भोपाल। मध्यप्रदेश में जैसे-जैसे दिग्गज नेताओं की संख्या कम होती गई वैसे-वैसे गुटबाजी भी कम होती चली गई। फिलहाल सिर्फ दो गुट बचे हैं। सबसे मजबूत दिग्विजय सिंह की सेना और पिछले डेढ़ साल में मजबूत हुआ कमलनाथ कैंप। अब तक दोनों मिलकर ज्योतिरादित्य सिंधिया की महत्वाकांक्षाओं का शिकार करते थे परंतु अब सिंधिया नहीं है लेकिन शिकार करने की आदत तो है।
कमलनाथ की रणनीति क्या है
राजनीति में 40 साल के अनुभवी कमलनाथ कभी भी 50 ओवर का मैच खेलकर जीतने की रणनीति पर काम नहीं करते। वह अक्सर शॉर्टकट तलाश करते हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने ऐसा ही किया था। भीड़ को भाषण सुनाने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया और जीतू पटवारी धूल खा रहे थे। नाराज कार्यकर्ताओं को बिना कुछ दिए शांत करने की जिम्मेदारी दिग्विजय सिंह ने उठा रखी थी। मुख्यमंत्री बने कमलनाथ। उपचुनाव में भी कुछ ऐसे ही करने के मूड में है। कांग्रेस से भाजपा में गए नेताओं से कई दौर की बातचीत हो चुकी है। कमलनाथ की रणनीति है कि कांग्रेस के विधायक भाजपा में गए हैं इसलिए उनके विरोधियों को कांग्रेस से टिकट दिया जाए तो लड़ाई जीतना आसान हो जाएगा। पैसा और परिश्रम दोनों कम खर्च होंगे। वैसे भी भीड़ को भाषण सुनाने का हुनरमंद नेता ना तो कमलनाथ कैंप में है और ना ही दिग्विजय सिंह की सेना में।
राजा दिग्विजय सिंह के सेनापतियों ने क्या किया
प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने उप चुनाव की तैयारियों के संदर्भ में प्रदेश कांग्रेस कमेटी की एक ऑफिशियल मीटिंग आयोजित की। सभी जानते हैं कि सारे डिसीजन लेते तो मध्य प्रदेश के नेता ही हैं लेकिन दिल्ली में जाकर। इस बार भी टिकट फाइनल दिल्ली से ही होंगे। लेकिन फिर भी मीटिंग की औपचारिकता पूरी की गई। राजा दिग्विजय सिंह के प्रमुख सेनापति अजय सिंह राहुल ने दलबदलू को टिकट न देने का मुद्दा उठाया। दूसरे सेनापति डॉक्टर गोविंद सिंह ने इसका समर्थन किया। कुल मिलाकर दिग्विजय सिंह के सैनापतियों ने कमलनाथ को घेर लिया है। याद दिला दें कुछ दिनों पहले न्यूज चैनल आजतक पर कमलनाथ का एक बयान चला था, जिसका बाद में खंडन किया गया।
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