अब यह तथ्य स्थापित होने लगा है कि वैश्विक रूप से महामारी फैलने के जानकारी भारत समेत सभी देशों को थी। साथ ही यह स्पष्ट होने लगा है कि वैज्ञानिक चेतावनियों को अनदेखा भी सबने किया है। इन सारे संदेहों की परिधि से निकलते संकेत इस बात का प्रमाण हो सकते हैं कि यह आपदा मानव निर्मित है और यह इससे पहले महामारियों के रूप में आई आपदा की एक कड़ी है।
याद कीजिये, नवंबर, 2002 और जुलाई, 2003 के आठ महीनों के बीच दक्षिणी चीन में जिस सार्स रोग का आरंभ हुआ था, वह कुछ समय बाद ही 37 देशों में फैल गया था। जुलाई, 2003 में यह महामारी लगभग समाप्त हो रही थी और उस समय तक वैक्सीन (टीका) तैयार होक्र बाज़ार में आ गया था। इबोला वायरस अफ्रीका में दिसंबर, 2013 में आरंभ हुआ और दो वर्ष बाद जून,2016 में समाप्त हुआ। ततसमय संयुक्त राज्य अमेरिका की भूमिका इबोला संकट को दूर करने में प्रमुख रही, पर कोरोना वायरस के निदान में अब तक उसकी प्रमुख भूमिका नहीं रही है। आज अमेरिका कोरोना वायरस से प्रभावित सबसे बड़ा देश है, जहां इससे संक्रमित मरीजों की संख्या साढ़े सोलह लाख है और इससे मृतकों की एक लाख के करीब है।
याद कीजिये, 20 जनवरी, 2017 को डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका के 45 वें राष्ट्रपति बनने से पहले आगामी महामारियों के संबंध में जो चेतावनियां दी गयी थीं, उन्हें अनदेखा किया गया। 64 वर्ष पहले संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थापित (1955) एलर्जी एवं संक्रामक रोग के राष्ट्रीय संस्थान (NIAID) के वर्तमान निदेशक डॉ एंथनी फाउची, जो प्रमुख अमेरिकी चिकित्सक एवं प्रतिरक्षा विज्ञानी ने भी ऐसी ही चेतावनी दी थी। वे जनवरी 2020 से व्हाइट हाउस कोरोना वायरस टास्क फोर्स के प्रमुख सदस्य हैं। डॉ फाउची ने वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सहित अब तक छह अमेरिकी राष्ट्रपतियों- रोनाल्ड रीगन, जॉर्ज बुश, बिल क्लिंटन, जॉर्ज डब्ल्यू बुश और बराक ओबामा को एचआइवी/ एड्स एवं अन्य घरेलू और वैश्विक स्वास्थ्य के मुद्दों पर कामयाब सलाह दी है। वे वर्ष 1984 से अब तक एनआइएआइडी के निदेशक पद पर हैं। उन्होंने ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से पहले जनवरी 2017 के आरंभ में एक ऐसे ही आकस्मिक प्रकोप की चेतावनी दी थी और उन्होंने यह भी कहा था कि महामारी से बचने के लिए कहीं अधिक तैयारी की आवश्यकता है। उन्होंने जॉर्ज टाउन यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर में ‘पैनडेमिक प्रीपेयर्डनेस इन द नेक्स्ट यूएस प्रेसिडेंशियल एडमिनिस्ट्रेशन’ शीर्षक विषय पर दिये अपने भाषण में कहा था कि आगामी प्रशासन के लिए संक्रामक रोगों का कार्यक्षेत्र चुनौतीपूर्ण होगा। उनके द्वारा कोरोना वायरस के तीन वर्ष पहले महामारी के जिस अचानक प्रादुर्भाव की उन्होंने जो चेतावनी दी थी वो कोविड-19 ही संभावित था , वह आज बिल्कुल सही निकली।
तब इस संक्रामक रोग को रोकने के लिए जिस धनराशि की आवश्यकता थी, उसे समय पर प्रदान नहीं किया गया। डॉ फाउची को 2016 के ग्रीष्म में जीका वायरस के फैलने के समय का अनुभव था। उन्होंने जब राष्ट्रपति से फरवरी में इसके लिए 1.9 बिलियन डॉलर देने को कहा, तो यह राशिसितंबर तक प्राप्त नहीं हुई। डॉ फाउची सहित जिन विशेषज्ञों ने इस महामारी की चेतावनी दी थी, उस पर अमेरिका ने ध्यान नहीं दिया।
सबको मालूम है कोरोना वायरस चीन के वुहान शहर से फैला। चीन के वुहान सेंट्रल अस्पताल के नेत्र चिकित्सक डॉ ली वेन लियांग ने 30 दिसंबर 2019 को अपने साथी डॉक्टरों को एक चैट ग्रुप में भेजे गये अपने संदेश में इस वायरस के संभावित खतरों के बारे में बताया था और यह चेतावनी दी थी कि इससे बचने के लिए वे खास प्रकार के हिफाजती कपड़े पहनें और संक्रमण से बचने के लिए जरूरी सावधानी बरतें। इस पर गौर करने की जगह डॉ ली पर अफवाह फैलाने का आरोप लगाया गया और उन्हें उस पत्र पर हस्ताक्षर करने को कहा गया था, जिसमें गलत सूचना देने के आरोप के साथ उसके कारण समाज में भय फैलाने की बात कही गयी थी| कहा जा रहा है डॉ ली बाद में कोरोना वायरस से संक्रमित हुए और 10 जनवरी को अस्पताल में भर्ती हुए, 7 फरवरी 2020 को डॉ ली वेन लियांग की कोरोना वायरस से संदिग्ध मृत्यु हो गयी।
याद रहे, उनके अस्पताल में भर्ती होने के दस दिन बाद चीन ने कोरोना वायरस के कारण आपातकाल की घोषणा की। अमेरिका और चीन ने अगर पहले ही ये चेतावनियां सुनी होतीं और इन्हें ध्यान में रखकर कार्य किया होता, तो कोरोना वायरस का ऐसा कहर दिखायी नहीं देता| भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी वक्त रहते इन चेतावनियों पर ध्यान दिया होता, परिणाम कुछ और होता।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।