नौतपा शुरू हो गए हैं और किसी के साथ भीषण गर्मी का दौर भी शुरू हो गया है। सवाल यह है कि 4 जनवरी को जब सूर्य पृथ्वी से 14 करोड़ 73 लाख किमी दूर था तब भारत में कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी और 26 मई 2020 जब सूर्य पृथ्वी से 15 करोड़ 15 लाख किमी दूर हैं तब न केवल भीषण गर्मी पड़ रही है बल्कि नौतपा में अचानक तापमान पारा तोड़कर बाहर निकलने के मूड में है। बेतहाशा गर्मी पढ़ रही है।
सूर्य एक करोड़ किलोमीटर दूर हो गया तो फिर गर्मी क्यों पड़ रही है
4 जनवरी को जब सूर्य पृथ्वी से 14 करोड़ 73 लाख किमी दूर था तब भारत में कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी और 26 मई 2020 जब सूर्य पृथ्वी से 15 करोड़ 15 लाख किमी दूर हैं तब गर्मी पड़ रही है। सवाल यह है कि जब सूर्य पृथ्वी से 1 करोड़ों किलोमीटर दूर हो गया तो भारत में गर्मी क्यों पड़ रही है। इसका कारण हमारे भौगोलिक क्षेत्र का सूर्यकिरणों से सीधा सामना है। जिस समय सूर्य पृथ्वी के नजदीक था तब भारत पृथ्वी के पिछले हिस्से पर था। अब पृथ्वी के जिस भाग पर सूर्य की सीधी किरणें पड़ रही हैं भारत वहीं पर स्थित है।
नौतपा क्या होता है, इसमें गर्मी अचानक क्यों बढ़ जाती है
विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने बताया कि 22 दिसंबर को यह किरणें हमें 45 डिग्री से तिरछी दिख रही थी तो अब यह कोण 87 डिग्री का हो गया है। 15 जून को तो दोपहर में यह ठीक सिर के ऊपर आकर 90 डिग्री का हो जाएगा। सारिका ने बताया कि गर्मी के मौसम में आम लोगों को सचेत करने का 25 मई से 2 जून तक की अवधि को 'नौतपा' के नाम से जाना जाता है। इस दौरान सूर्य की परिक्रमा करती पृथ्वी से देखने पर सूर्य के पीछे रोहिणी नक्षत्र आ जाता है।
ग्रीष्मकाल का कैलेंडर है नौतपा
365 दिन में पृथ्वी की परिक्रमा अवधि के कारण सूर्य के पीछे रोहिणी नक्षत्र आने की यह खगोलीय घटना लगभग इन्हीं दिनांक में हर साल होती है। अतः नौतपा ग्रीष्मकाल का एक कैलेंडर है। इस समय तापमान अधिक होने का मुख्य कारण सूरज की किरणों का धरती के इस भाग पर सीधा पड़ना होता है।
इस समय सूर्य की किरणें एक वर्गमीटर क्षेत्र पर पड़ती हैं जिससे उनकी पूरी गर्मी हमें महसूस होती है,लेकिन 22 दिसंबर को वही किरणें लगभग डेढ़ वर्गमीटर में फैल जाती हैं, जिससे गर्मी का अहसास कम होता है।
किसी भूभाग पर गर्मी का महसूस होना सूर्य की किरणों के कोण के अलावा, वहां बहने वाली हवा की दिशा, पहाड़ी क्षेत्र, भूमि के ढ़ाल, मिट्टी के प्रकार , आद्रता, पेड़-पौधों की संख्या और वहां के प्रदूषण पर भी निर्भर करता है।