देश बड़ी मुश्किल में है। आज़ादी के इतने बरस के बाद भी गरीबी, कृषि संकट और अब असामान्य मौसम की वजह से कृषि अलाभकारी धंधा थी। अब कोरोना ने गाँव में बेरोजगारी भी बढ़ रही है। अनुमान है ग्रामीण जीवन कष्टप्रद होने के साथ असुरक्षित भी होता जा रहा है। पहले गांव इसलिए छोडा था कि अन्य कोई विकल्प नहीं था , अब मजबूरी में लौट रहे हैं इस वापिसी की रफ्तार और पैमाना बहुत अधिक है।
सरकार के वैश्विक प्रवास के आंकड़े हैं, विश्व प्रवास दिवस 2020 में कहा गया है कि वैश्विक प्रवास तेजी से बढ़ रहा है। लेकिन सरकार के पास देश के भीतर प्रवास के आंकड़े मौजूद नहीं हैं। भारत में प्रवासियों की पिछली आधिकारिक गिनती 2011 की जनगणना में की गई थी। मगर यह गणना अप्रासंगिक थी, जो शहरी इलाकों में बड़ी संख्या में मौजूद 'अवैध' बस्तियों के बारे में कुछ नहीं बताती है। इन बस्तियों में अत्यधिक भीड़भाड़ है, शहरी सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं और आम तौर पर ये औद्योगिक गतिविधियों का केंद्र हैं, जिनकी वजह से शहर में प्रदूषण बढ़ता है।
शहरी भीड़ अदृश्य गाँव के लोग अब दिखने लगे हैं। हजारों-लाखों प्रवासी राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं, क्योंकि सरकार उन्हें इस डर से घर नहीं जाने देगी कि उनके जरिये गांवों और सुदूरवर्ती जिलों में कोरोना वायरस फैल जाएगा। ये नजर इसलिए आ रहे हैं, कि वे किसी भी कीमत पर घर जाना चाहते हैं और सार्वजनिक परिवहन के साधन नहीं चल रहे हैं। वे अपना सिर पर सामान उठाए पैदल ही बाल-बच्चों समेत लौट रहे हैं। वे बिना खाए-पिए पैदल चल रहे है और न ही उनके पास सोने का कोई ठिकाना है। जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने हमसे कहा कि हमें खाना नहीं चाहिए, वे तत्काल अपने घर लौटना चाहते हैं।
केंद्र सरकार ने 12 अप्रैल,2020 को उच्चतम न्यायालय को सौंपे अपने हलफनामे में कहा कि देश के सभी राज्यों में करीब 40000 राहत शिविर हैं, जिनमें करीब 14 लाख प्रवासी कामगारों को रहने और खाने की सुविधा दी जा रही है। सरकार का यह अनुमान वास्तविक से बहुत कम है। बहुत से लोग हैं, जो शिविरों में नहीं रह रहे हैं। वे सड़कों पर रह रहे हैं और अपने घर पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। इसका क्या असर होगा? पहला उस काम पर पड़ेगा, जो वह छोड़कर आये हैं। उनका श्रम सभी अर्थव्यवस्थाओं के लिए अहम था है और रहेगा। देश में इसका असर लॉकडाउन खत्म होने और अर्थव्यवस्था को फिर से चालू करने के लिए श्रमिकों की किल्लत होने के बाद महसूस किया जाएगा। क्या हम उन्हें ज्यादा तवज्जोदे सकेंगे, उन्हें बेहतर अवसर एवं लाभ मुहैया करा सकेंगे जिससे वे वापस लौट आएं?
एक और हकीकत हैं, जिनसे कोविड-19 ने हमें रूबरू कराया है। यह बीमारी उन जगहों पर सबसे ज्यादा फैलने के आसार हैं, जहां कोई शहरी सेवाएं नहीं हैं, जहां बस्तियों में अत्यधिक भीड़भाड़ है, जहां साफ पानी की आपूर्ति एवं स्वच्छता अपर्याप्त हैं और लोगों के पास सुरक्षित रहने का कोई जरिया नहीं है। यह वे जगह हैं, जहां हमने अपने कार्यबल को रहने के लिए छोड़ दिया है।
आखिर में जब प्रवासी अपने घर लौट जाएंगे तो क्या होगा? वे वहां क्या करंगे? क्या उन्हें उनके गाँव में रोजगार मिल जायेगा? अंतिम विकल्प के रूप में क्या वे वापस लौटना चाहेंगे? वास्तव में यह ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं में निवेश करने का मौका है जिससे उनके पास अपना घर न छोडऩे का विकल्प रहे और श्रम शक्ति उत्पादन शील बने।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।