कोरोना का दुष्प्रभाव भारत में अभी सतह पर दिख रहा है। कुछ देशों में गहरे परिणाम सामने आने लगे हैं। अपने को दुनिया की बड़ी शक्ति कहने वाला अमेरिका घुटनों पर आ गया है। अप्रैल 2020 में ही 2.05 करोड़ अमेरिकियों को नौकरी गंवानी पड़ी। अमेरिका में बेरोजगारी दर बढ़ कर 14.7 प्रतिशत हो गई है। अमेरिकी श्रम विभाग के अनुसार अकेले अप्रैल के बेरोजगारी के आंकड़ों ने अक्तूबर-2009 में आई वैश्विक मंदी को भी पीछे छोड़ दिया है। वर्ष 1929 की महाबंदी के दौरान भी कुछ ऐसे ही हालात थे। 1933 में अमेरिका में बेरोजगारी दर 25 प्रतिशत थी। हालांकि इस साल फरवरी में अमेरिका में बेरोजगारी दर 50 साल के न्यूनतम स्तर 3.5 प्रतिशत पर आ गई थी।
इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (आइएलओ) ने दावा किया है कि मौजूदा दौर में दुनिया में हर पांच में से चार यानी 80 प्रतिशत मजदूर बेरोजगारी व भूख से प्रभावित हैं। दुनिया में ऐसे परिवारों की संख्या लगातार बढ़ रही है ये परिवार भुखमरी की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं। लॉकडाउन के चलते तंगहाल लोगों की संख्या में प्रतिदिन करोड़ों का इजाफा हो रहा है। आईएलओ का दावा है कि दुनिया में ऐसे मजदूरों की संख्या 330 करोड़ है जो दो जून की रोटी भी नहीं जुटा पा रहे हैं। वहीं 106 करोड़ कामगारों के परिवारों के सिर पर इस बात का खतरा मंडरा रहा है कि आगे रोजी-रोटी का क्या होगा ?
बेरोजगारी की मार यह मार सिर्फ निचले स्तर पर ही नहीं उच्च स्तर पर भी पड़ेगी। अमेरिका जैसे देशों में बेरोजगारी की दर वर्ष 1940 के स्तर पर पहुंच गई है। बीते छह सप्ताह के दौरान तीन लाख लोग बेरोजगार हुए हैं। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के अनुसार कोरोना संकट के चलते विभिन्न देशों में मई के पहले सप्ताह के दौरान बेरोजगारी की दर बढ़कर 27.11 प्रतिशत हो गई थी। जो मार्च मध्य तक 7 प्रतिशत से कम थी। शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी दर सबसे अधिक 29.22 प्रतिशत रही, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी दर 26.69 प्रतिशत आंकी गई।
अब भारत, सीएमआईई द्वारा लगातार जारी किए जा रहे आंकड़े बताते हैं कि कोरोना की शुरुआत के बाद से बेरोजगारी दर में निरंतर इजाफा हो रहा है। 29 मार्च को देश में यह दर 23.81 प्रतिशत थी। अप्रैल के अंत में दक्षिण भारत के पुड्डुचेरी में यह दर सर्वाधिक 75.8 प्रतिशत थी। इसके बाद तमिलनाडु में 49.8, झारखंड में 47.1, बिहार में 46.6, हरियाणा में 43.2, कर्नाटक में 29.8, उत्तर प्रदेश में 21.5 और महाराष्ट्र में 20.9 प्रतिशत थी।
विश्व में एक बड़ा तबका ऐसा भी है जिसे कोरोना का डंक रोजगार पर पड़ता महसूस हो रहा है। ब्रिटिश रिसर्च कंपनी क्रार्सबी टेक्स्टर ग्रुप के सर्वे के दौरान ब्रिटेन में 31 प्रतिशत, आस्ट्रेलिया में 33, अमेरिका में 41, भारत में 56 और हांगकांग में 71 प्रतिशत लोगों को नौकरी जाने का डर सता रहा है। सर्वे के मुताबिक सबसे अधिक खतरा आईटी, निर्माण और मीडिया कंपनियों पर मंडरा रहा है।
रेटिंग एजेंसी ‘क्रिसिल’ के मुताबिक विमानन क्षेत्र के हालात सामान्य होने में दो साल लग सकते हैं। प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से इस क्षेत्र में करीब 75 लाख नौकरियां खतरे में आ गई हैं। इससे जुड़े होटल, ट्रैवल, टैक्सी और अन्य रोजगारों पर संकट के बादल छाए हुए हैं।
अर्जेंटीना में हालात दिन-ब-दिन बदतर होते जा रहे हैं। कुल 4 करोड़ 40 लाख की आबादी में से एक तिहाई लोग गुरबत में जी रहे हैं। महामारी के पहले से 80 लाख लोग भोजन की गुहार लगा रहे थे। इनमें 30 लाख नए लोग और आ जुटे हैं। मिस्र में भी हालात खराब हो चुके हैं। आईएलओ का दावा है कि राजधानी काहिरा में ही दो करोड़ लोगों का रोजगार बंद हो चुका है।
दिनोंदिन भयावह हो रही स्थिति के मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र ने कमजोर देशों में जरूरी संसाधन उपलब्ध करवाने के लिए सरकारों, कंपनियों और अरबपतियों से 6.7 अरब डॉलर दान करने की अपील की है। विशेषज्ञों का कहना है कि मदद न होने का अर्थ भुखमरी की वैश्विक महामारी को बढ़ावा देना होगी जिसके चलते दुनिया को अकाल, दंगे, संघर्ष का सामना करना पड़ सकता है। एक आकलन के अनुसार हालात यदि यही रहे तो इस साल के अंत तक 26.6 करोड़ लोग भुखमरी के कगार तक पहुंच जाएंगे। विचार का विषय यह है, यह सब रुके तो कैसे?
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।