भोपाल। पूरे देश में मेडिकल इमरजेंसी के हालात है। मध्यप्रदेश में एस्मा लगा हुआ है बावजूद इसके राजगढ़ जिले के डॉक्टर हड़ताल पर चले गए। उनका आरोप है कि एक समीक्षा मीटिंग के दौरान राजगढ़ कलेक्टर ने उनके साथ अभद्रता की है। सोशल मीडिया पर आम जनता ने डॉक्टरों के इस कदम की निंदा की है। लोगों का कहना है कि मेडिकल इमरजेंसी के हालात में सरकारी मीटिंग में सम्मान या अपमान का मुद्दा इतना बड़ा नहीं हो सकता कि आम जनता के जीवन को संकट में डाल कर हड़ताल की जाए।
गरीब महिला को डॉक्टरों ने लावारिस छोड़ दिया था, कलेक्टर ने जान बचाई
मामला, जीरापुर के गांव काछीखेड़ी की एक महिला के इलाज से जुड़ा हुआ है। डिलेवरी के लिए जिला अस्पताल में भर्ती काछीखेड़ी की एक महिला के सैंपल जांच के लिए 16 अप्रैल को भोपाल भेजे गए थे। 18 अप्रैल को रिपोर्ट पॉजिटिव आई। अगले दिन उसे तीन दिन के बच्चे के साथ जिला अस्पताल से भोपाल के कोविड अस्पताल चिरायु के लिए रेफर कर दिया गया। डॉक्टरों के रेफर करने के बाद महिला को घंटों एंबुलेंस का इंतजार करना पड़ा। शाम 7 बजे तक महिला भोपाल रवाना हो पायी, उधर चिरायु पहुंचने पर महिला को नेगेटिव बताया गया। इसी के चलते चिरायु अस्पताल में भर्ती करने से मना कर दिया। परिजनों के मुताबिक जिला अस्पताल प्रबंधन ने कोई सम्पर्क नहीं किया जिससे वे परेशान होते रहे। इस बीच रात में करीब तीन बजे कलेक्टर नीरज कुमार सिंह, एसपी प्रदीप शर्मा ने मोबाइल पर संपर्क कर महिला को हमीदिया अस्पताल में शिफ्ट करवाया। अगले दिन महिला के परिजन उसे एक निजी एंबुलेंस में लेकर वापस जीरापुर पहुंच गए, इस पर स्थानीय प्रशासन ने उसे वापस जिला अस्पताल भेज दिया। महिला जिला अस्पताल में आधे घंटे तक परेशान होती रही, डॉक्टरों ने ध्यान नहीं दिया। इसकी सूचना मिलने पर कलेक्टर, एसपी जिला अस्पताल पहुंचे तब जाकर महिला को भर्ती किया गया।
कलेक्टर ने अस्पताल में डॉक्टरों को सार्वजनिक रूप से अपमानित नहीं किया
निश्चित रूप से यह घटनाक्रम डॉक्टरों की जानलेवा लापरवाही का प्रदर्शन करता है। ऐसी लापरवाही पर सामान्यता सार्वजनिक रूप से फटकार लगाई जाती है परंतु राजगढ़ कलेक्टर ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने जिम्मेदार डॉक्टरों को समीक्षा बैठक में बुलाया। बंद हॉल में समीक्षा बैठक के दौरान सारी बातचीत हुई।
महिला के पति ने रोते हुआ कहा- हम बहुत परेशान हाे चुके है, इलाज तो करो
पीडित महिला के पति ने बताया कि हम परेशान हैं। इलाज के लिए, एक दिन पहले हमें भोपाल भेज दिया गया। भोपाल से भगा दिया, कहा आप तो जाओ आपको कोरोना नहीं है। हमीदिया अस्पताल से भी भगा दिया। जैसे तैसे जीरापुर पहुंचे तो वहां से अब फिर जिला अस्पताल भेज दिया है। महिला के परिजन ने कहा कि हम पहले से ही परेशान हैं। यदि आपको हमसे खतरा है तो इलाज करो।
डॉक्टरों का आराेप- कलेक्टर ने मीटिंग में गधा कहा, पूछा तुम्हें डॉक्टर किसने बना दिया
जिला चिकित्सालय में पदस्थ डॉ आरएस माथुर ने बताया कि कलेक्टर ने सोमवार को डॉक्टरों के साथ मीटिंग में सारी सीमाएं लांघ दी। उन्होंने हमारे एमडी मेडिसिन डॉक्टर से अभद्रता करते हुए कहा कि तुमने इस महिला का सैंपल भेजा था तो मुझसे क्यों नहीं पूछा? इस पर डॉक्टर ने कहा कि मैं एमडी मेडिसिन डॉक्टर हूं, मुझे काेराेना के लक्षण लग रहे थे, इसलिए सैंपल भेजा। इस पर कलेक्टर ने कहा कि तुम तो गधे हो तुमको कुछ नहीं आता है, और तुम फालतू में लोगों को परेशान कर रहे हो। लोगों में गलत मैसेज भेज रहे हो। तुम्हें डिग्री किसने दे दी, फिर इसके बाद में हमारे सिविल सर्जन से कहा कि तुमने एमबीबीएस कैसे कर लिया, तुम कुछ नहीं जानते हो।
