भारत में हम अक्सर सड़क पर दौड़ती हुई कार/ बस या ट्रक को देखते हैं। सबके स्टीयरिंग राइट साइड में होते हैं। सवाल यह है कि इन वाहनों में स्टीयरिंग बीच में क्यों नहीं होता। क्या इसके पीछे कोई लॉजिक है या बस एक परंपरा थी जो शुरू हो गई है और आज तक पालन किया जा रहा है। आइए जानते हैं:
भारत में कार की स्टेरिंग राइट साइड क्यों होती है
लोगों का कहना है कि यह परंपरा अंग्रेजों के जमाने में शुरू हुई थी। कुछ देशों में जहां अंग्रेजों का राज नहीं था वहां कार का स्टेरिंग लेफ्ट साइड होता है लेकिन सवाल यह है कि आजादी के बाद इंजीनियरों ने स्टीयरिंग को अपने हिसाब से (मारुति कारों का स्टेरिंग राइट साइड, टोयोटा कारों का स्टीयरिंग लेफ्ट साइड) लेफ्ट या राइट में क्यों नहीं रखा और मूल सवाल तो अभी भी वही का वही है कि स्टीयरिंग बिल्कुल बीच में क्यों नहीं होता।
वाहनों में स्टीयरिंग का किसी एक साइड में होने के पीछे लॉजिक क्या है
दरअसल यह फैसला वाहनों के काफी लंबे अनुभव के बाद लिया गया। आपको याद दिला दें कि ऑटो रिक्शा में आज भी ड्राइवर वाहन के बीच में बैठता है। पुराने समय में शहर के अंदर यातायात के लिए बग्घियों का उपयोग किया जाता था। यह प्राचीन काल में उपयोग किए जाने वाले रथ का मॉडिफाइड एडिशन था। इसमें ड्राइवर बिल्कुल बीच में बैठता था। इंजीनियर्स ने जब कार बनाई तो ध्यान में आया कि आगे वाली पूरी सीट ड्राइवर के लिए रिजर्व करना बेवकूफी होगी। ड्राइवर के साथ एक और व्यक्ति को बैठने के लिए जगह बनाई जा सकती है। बस यही लॉजिक है कि ड्राइवर की सीट सेंटर से बदलकर साइड में कर दी गई। थोड़ा इतिहास के पन्नों को पलट कर देखेंगे तो उन दिनों बग्घियों मैं भी चालक के साथ एक और सहायक को बिठाया जाने लगा था।
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