80 के दशक की फिल्मों में अक्सर दिखाया जाता था एक लाचार मां अपने नवजात शिशु को मंदिर की सीढ़ियों पर रख कर चली जाती है। यह सब कुछ फिल्मों तक ही ठीक है। यदि रियल लाइफ में माता-पिता या फिर मामा (मामा से तात्पर्य शिशु की देखरेख करने वाला पालक) में से कोई एक किया दोनों 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चे को किसी भी स्थान पर लावारिस छोड़ कर चले जाते हैं तो पुलिस ना केवल उनके खिलाफ मुकदमा कायम करेगी बल्कि उन्हें गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया जाएगा।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 317 की परिभाषा
अगर कोई महिला या पुरुष उस बालक/बालिका जिसकी उम्र 12 वर्ष से कम है। उसके माता, पिता या देखे-रेख करने वाला कोई भी व्यक्ति निम्न कृत्य करेगा:-
1.शिशु को किसी सार्वजनिक स्थान या आरक्षित स्थान पर छोड़ देना।
2.बच्चे को बिना किसी संरक्षण के किसी भी स्थान पर छोड़ कर आना।
3.घर के बाहर लावारिस छोड़ देगा। जिससे हवा, पानी, सर्दी-गर्मी, जंगली जानवर आदि का खतरा हो।
ऐसा उपर्युक्त कोई कृत्य करेगा वो इस धारा के अंतर्गत अपराध होगा।
नोट:- अगर माता पिता या देखरेख करने वाला व्यक्ति शिशु को लावारिस छोड़ता है ओर शिशु की मौत हो जाती हैं। तब उस व्यक्ति को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 304 का दोषी माना जाएगा।
दण्ड का प्रावधान:- यह अपराध समझौता योग्य नहीं होते है। यह अपराध संज्ञये एवं जमानतीय होते है।इनकी सुनवाई सेशन न्यायालय द्वारा की जाती हैं। सजा-प्रस्तावित दण्ड विधि संशोधन विधेयक,2006 द्वारा सात वर्ष तक के कारावास या जुर्माना या दोनों के स्थान पर दस वर्ष तक के कठोर कारावास एवं एक लाख रुपए तक के जुर्माने में परिवर्धित किया गया है।
उधारानुसार:- एक महिला अपने छ: माह के एक जारज(नाजायज) बच्चे को एक अंधी महिला के पास यह कहकर छोड़कर चली गई कि वह शीघ्र ही वापस आकर बच्चे को ले जाएगी। परन्तु वह दूसरे गांव चली गई और कभी वापस नहीं आई। यहां न्यायालय ने कहा की उक्त महिला को 317 का दोषी नहीं माना जायेगा क्योंकि उस महिला ने बच्चे को सार्वजनिक स्थान पर लावारिस नहीं छोड़ा था, उस महिला ने बच्चे को संरक्षण में सौप कर गई थी,इसलिए वह महिला अपराधी नहीं है।
बी. आर. अहिरवार होशंगाबाद(पत्रकार एवं लॉ छात्र) 9827737665