भोपाल। NARMADA HOSPITAL, BHOPAL पर आरोप है कि उसने 8 अप्रैल 2020 को इलाज कराने आए रिटायर्ड BHEL कर्मचारी जगन्नाथ मैथिल (77 साल) के मामले में प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया, मरीज को गलत अस्पताल में रेफर कर दिया और इसी देरी के चलते मरीज की मौत हो गई। कलेक्टर श्री तरुण पिथोड़े का कहना है कि उन्होंने अस्पताल के नाम नोटिस जारी किया है।
JP या हमीदिया भेजना था, चिरायु भेज दिया
शिकायत के अनुसार आठ अप्रैल को नर्मदा अस्पताल में सेवानिवृत्त भेल कर्मचारी जगन्नाथ मैथिल (77 साल) निवासी जहांगीराबाद में जब कोरोना के लक्षण पाए गए तो उन्हें प्रोटोकॉल के तहत जेपी या हमीदिया अस्पताल भेजने के बजाय चिरायु भेज दिया गया। जबकि चिरायु कोविड हॉस्पिटल है, जहां सिर्फ पॉजिटिव मरीजों का उपचार हो रहा है। संदिग्ध मरीजों को जेपी या हमीदिया ही भेजने के निर्देश हैं।
चिरायु ने वापस लौटा दिया, हमीदिया पहुंचने से पहले मौत
प्रशासन का दावा है कि सभी अस्पतालों को इसकी स्पष्ट जानकारी दी गई है। बावजूद इसके नर्मदा अस्पताल में करीब ढाई घंटे उपचार के बाद जगन्नाथ को चिरायु भेजा गया, जहां स्टाफ ने पेपर्स देखकर ही उन्हें हमीदिया के लिए रवाना कर दिया। रास्ते में ही जगन्नाथ की जान चली गई।
यदि प्रोटोकॉल का पालन होता तो पिता जी जिंदा होते: शिकायतकर्ता पुत्र
तीन दिन बाद शनिवार को आई रिपोर्ट में जगन्नाथ में कोरोना संक्रमण की पुष्टि हुई। मैथिल के बेटे मनोज ने रविवार को इस पर सवाल उठाए। मृत रिटायर्ड कर्मचारी के बेटे श्री मनोज मैथिल ने कहा कि हम उन्हें एक से दूसरे अस्पताल लेकर भटकते रहे। प्रोटोकॉल के उल्लंघन के कारण जो समय बर्बाद हुआ, यदि वह नहीं होता तो शायद पिता को बचाया जा सकता था।
नर्मदा अस्पताल ने गलती की है: डॉ निशांत श्रीवास्तव
हमीदिया अस्पताल के टीबी एंड चेस्ट डिपार्टमेंट के डॉ निशांत श्रीवास्तव के अनुसार, सरकार ने सभी तरह के मरीजों के प्रोटोकॉल तय कर रखे हैं। कोरोना का कोई भी संदिग्ध मरीज होगा तो उसका इलाज जेपी और हमीदिया अस्पताल में किया जाएगा। पॉजिटिव मरीजों का इलाज चिरायु और एम्स में होगा। कोई भी मरीज इलाज के लिए यदि निजी अस्पताल पहुंचता है तो उसे इलाज देने से इंकार नहीं किया जा सकता है। नर्मदा अस्पताल प्रबंधन को जगन्नाथ के मामले में इलाज के लिए सीधे स्थिति को देखते हुए हमीदिया अस्पताल भेजना चाहिए था, लेकिन उन्होंने चिरायु भेजकर गलती की।
टाइमलाइन: कब क्या हुआ
जगन्नाथ के बेटे मनोज मैथिल बताते हैं, भेल से पिता 2003 में रिटायर हो गए थे, 2013 से उनका सांस लेने में तकलीफ थी। जांच के बाद पता चला कि उनको अस्थमा हो गया है, तब से उनका इलाज कस्तूरबा अस्पताल में चल रहा था। 8 अप्रैल को सुबह उनकी तबीयत खराब हुई। इसके बाद दोपहर 3:30 बजे उन्हें नर्मदा अस्पताल में भर्ती किया गया। करीब ढाई घंटे बाद शाम 6 बजे अस्पताल ने उन्हें एम्बुलेंस से चिरायु रेफर कर दिया गया। 6:30 बजे हम वहां पहुंचे। इमरजेंसी में पेपर्स देखने के बाद डॉक्टर्स ने एम्स या हमीदिया ले जाने की सलाह दी। इस बीच उनकी तबीयत बिगड़ती जा रही थी। हम उन्हें लेकर हमीदिया के लिए निकले। 7 बजे वहां पहुंचे जब तक उनका निधन हो चुका था। डॉक्टर्स ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। कोरोना जांच के लिए उनके सैंपल लिए गए।
नर्मदा अस्पताल की दलील
इस बारे में अस्पताल का तर्क था कि पुरानी मेडिकल हिस्ट्री देखी गई। उनके शरीर में ऑक्सीजन का स्तर बहुत कम था। कोराेना के लक्षण दिखाई दे रहे थे, इसलिए सीधे उन्हें कोविड सेंटर चिरायु रेफर कर दिया गया। चौंकाने वाली बात यह है कि बिना किसी जांच रिपोर्ट के नर्मदा अस्पताल के डॉक्टरों ने एक मरीज को ना केवल कोरोनावायरस का पॉजिटिव मान लिया बल्कि इलाज के लिए चिरायु अस्पताल भी भेज दिया।
हमने प्रोटोकॉल का पालन किया है: डॉ रेनू शर्मा डायरेक्टर नर्मदा अस्पताल
रेणु शर्मा, डायरेक्टर, नर्मदा अस्पताल के मुताबिक, जब जगन्नाथ को लाया गया था, उस वक्त उसके शरीर में ऑक्सीजन का लेवल व बीपी भी कम था। सांस तेज चल रही थी, मरीज को अस्थमा की शिकायत 2013 से थी। लक्षण देख अस्पताल की एंबुलेंस से चिरायु भेजा। सारे प्रोटोकाल का पालन किया। मरीज को आइसोलेशन वार्ड में ही रखा था। संदिग्ध को हमीदिया या जेपी ही भेजने की जानकारी हमें नहीं थी।
सबको मालूम है, चिरायु में कैसे भेजना है: अजय गोयंका
अजय गोयनका, डायरेक्टर, चिरायु मेडिकल काॅलेज के मुताबिक, हमारे यहां सिर्फ कोरोना पॉजिटिव मरीजों को इलाज के लिए भर्ती किया जाता है। स्वास्थ्य आयुक्त ने संदिग्ध मरीजों की अलग व्यवस्था की है, इसके बारे में सबको मालूम है।
नर्मदा अस्पताल को नोटिस भेज रहे हैं: कलेक्टर
तरुण पिथोड़े, कलेक्टर के मुताबिक, नर्मदा अस्पताल प्रबंधन को जगन्नाथ की मौत के मामले में शोकॉज नोटिस के निर्देश सीएमएचओ को दिए गए हैं। प्रोटोकाॅल के तहत मरीज को हमीदिया भेजना चाहिए था, जबकि उसे चिरायु भेज दिया गया। इस बारे में पहले भी निजी अस्पतालों को बताया जा चुका है। नोटिस का जवाब आने के बाद आगे की कार्रवाई होगी।
कीबोर्ड के बटन ABCD (अल्फाबेटिकल) क्यों नहीं होते, क्या कोई रीजन है या गलती