नई दिल्ली। वर्तमान युग नेटवर्क का युग है। नेटवर्क बनाकर फैलने वाली बीमारी कोविड-19 ने आदमी को घर में बंद पर बहुत से बंद नेटवर्कों को चालू कर दिया है। सबसे पहले फैमिली नेटवर्क, स्कूली नेट वर्क,आफिस का नेटवर्क, एक घर में कई- कई नेटवर्क चल रहे हैं। नेटवर्क तो हम सब के आसपास हैं। इनमें से कुछ नेटवर्क ऐसे हैं जिनके बारे में सभी जानते हैं। जैसे दूरसंचार नेटवर्क और कंप्यूटर नेटवर्क। लॉक डाउन ज्यादातर वक्त जहां टेलीफोन और स्मार्ट फोन नेटवर्क इन दिनों कहने को ठीक काम रहे हैं हैं, वहीं कई बार वे गड़बड़ भी साबित होते हैं और बातचीत नहीं हो पाती। परेशान करने वाले कारोबारी संदेश और कई बार हमें ठगने वाले, बैंक खाते की जानकारी लेकर चूना भी लगा रहे हैं।
कुछ ऐसे नेटवर्क भी होते हैं जिनके बारे में आम हम कम जानते हैं लेकिन उनके बारे में गहरा अध्ययन होता हैं। जैसे जीवविज्ञान से जुड़े नेटवर्क जहां प्रोटीन एक दूसरे से संपर्क करते हैं इन्हें 'डीएनए प्रोटीन नेटवर्क' या फिर इसे 'जीन को-एक्सप्रेशन नेटवर्क ' कहा जाता है। ये सभी मनुष्य समेत तमाम जीवों मसलन पशुओं, पक्षियों या कीटों के जन्म, वृद्धि या उनके स्वास्थ्य से संबंधित रहती हैं। ये नेटवर्क दशकों तक सरकारी और निजी क्षेत्र की प्रयोगशालाओं के अध्ययन का विषय रहे हैं। इसके अलावा आजकल हर कोई इंटरनेट की सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट मसलन फेसबुक, लिंक्डइन, ट्विटर आदि का इस्तेमाल करता है।
हर नेटवर्क में 'नोड' और 'एज' होते हैं। कोविड-19 के मामले में हम मनुष्य नोड हैं और एज वो हैं जो नेटवर्क तैयार करते हैं। इन एज की बात करें तो लैंडलाइन टेलीफोन के मामले में यह केबल हो सकती है, मोबाइल फोन के मामले में यह इलेक्ट्रॉनिक संकेत होता है और मानव सोशल नेटवर्क के मामले में यह एक मनोवैज्ञानिक भावना होता है कि लोग हमें पसंद करते हैं।पिछले दो दशक या उसके आसपास के समय में यह चकित करने वाली बात सामने आई है उपरोक्त तमाम अलग तरह के नेटवर्क मसलन दूरसंचार, जीव विज्ञान, बीमारी आदि को कुछ आम अवधारणाओं की मदद से समझा जा सकता है।
वैज्ञानिकों ने नेटवर्क के अन्य गुणधर्म भी विकसित किए हैं: मसलन नेटवर्क में नोड्स का आकार, घनत्व, डिग्री तथा डिग्री की केंद्रीयता आदि। ये तमात बातें आपको ऊबाऊ लग सकती हैं और आप सोच सकते हैं कि इन सबके बारे में वैज्ञानिक ही जानें मैं इन बातों को लेकर क्यों परेशान होऊं। परंतु जब इन्हें आम लोगों के नेटवर्क पर लागू किया जाता है तो यह दिलचस्प नतीजे पेश करता है।जैसे ओल्ड बॉयज नेटवर्क वह होता है जहां आप केवल उन लोगों को अपनी कंपनी में नौकरी देते हैं जो उसी हाईस्कूल से पढ़े हों जिसमें आप पढ़े थे। सन 1950 के दशक तक देश की बहुराष्ट्रीय कंपनियों में यह नेटवर्क व्यापक रूप से मौजूद था। लोगों को नौकरियों के साक्षात्कार का अवसर पाने के लिए दून स्कूल, सेंट पॉल या लॉरेंस स्कूल से पढ़ा होना जरूरी होता था।
अधिकांश सोशल नेटवर्क में समान लोगों के साथ लगाव नजर आता है। वे अपने जैसे लोगों के साथ रिश्ता बनाना पसंद करते हैं। इसमें सामाजिक वर्ग, नस्ल, लिंग, धर्म और पेशा आदि निर्णायक होते हैं। अमेरिका में हुए शोध बताते हैं कि 50 प्रतिशत शुरुआती रोजगार ऐसे ही सामाजिक नेटवर्क से मिलते हैं। शोधकर्ताओं ने आमतौर पर पाया कि श्रम बाजार खासकर प्रवासी बाजार में ऐसे नेटवर्क देखने को मिलते हैं।
इन दिनों एक नया नेटवर्क हो वायरल वीडियोज का। इंटरनेट पर तमाम ऐसे वीडियो होते हैं जो अचानक आपका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करते हैं और लोग इन्हें अपने दोस्तों और करीबियों को भेजना जारी रखते हैं। पिछले कुछ समय में कुछ वीडियो को १० करोड़ से ज्यादा लोगों ने देखा है। यह ऐसे ही वायरल होने की बदौलत हुआ है। परंतु किसी वीडियो के इस स्तर पर वायरल होने के पीछे की वजह कई बार चुनाव और वैमनस्य फैलाना भी है,चुनाव से किसी को दल या व्यक्ति को कुर्सी मिलती है मिल सकती है। वैमनस्य से तो बर्बादी ही मिलेगी, गलती से भी ऐसे नेटवर्क से जुड़े हो तो तो फौरन बाहर आ जाना चाहिए।
अब बात उस शोध की जो नेटवर्क प्रभाव के बारे में बताता है, जब नेटवर्क प्रभाव मौजूद होता है तब किसी व्यक्ति को दी जाने वाली सेवाओं का मूल्य अन्य लोगों द्वारा किए जाने वाले उपयोग के साथ बढ़ता जाता है। इसे समझने के लिए क्रेडिट कार्ड उदहारण है। मसलन जितने ज्यादा लोग क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करेंगे, उतनी अधिक दुकानें उसे स्वीकार करेंगी और इस प्रकार क्रेडिट कार्ड धारकों की तादाद बढ़ती जाएगी। समकालीन वेंचर कैपिटल उद्योग इसी से चल रहा है।
कोविड -19 के नेटवर्क के कारण, 'संक्रमण', 'सामाजिक दूरी', 'फैलाव', 'एकांतवास' और प्रसार जैसे शब्द अचानक हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन गए हैं। यह भी एक नया नेटवर्क है, दुनिया और हम सब के लिए।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।