नई दिल्ली। दुनिया भर के वैज्ञानिक चिंता में है। पृथ्वी का 10000 किलोमीटर का एरिया ऐसा है जहां का चुंबकीय क्षेत्र यानी मैग्नेटिक फील्ड कमजोर होती जा रही है। क्या जैसे चांद में इंसान हवा में उड़ते रहते हैं वैसे ही धरती पर भी इंसान हवा में उड़ने लगेंगे। निश्चित रूप से ऐसा नहीं होगा क्योंकि पृथ्वी पर इंसान गुरुत्वाकर्षण के कारण आकर्षित होते हैं चुंबकीय क्षेत्र के कारण नहीं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि यदि यह प्रक्रिया इसी तरह जारी रही तो धरती पर इंसानों के जीवन पर क्या असर पड़ेगा।
पृथ्वी के 10 हजार किलोमीटर क्षेत्र में चुंबकीय शक्ति कमजोर हो गई
धरती के एक बहुत बड़े हिस्से में चुंबकीय शक्ति कमजोर हो गई है। यह हिस्सा करीब 10 हजार किलोमीटर में फैला है। इस इलाके के 3000 किलोमीटर नीचे धरती के आउटर कोर तक चुंबकीय क्षेत्र की शक्ति में कमी आई है। अफ्रीका से लेकर दक्षिण अमेरिका तक करीब 10 हजार किलोमीटर की दूरी में धरती के अंदर मैग्नेटिक फील्ड की ताकत कम हो चुकी है। सामान्य तौर पर इसे 32 हजार नैनोटेस्ला होनी चाहिए थी लेकिन सन् 1970 से 2020 तक यह घटकर 24 हजार से 22 हजार नैनोटेस्ला तक जा पहुंची है। नैनोटेस्लास चुंबकीय क्षमता मापने की इकाई होती है।
साइंटिस्ट इसे साउथ अटलांटिक एनोमली कहते हैं
वैज्ञानिकों को जो सैटेलाइट डाटा मिले हैं उसने वैज्ञानिकों को चिंता में डाल दिया है।अफ्रीका और साउथ अमेरिका के बीच कमजोर होती मैग्नेटिक फील्ड उन्हें परेशान कर रही है। वैज्ञानिकों ने बताया कि पिछले 200 सालों में धरती की चुंबकीय शक्ति में 9% की कमी आई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अफ्रीका से दक्षिण अमेरिका तक चुंबकीय शक्ति में काफी कमी देखी जा रही है। साइंटिस्ट इसे साउथ अटलांटिक एनोमली कहते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक बदलाव दो सौ सालों से धीरे-धीरे हो रहा था। इसलिए ही पृथ्वी की चुंबकीय क्षेत्र की शक्ति कम होती जा रही है।
सैटेलाइट्स से कम्युनिकेशन नहीं हो पाएगा
ये जानकारी यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ईएसए) के सैटेलाइट स्वार्म से मिली है। धरती के इस हिस्से पर चुंबकीय क्षेत्र में आई कमजोरी की वजह से धरती के ऊपर तैनात सैटेलाइट्स और उड़ने वाले विमानों के साथ कम्युनिकेशन करना मुश्किल हो सकता है। इस वजह से ही मोबाइल फोन बंद होने की आशंका जताई जा रही है। वैज्ञानिकों का मानना है कि आम लोगों को इसका पता नहीं चलता, लेकिन यह हमारी रक्षा करता है। अंतरिक्ष में खास तौर पर सूर्य से आने वाली हानिकारक शक्तिशाली चुंबकीय तरंगे, अति आवेशित कण इसी चुंबकीय क्षेत्र के कारण धरती पर नहीं पहुंच पाते हैं जिनसे धरती पर रहने वालों को काफी नुकसान हो सकता है।
पृथ्वी की आयरन प्लेट्स में बदलाव आ रहा है
जो बात वैज्ञानिकों को सबसे ज्यादा परेशान कर रही है वह है कि दूसरा हिस्सा जहां पर सबसे कम तीव्रता है वह अफ्रीका के पश्चिम में नजर आ रहा है। इसका संकेत है कि साउथ अटलांटिक एनामोली दो अलग-अलग सेल्स में बंट सकता है। ईएसए के मुताबिक, यह चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी की सतह के नीचे की बाहरी सतह वाली परत में बह रहे गर्म तरल लोहे के कारण बनता है। हाल ही में ईएसए वैज्ञानिकों ने इस परत में बहुत साफ बदलाव देखा था। उन्होंने पाया था कि पृथ्वी की बाहरी सतह की परतें सतह की तुलना में घूमने लगी हैं।
पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र से क्या होता है
चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी के बाहर ब्रह्मांड की दूसरी वस्तुओं को पृथ्वी की ओर आकर्षित करता है। शायद इसी चुंबकीय क्षेत्र के प्रभाव के कारण चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है। नासा और इसरो जैसे संस्थान जो सेटेलाइट छोड़ते हैं वह इसी चुंबकीय क्षेत्र के प्रभाव के कारण पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं। यदि चुंबकीय क्षेत्र कमजोर हुआ तो सैटेलाइट पृथ्वी की परिक्रमा नहीं कर पाएंगे। शायद चंद्रमा की परिक्रमा भी प्रभावित हो। यहां बताना जरूरी है कि पृथ्वी पर मनुष्य के जीवन का कारक चंद्रमा है।