ऐसी परिस्थितियां लगभग हर इंसान की जिंदगी में आती है जब आपके हाथ से अचानक कोई अपराध हो जाता है। यह छोटा या बड़ा कुछ भी हो सकता है। व्यक्ति ने उसके लिए कोई प्लानिंग नहीं की थी। उसका कोई टारगेट नहीं था। उसके पास क्राइम का कोई मोटिव नहीं था लेकिन फिर भी क्राइम हुआ। जैसे कोई बस ड्राइवर (चालक) या ट्रक चालक विधि के अनुसार सड़क पर वाहन चला रहा है, बद-किस्मती से किसी बाइक चालक से टक्कर हो जाए और इस हादसे में बाइक चालक की मृत्यु हो जाए, तब बस चालक या ट्रक चालक का कोई आपराधिक उद्देश्य नहीं था। ऐसी स्थिति में पुलिस मामला दर्ज करती है और दावा करती है कि अपराध हुआ है, पुलिस आपको गिल्टी फील करवाती है और फिर संबंधित धारा के तहत मिलने वाली सजा से अवगत कराती है परंतु हम आपको बताते हैं कि इस तरह का अपराध सजा नहीं बल्कि क्षमा के योग्य होता है। आज के लेख में हम आपको बतायगे की दुर्घटना या दुर्भाग्यपूर्ण किया गया अपराध कब क्षमा योग्य होगा।
भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 80 की परिभाषा
अगर कोई व्यक्ति विधि (कानून) को ध्यान में रखकर कोई कार्य कर रहा है,एवं उस कार्य को करते समय दुर्भाग्य से या बद-किस्मती से कोई दुर्घटना या घटना घटित हो जाती है, उस दुर्घटना को होने से व्यक्ति का कोई आपराधिक उद्देश्य न हो एवं गलती से अचानक हो गई हो। उस घटना से अगर कोई अपराध घटित हो जाता हैं। तब भारतीय दण्ड संहिता की धारा 80, के अंतर्गत क्षमा योग्य होगा।
सबूत का भार किस पर होता है:-
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 80 के अंतर्गत दुघर्टना के बचाव हेतु सबूत का भार आरोपी पर होगा। आरोपी को यह साबित करना होगा कि उसका कार्य अचानक, अनाशयित, एवं विधिपूर्ण (कानून) तरीके से किया गया था। एवं आरोपी को यह भी साबित करना होगा कि उसने जो कृत्य किया है ,उसका उसमे कोई आपराधिक उद्देश्य नहीं था।
उधारानुसार वाद:- सम्राट बनाम शिव सहाय- दो मित्र आपस में कुश्ती लड़ रहे थे, जिनमे से एक मित्र अचानक पत्थर पर गिर जाता हैं। गम्भीर चोट के कारण उसकी मृत्यु हो जाती है। यहाँ पर आरोपी मित्र को न्यायालय द्वारा धारा 80 का संरक्षण दिया जाता है। क्योंकि यह अचानक दुर्घटना मात्र थी।
बी.आर. अहिरवार होशंगाबाद (पत्रकार एवं लॉ छात्र) 9827737665