नई दिल्ली। दुनिया भर के वैज्ञानिक चिंतित हैं। सारी प्रयोगशाला है सूरज पर नजरें गड़ाए बैठी हैं। इस सबसे बड़ा कारण यह है कि सूरज कमजोर पड़ रहा है। सन 2020 के 5 महीने पूरे होने को हैं लेकिन सूरज पर एक भी सन सपोर्ट नहीं बना है। इसका अर्थ हुआ कि सूरज के अंदर ऊष्मा पैदा नहीं हो रही है। वह कमजोर पड़ रहा है। यदि यह प्रक्रिया लगातार जारी रही तो पृथ्वी पर शीत लहर बढ़ती जाएगी और जल्द ही बर्फ के पहाड़ दिखाई देने लगेंगे। बताने की जरूरत नहीं की मानव जीवन के लिए यह कितना खतरनाक है।
सनस्पॉट क्या होते हैं, सूरज पर नहीं बनेंगे तो क्या होगा
यह तो आप जानते ही हैं कि सूर्य एक ऐसा ग्रह है जिसके अंदर लगातार परमाणु बम से भी ज्यादा शक्तिशाली विस्फोट होते रहते हैं। इन्हीं विस्फोटों के कारण अनंत ऊष्मा पैदा होती है। सूर्य के चारों तरफ अग्नि की लपटें दिखाई देती है। जब अंदर कोई भयानक विस्फोट होता है तब सूर्य की सतह पर एक धब्बा दिखाई देता है। वैज्ञानिक इसे सनस्पॉट कहते हैं। इसका अर्थ होता है सूर्य स्वस्थ है और अपनी प्रक्रिया पूरी कर रहा है। यदि सूर्य में विस्फोट नहीं होगा तो सूर्य की ऊष्मा कमजोर पड़ती जाएगी और यदि सूर्य की ऊष्मा कमजोर पड़ गई तो पृथ्वी पर वह सब कुछ होने लगेगा जो कहानियों में सूर्य ग्रहण के समय बताया जाता है। शीत लहर बढ़ने लगेगी। सूर्य के कमजोर होने के कारण वायरस पैदा होंगे। कीटाणु और कीड़े मकोड़ों की संख्या बढ़ जाएगी। मच्छर जैसा कमजोर जीव शक्तिशाली हो जाएगा। और अंत में पृथ्वी पर बर्फ के पहाड़ बनने लगेंगे।
क्या इससे पहले कभी सूर्य ठंडा पड़ा था
डेलीमेल वेबसाइट पर प्रकाशित खबर के अनुसार 17वीं और 18वीं सदी में इसी तरह सूरज सुस्त हो गया था। जिसकी वजह से पूरे यूरोप में छोटा सा हिमयुग का दौर आ गया था। थेम्स नदी जमकर बर्फ बन गई थी। फसलें खराब हो गई थीं। आसमान से बिजलियां गिरती थीं। हैरतअंगेज बात तो ये थी कि साल 1816 में जुलाई के महीने में जब आमतौर पर मौसम शुष्क और बारिश वाला रहता है, ऐसे में यूरोपीय देशों पर भयानक बर्फबारी हुई थी।
सूरज हर 11 साल में सुस्त हो जाता है: रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी
हालांकि, रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी ने कहा है कि सूरज हर 11 साल में ऐसा करता है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भी कहा है कि यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। इससे घबराने की जरूरत नहीं है। किसी भी तरह का हिमयुग नहीं आएगा।
सूरज का गुरुत्वाकर्षण कमजोर हुआ है: एस्ट्रोनॉमर डॉ. टोनी फिलिप्स
दूसरी तरफ, एस्ट्रोनॉमर डॉ. टोनी फिलिप्स का कहना है कि सोलर मिनिमम शुरू हुआ है। यह काफी गहरा है। सूरज की सतह पर स्पॉट नहीं बन रहे। सूरज का मैग्नेटिक फील्ड कमजोर हुआ है, जिस वजह से अतिरिक्त कॉस्मिक किरणों सोलर सिस्टम में आ रही हैं।
नासा के वैज्ञानिकों को डर है: 1790 से 1830 जैसे हालात तो नहीं बन जाएंगे
नासा के वैज्ञानिकों को डर है कि सोलर मिनिमम के कारण 1790 से 1830 के बीच उत्पन्न हुए डैल्टन मिनिमम की स्थिति वापस लौट सकती है। इस वजह से कड़ाके की ठंड, फसल के खराब होने की आशंका, सूखा और ज्वालामुखी फटने की घटनाएं बढ़ सकती हैं।
सूरज की चमक फीकी पड़ रही है: मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट
2020 में अब तक सूरज में किसी भी तरह का सनस्पॉट नहीं देखा गया है, जो इस वक्त का 76 प्रतिशत है। साल 2019 में यह 77 प्रतिशत था। मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के केपलर स्पेस टेलीस्कोप से मिले आकंड़ों का अध्ययन करके यह खुलासा किया है कि हमारे आकाशगंगा में मौजूद सूरज जैसे अन्य तारों की तुलना में अपने सूरज की धमक और चमक फीकी पड़ रही है।
सूरज थक गया है, झपकी ले रहा है: डॉ. टिमो रीनहोल्ड
सोलर स्पॉट तब बनते हैं जब सूरज के केंद्र से गर्मी की तेज लहर ऊपर उठती है। इससे बड़ा विस्फोट होता है। अंतरिक्ष में सौर तूफान उठता है। डॉ. टिमो रीनहोल्ड ने बताया कि अगर हम सूरज की उम्र से 9000 साल की तुलना करें तो ये बेहद छोटा समय है. हल्के-फुल्के अंदाज में कहा जाए तो हो सकता है कि सूरज थक गया हो और वह एक छोटी सी नींद ले रहा हो।
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