कलेक्टर बोले -संदिग्ध महिला को आइसोलेशन की बजाय जनरल वार्ड में शिफ्ट किया, लापरवाही बरती
इस मामले में कलेक्टर ने कहा कि जिला अस्पताल के डाक्टरों ने महिला के मामले में पूरी लापरवाही की है। सबसे पहले तो उस महिला का काेराेना का टेस्ट लेने के बावजूद उसे जनरल वार्ड में शिफ्ट कर दिया। यह प्रोटोकाल्स के विरुद्ध था। इसके बाद जब सर्वे किया गया ताे अस्पताल प्रबंधन ने पीपीई किट उपलब्ध नहीं कराई। वो महिला को कल 19 अप्रैल को डाक्टरों ने भाेपाल रेफर कर दिया लेकिन रात तक एंबुलेंस की व्यवस्था नहीं कराई। जब तक एंबुलेंस की व्यवस्था कराई तब तब रिपोर्ट आ चुकी थी, इसके बावजूद महिला को जबरन भाेपाल रवाना कर दिया। रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद भी महिला काे तीन दिन के बच्चे के साथ कोविड अस्पताल चिरायु रवाना कर दिया और रात में सीएमएचओ फोन बंद करके साे गए। रात को तीन बजे तक हम लोगों ने कोऑर्डिनेट किया। तब हमीदिया में शिफ्ट कराया। आज (सोमवार) को सुबह जब वे यहां आए ताे जिला अस्पताल में महिला पर ध्यान तक नहीं दिया जा रहा था। जब मैंने फोन लगाया तब जाकर डॉक्टर पहुंचे। इन लोगों की लापरवाही है और इनके खिलाफ सख्त कार्रवाई के लिए लिखा जाएगा।
जिलेभर के डाॅक्टरों ने हड़ताल पर जाने का फैसला किया
डॉ. आरएस माथुर का कहना है कि कलेक्टर के व्यवहार से आहत होकर जिले के सभी डॉक्टराें ने हमारी यूनियन एमपीएमओ के तहत निर्णय किया है कि ऐसे कलेक्टर के रहते हम काम नहीं कर सकते। हम लोगों का भी कोई भी मान और सम्मान है।
क्या कलेक्टर हमको बताएंगे कि हमको किसका सैंपल भेजना है किसका नहीं भेजना है। इस लिए हम लोगों ने यह निर्णय लेकर जिले काे बिल्कुल शट डाउन कर दिया है। डाॅ माथुर ने कहा कि जिले के सभी डॉक्टर ऐसे कलेक्टर को तुरंत हटवाना चाहते हैं, तभी हम काम कर पाएंगे। जिस कलेक्टर को बातचीत का तरीका नहीं मालूम है, क्या हम लोग अनपढ़ हैं, हम लोगों ने भी एमबीबीएस, एमडी किया हुआ है और हम दिनरात लगे हुए हैं। हमने इसकी प्रतिलिपि मुख्यमंत्री, स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव आदि को भेजी है। अब कलेक्टर काे हटाए जाने के बाद ही जिले के डॉक्टर काम पर वापस लाैटेंगे।
सोशल मीडिया पर पब्लिक भड़की, सांसद मिलने पहुंचे, हड़ताल खत्म
इस मामले की जानकारी मिलते ही सोशल मीडिया पर पब्लिक बड़ा कोटी। लोगों का कहना था कि मेडिकल इमरजेंसी की हालात में यदि किसी ने कोई अपशब्द कह भी दिया है तो इसका मतलब हड़ताल पर जाना नहीं हो सकता। देर शाम सांसद रोडमल नागर, विधायक बापूसिंह तंवर, भाजपा जिलाध्यक्ष दिलबर यादव, पूर्व विधायक हेमराज कल्पोनी, अमरसिंह यादव पहुंचे। जिला अस्पताल में कलेक्टर, एसपी सहित तमाम डॉक्टर्स की मौजूदगी में रात करीब 9 बजे से रात सवा दस तब बैठक चली। सभी की समझाइश के बाद डॉक्टर्स मान गए हैं। डॉ प्रदीप पाठक ने बताया कि विवाद सुलझ गया है। अब जैसी सेवाएं चल रही थी वैसी ही चलती रहेंगी।
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