Stop national pension scheme to fight coronavirus
रमेश पाटिल। कोरोना वायरस महामारी की वैश्विक समस्या से भारत भी ग्रसित है। लॉक डाउन और सोशल डिस्टेंसिंग के सुरक्षा उपायों के कारण केन्द्र सरकार के साथ प्रदेश के आय के साधनो पर विराम सा लग गया है और न जाने यह सिलसिला कब तक चलेगा। अचानक से प्रकट हुई कोरोना वायरस महामारी से लडने के लिए चिकित्सीय संसाधनो का अभाव दिख रहा है। जिसको क्रय करना या निर्माण करना बेहद जरूरी है जो जिसके लिए आर्थिक संसाधन उपलब्ध होना चाहिए।
कुछ प्रदेश सरकारों ने आर्थिक संसाधन की कमी को कर्मचारियो की वेतन कटौती और मुख्यमंत्री राहत कोष में प्राप्त दान से पुरा करने का प्रयास किया है लेकिन यह स्थायी व्यवस्था नही है। इस कोरोना वायरस महामारी से लड़ने और भविष्य में इस प्रकार के संकट की पूर्व तैयारी हेतु प्रदेश सरकारों को आर्थिक रूप से सक्षम होना जरूरी है। प्रदेश सरकारो को आर्थिक रूप से सक्षम करने का कार्य केन्द्र सरकार बेहतर तरीके से कर सकती है और यह कार्य कर्मचारियों के प्रति नीति में बदलाव से आसानी से किया जा सकता है। जिससे प्रदेश सरकार को कर्ज लेने से भी मुक्ति मिल जाएगी और खर्च करने के लिए राशि भी उपलब्ध रहेगी।
केन्द्र और प्रदेश सरकार का प्रतिमाह भारी व्यय कर्मचारियों की नेशनल पेंशन स्कीम (NPS) के शासकीय अंश को भरने से होता है। इसको रोके जाने से समस्या का समाधान हो सकता है लेकिन इसके लिए नेशनल पेंशन स्कीम जिससे देश का कर्मचारी भविष्य सुरक्षित नही होने के कारण भारी आक्रोशित है को बंद करना होगा और उसके स्थान पर 1 जनवरी 2004 से पूर्व प्रचलित पुरानी पेंशन/पारिवारिक पेंशन को बहाल करना होगा। जो काम केन्द्र सरकार बेहतर तरीके से कर सकती है। कुछ प्रदेश सरकारे अपने कर्मचारियो के लिए पुरानी पेंशन/पारिवारिक पेंशन बहाली करने का रूझान तो दिखा चुकी है लेकिन केन्द्र सरकार ने पहल नही की है इसलिए वे अपने कदम को आगे नही बढा रही है।
कर्मचारियो के अनिश्चित सेवानिवृत्त भविष्य और प्रदेश सरकारो को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए केन्द्र सरकार को अविलंब नेशनल पेंशन स्कीम (NPS) को बंद कर देना चाहिए जिससे प्रतिमाह केन्द्र सरकारो और राज्य सरकारो की आर्थिक बचत तो होगी ही दीर्घकालीन व्यय के लिए भी भारी पूंजी जमा हो जाएगी जो "कई वर्षो के बजट के बराबर" होगी।प्रत्येक कर्मचारी का नेशनल पेंशन स्कीम में राशि जमा है।जिसमे शासन और कर्मचारी का अंश बराबरी का 10-10% है जो अब केन्द्र शासन के कर्मचारियो के लिए बढकर 14% हुआ।नेशनल पेंशन स्कीम में जमा राशि पर सीधा व्यय करने का अधिकार शासन को नही है।
कर्मचारी चाहता है कि केन्द्र सरकार नेशनल पेंशन स्कीम को बंद करने की शुरुआत करे और नेशनल पेंशन स्कीम में जमा कुल राशि में से अपना शासकीय अंश वापस ले ले और कर्मचारियों के जमा अंश को जीपीएफ खाता खोलकर समायोजित कर दिया जाए। जीपीएफ खाते की राशि भी कर्मचारी की सेवानिवृत्ति तक शासन खर्च कर सकता है। मजे की बात इसमें यह है कि नेशनल पेंशन स्कीम के दायरे में शामिल कर्मचारियो को नगन्य संख्या को छोडकर लम्बे समय तक पुरानी पेंशन देने का आर्थिक भार भी नही आयेगा।
यही वो तरीका है जिससे देश का एक भी नेशनल पेंशन स्कीम धारी कर्मचारी असहमत नही होगा।कर्मचारियो में सेवानिवृत्ति भविष्य के लिए सुरक्षा का भाव होगा।आज हम देख रहे है रहे है की संकट की घडी में शासकीय कर्मचारी ही कोरोना वायरस को पराजित करने के संघर्ष में अपनी जान जोखिम में डालकर अग्रिम पंक्ति में डटा है।निजीकरण का चोला बेनकाब हो चुका है।
प्रदेशो को कर्जदार होने की जरूरत ही नही पडेगी यदि कर्मचारियो की शोषणकारी नीति नेशनल पेंशन स्कीम को बंद कर पुरानी पेंशन/पारिवारिक पेंशन लागू कर दी जाए।यह समय की मांग है कि शासकीय कर्मचारियो को विश्वास दिलाया जाए की सरकारे कर्मचारियो के वर्तमान के साथ भविष्य के प्रति भी चिंतित है।शुरुआत केन्द्र सरकार को करने की जरूरत है।
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