भोपाल। ग्वालियर-चंबल के नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को सुर्खियों में बने रहना अच्छे से आता है। राजस्थान के कोटा में फसी एक छात्रा की मदद के नाम पर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ना केवल राजस्थान के डिप्टी चीफ मिनिस्टर सचिन पायलट से बात की बल्कि इसकी सार्वजनिक सूचना भी दी। अब कयासों का दौर शुरू हो गया है। क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया हमेशा से नाराज हैं। क्या सचिन पायलट से बात करके ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अमित शाह को कोई संकेत दिया है।
मामला क्या है
लोकसभा क्षेत्र गुना (जहां से ज्योतिरादित्य सिंधिया लोकसभा चुनाव हार गए हैं) की रहने वाली एक छात्रा राजस्थान के कोटा शहर में फंस गई थी। छात्रा के पिता ने ज्योतिरादित्य सिंधिया से मदद मांगी। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने छात्रा को मदद पहुंचाने के लिए राजस्थान की डिप्टी सीएम सचिन पायलट से बात की। इसके बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ट्विटर पर सार्वजनिक रूप से इसकी जानकारी भी दी। इसी के बाद से गॉसिप शुरू हो गए हैं।
राजस्थान के उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट जी ने मेरे अनुरोध के बाद राजस्थान शहर के कोटा में फंसी गुना शहर की बिटिया इशिका को शीघ्र अपने घर भेजने को लेकर भी आश्वस्त किया। @SachinPilot https://t.co/opV4OYjBxL— Jyotiraditya M. Scindia (@JM_Scindia) April 19, 2020
क्या चर्चाएं हो रही है ज्योतिरादित्य सिंधिया के बारे में
ज्योतिरादित्य सिंधिया अब भारतीय जनता पार्टी के नेता है। राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी भले ही विपक्ष में है लेकिन काफी मजबूत स्थिति में है। यदि वह अपने क्षेत्र के मतदाताओं की मदद करना चाहते थे तो उन्हें पार्टी के आंतरिक अनुशासन का पालन करते हुए करना चाहिए था। क्योंकि यह उनका व्यक्तिगत मामला नहीं था इसलिए उन्हें व्यक्तिगत संबंधों का उपयोग भी नहीं करना चाहिए था। सचिन पायलट से बात करके ज्योतिरादित्य सिंधिया ने एक तरफ भारतीय जनता पार्टी की अनदेखी की है तो दूसरी तरफ यह जताने की कोशिश की है कि कांग्रेस पार्टी में उनका दबदबा और संबंध उतने ही मजबूत हैं। इस मामले में ज्योतिरादित्य सिंधिया यह भी नहीं कह सकते कि उन्होंने राजस्थान सरकार से बात की है क्योंकि यदि वह राजस्थान सरकार से बात करना चाहते थे तो उन्हें राजस्थान के मुख्यमंत्री कार्यालय से बात करनी चाहिए थी।
मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह सरकार के माइक्रो मंत्रिमंडल का गठन हुआ है। मंत्रिमंडल में ज्योतिरादित्य सिंधिया के 2 समर्थकों (तुलसीराम सिलावट एवं गोविंद सिंह राजपूत) को शामिल तो किया गया है परंतु कहा जा रहा है कि यह ज्योतिरादित्य सिंधिया की मर्जी के मुताबिक नहीं हुआ।
ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थक तुलसीराम सिलावट को डिप्टी सीएम बनवाना चाहते थे। कमलनाथ सरकार में तुलसीराम सिलावट के पास स्वास्थ्य विभाग था। श्री सिलावट भी स्वास्थ्य विभाग को ही कंटिन्यू करना चाहते थे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बताने की जरूरत नहीं कि मध्यप्रदेश में स्वास्थ्य विभाग, गृह मंत्रालय से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। गोविंद सिंह राजपूत को भी उनके पुराने विभाग नहीं दिए गए।
ज्योतिरादित्य सिंधिया उन सभी छह समर्थकों को मंत्री बनवाना चाहते थे जिन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दिया था परंतु कोरोनावायरस के नाम पर मंत्रिमंडल का आकार संविधान द्वारा निर्धारित (12 मंत्री) से भी छोटा कर दिया गया।
कयास लगाया जा रहा है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सचिन पायलट से बात करके अमित शाह तक एक संकेत पहुंचाया है। चलते-चलते एक बात और याद दिला दें कि राहुल गांधी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेसमें वापस लाने की जिम्मेदारी सचिन पायलट को सौंपी है।
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