domestic violence during lockdown india
राजेन्द्र बंधु। आमतौर पर 'घर' इंसान के लिए सबसे ज्यादा सुरक्षित माना जाता है लेकिन लाकडाउन के दौरान यह महिलाओं के लिए सबसे ज्यादा असुरक्षित सबित हुआ है। हाल ही में राष्ट्रीय महिला आयोग को दिल्ली की एक युवती ने बताया कि उसके पिता और भाई उसके साथ लगातार मारपीट कर रहे हैं। त्रिपुरा में एक भाई ने अपनी बहन को सुसराल में पिटाई से बचाने की गुहार महिला आयोग से लगाई।
राष्ट्रीय महिला आयोग ने स्वीकारा लॉकडाउन में महिला हिंसा दोगुना
नैनीताल की एक महिला ने फोन करके बताया कि उसका पति उसे लगातार पीटता है और लाकडाउन के कारण वह बचने के लिए घर से बाहर भी नहीं निकल पा रही है। शराब पीने पर टोंकने के कारण हरियाणा के झज्जर में एक आदमी ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी। हरियाणा महिला आयोग को एक महिला ने बताया कि उसके पति ने कई दिनों से उसे बंधक बनाकर रखा और खाना भी नहीं दिया। इसी राज्य के तुम्बाहेडी गांव में एक महिला ने प्रताड़ना से तंग आकर आत्महत्या कर ली। लाकडाउन के दौरान जब कोरोना के आंकड़े लोगों तक पहुंच रहे हैं, तब महिला हिंसा की ये घटनाएं घर की दहलीज भी पार नहीं कर पाई। राष्ट्रीय महिला आयोग ने यह बात स्वीकार की है कि लाकडाउन के दौरान घरों में महिलाओं पर हिंसा की घटना में दुगनी बृद्धि हुई है।
लॉकडाउन के दौरान भारत ही नहीं पूरे विश्व में महिलाओं पर हिंसा
जिस तरह युद्ध और विस्थापन का सबसे ज्यादा असर महिलाओं पर पड़ता है, उसी तरह कोरोना महामारी और लॉकडाउन का भी सबसे भयावह दुष्परिणाम महिलाओं को भुगतना पड़ रहा है। यह स्पष्ट है कि कोरोना के कारण दुनिया भर में लाकडाउन की स्थिति है और महिलाओं को प्रताड़ित किए जाने की घटनाएं भी किसी एक देश तक सीमित नहीं है। दुनिया के कई देशों जैसे —चीन, फ्रांस, स्पैन, अमेरिका आदि में महिलाएं लाकडाउन के कारण हिंसा की शिकार हो रही है। इसीलिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतेरेस ने विश्व के सभी देशों से अपील की है कि कोविड—19 से बचने की रणनीति में महिलाओं की सुरक्षा पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। क्योंकि लाकडाउन महिलाओं को सुरक्षा और न्याय से वंचित कर सकता है।
लॉकडाउन: मध्यप्रदेश के 5 जिले जहां सबसे ज्यादा घरेलू हिंसा के मामले
लाकडाउन के दौरान मध्यप्रदेश के जिन पांच जिलों में सबसे ज्यादा महिला हिंसा के मामले दर्ज हुए उनमें भोपाल, इन्दौर, जबलपुर, ग्वालियर और सागर शामिल है। पिछले एक माह में इन जिलों में महिलाओं पर घरेलू हिंसा के 122 मामले सामने आए, जिनमें सबसे ज्यादा 40 मामले जबलपुर के तथा 35 मामले सागर के हैं। लाकडाउन के कारण महिलाओं की न्याय तक पहुंच भी बाधित हुई है। हर रोज महिलाओं से संबंधित 25 प्रकरण कोर्ट तक पहुंचते हैं, किन्तु लाकडाउन के कारण सुनवाई नहीं हो रही। बताया जाता है कि पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष महिलाओं से संबंधित दुगने मामले कोर्ट तक पहुंच रहे हैं।
पूरे भारत में लॉकडाउन के दौरान महिला हिंसा/घरेलू हिंसा के मामले बढ़ते जा रहे हैं
