नई दिल्ली। एक तरफ पब्लिक चाहती है कि पत्रकार हर विषय को कवर करें और दूसरी तरफ कुछ हाईप्रोफाइल लोग चाहते हैं कि पत्रकार उनकी बाउंड्री वॉल के बाहर रहें। कुछ प्रभावशाली लोग तो पत्रकारों को धमकाने के लिए कोर्ट में केस तक लगा देते हैं। आइए पढ़ते हैं मद्रास हाई कोर्ट का एक फैसला जिसमें उच्च न्यायालय ने निर्धारित किया कि पत्रकार किस विषय को समाचार के रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं और किसे नहीं।
मई 2011 में मद्रास हाई कोर्ट ने एक याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि मीडिया को किसी भी मुद्दे पर स्टोरी करने का हक है। मीडिया पर बढ़ते अवमानना के मामले पर मद्रास हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि ऐसे केस कुछ राजनीतिज्ञों और कारोबारियों के लिए मीडिया को डराने का हथियार बन गए हैं। हाईकोर्ट ने इस कड़ी टिप्पणी के साथ ही दो पत्रकारों और एक अंग्रेजी दैनिक अखबार के खिलाफ चल रही अवमानना मामलों की सुनवाई रद्द कर दी।
जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने इन मामलों को खारिज करते हुए कहा, आपराधिक मानहानि के मामले उन कारोबारी संस्थाओं और ताकतवर राजनेताओं के लिए पत्रकारों को धमकाने का एक साधन बन गए हैं, जिनके हाथ काफी लंबे हैं। जज ने कहा, मीडिया को किसी मुद्दे पर स्टोरी प्रस्तुत करने का हक है।
रिपोर्टिंग में मामूली गलती के कारण केस चला सकते हैं क्या
जज ने रिपोर्टिंग में मात्र मामूली गलतियों को देखते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष ऐसी मामूली गलती पर अदालती कार्यवाही शुरू करने का औचित्य साबित नहीं कर सकते हैं। हमेशा गलतियों को सुधारा जा सकता है। हालांकि, यह सुधार तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करेगी।
यह था मामला
सन 2015 में हाईकोर्ट में एक याचिका प्रस्तुत की गई थी जिसमें खनन में अनियमितता बरतने का आरोप लगाया गया था। याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार करने के बाद हाईकोर्ट ने वीवी मिनरल्स कंपनी के नाम नोटिस जारी किया था। इसी के आधार पर समाचार प्रकाशित किए गए थे। कंपनी ने दावा किया कि पत्रकारों को नोटिस के आधार पर समाचार प्रकाशित करने का अधिकार नहीं है। इस प्रकार का समाचार प्रकाशित करके कंपनी की मानहानि की गई है।