित करने की कोशिश करता है बाधित हो जाता है व हम और भी अधिक नाकारात्मक विचारों की ओर प्रवेश कर सकते हैं। इसलिए चरणामृत पिने के बाद सर पर हाथ नहीं घुमाएं।
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