लाकडाउन के दौरान महिला हिंसा की घटनाओं की बढ़ोतरी का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि 24 से 31 मार्च के बीच मात्र आठ दिनों में राष्ट्रीय महिला आयोग को घरेलू हिंसा की 527 शिकायतें प्राप्त हुई। पंजाब में घरेलू हिंसा के 34 मामले प्रतिदिन दर्ज हो रहे हैं। उत्तरप्रदेश के राज्य महिला आयोग में भी घरेलू हिंसा के 20 मामले प्रतिदिन दर्ज हो रहे हैं। इसके साथ ही ऐसे मामले कई गुना ज्यादा होंगे जो महिला आयोग तक पहुंच ही नहीं पाए हो। हालांकि लाकडाउन के अंतिम चरण में मध्यप्रदेश सरकार ने घर पर पुलिस बुलाकर एफआईआर लिखवाने की प्रक्रिया शुरू की है, जिससे शायद महिलाओं को संबल मिल पाएगा किन्तु यह अभी मध्यप्रदेश के कुछ ही जिलों में लागू है और वहां भी इसके व्यापक प्रचार-प्रसार की जरूरत है।
घरेलू हिंसा से बचाने स्पैन में महिलाओं को घर से निकलने की छूट देनी पड़ी
इस कठिन समय में दुनिया में कई देशों में महिलाओं की सुरक्षा के उपाय तलाशे और उपयोग किए गए। उदाहरण के लिए स्पैन में महिलाओं ने यातना से बचने के लिए खुद को कमरे या बाथरूम में बंद करना शुरू कर दिया। इससे स्पैनिश सरकार ने हिंसा से बचने के लिए महिलाओं को लाकडाउन के दौरान घर से निकलने की छूट दी।
घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के मदद के लिए कुछ अनौखे तरीके
इटली में महिलाओं की सुरक्षा के लिए 24 घंटे की एक हैल्पलाईन शुरू की गई, जिस पर सरकारी कर्मचारियों के बजाय सामाजिक कार्यकर्ता उपलब्ध रहते हैं। फ्रांस में हिंसा की शिकार जो महिलाएं पुलिस को फोन नहीं कर पाती है वे अपने नजदीक के मेडिकल स्टोर पर सूचित कर सकती है। दवा दुकानदार उसकी सूचना पुलिस तक पहुंचा देते हैं।
भारत में घरेलू हिंसा से महिलाओं को बचाने कुछ नहीं किया, हेल्पलाइन भी बंद थी
किन्तु भारत में हिंसा की स्थिति में महिलाओं को घर से निकलने की कोई सुविधा या छूट नहीं दी गई और घर के बाद एवं सड़क गश्त लगाने वाले पुलिसकर्मियों को भी इस तरह कोई विशेष निर्देश नहीं दिए गए कि वह हिंसा से पीड़ित महिला की शिकायत थाने में दर्ज करवाए। 100 डायल की सर्विस भी लाकडाउन के दौरान या तो बहुत व्यस्त रहीं या बहुत कम उपलब्ध रहीं। इसके साथ ही भारत सरकार द्वारा न तो महिला केन्द्रित कोई योजना घोषित की गई और न ही किसी अन्य योजना या पैकेज में महिलाओं को विशेष हिस्सेदारी दी गई। खास बात यह है कि यहां लाकडाउन और करफ्यू के दौरान भी महिलाओं को हिंसा से बचने के लिए कोई रियायत नहीं दी गई।
आज जबकि हम लाकडाउन को शिथिल करने की स्थिति में पहुंच रहे हैं किन्तु कोरोनावायरस लगातार फैला रहा है। ऐसे में आने वाली विपत्ति से जूझने के लिए जो भी नीतियां सरकार को बनानी होगी, उसमें महिलाओं को केन्द्र में रखना होगा। क्योंकि समाज में उत्पन्न किसी भी तरह के संकट का सबसे ज्यादा प्रभाव महिलाओं पर पड़ता है।
राजेन्द्र बंधु लेखक, स्तंभकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता
163, अलकापुरी, मुसाखेड़ी, इन्दौर, म.प्र. पिन : 452001
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