भारतीय संविधान के अनुच्छेद 17 में छुआ-छूत को प्रतिबन्धित किया गया है। इसी को और प्रभावी बनाने के लिए संसद ने 1955 में अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम 1955, पारित किया था बाद में इसे संशोधित कर नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम का नाम दिया गया परन्तु इससे भी SC/ST वर्ग की स्थिति में सुधार नहीं हुआ तब, भारत सरकार द्वारा 11 सितम्बर 1989 को अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम पारित किया गया। एवं यह एक्ट 30 जनवरी 1990 को लागू किया गया। एक्ट में 5 अध्याय, 23 धाराएं हैं, एवं एक्ट को IPC की धारा 41 के अंतर्गत विशेष विधि का दर्जा प्राप्त है।
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण)अधिनियम 1989 की धारा 4 के अनुसार:-
अगर कोई अपराध SC/ST वर्ग के सदस्य के साथ होता है, तब जो लोकसेवक (सरकारी अधिकारी) उस वर्ग का सदस्य नहीं है तब:-
1. लोक सेवक या थाना प्रभारी अपने कर्तव्यों को जानबूझकर अनदेखा या अनसुनी करेगा उस अधिकारी को 6 माह से अधिक एवं एक वर्ष तक की सजा हो सकती है।
वह कर्तव्य जो लोक सेवक या थाने में थाना अधिकारी द्वारा अनदेखा (उपेक्षा) किये जाते हैं:-
1. कोई पुलिस थाने में प्रभारी अधिकारी द्वारा सूचनाकर्ता से हस्ताक्षर करवाने से पहले मौखिक रूप से की शिकायत को पढ़कर सुनाना।
2. SC/ST एक्ट 1989 की आपराधिक धाराओं के अनुसार शिकायत दर्ज करना एवं शिकायत दर्ज करने से मना न करना।
3. FIR की एक कॉपी शिकायतकर्ता को तुरंत निःशुल्क देना।
4. पीड़ित या गवाहों के कथन को लिखना।
5.जाँच करना एवं विशेष न्यायालय में 60 दिन में आरोप पत्र फाइल करना। यदि विलंब हो रहा है तब कारण स्पष्ट करना।
6. किसी भी दस्तावेज या इलैक्ट्रोनिक अभिलेख का सही रूप में तैयार करना।
उपर्युक्त कर्तव्यों को कोई भी थाने का थाना अधिकारी जानबूझकर कर अनदेखा (उपेक्षा) करता है। तब वह इस धारा के अंतर्गत दण्डिनीय होगा।
संज्ञान (गंभीरता) लेने का अधिकार विशेष न्यायालय या अन्य विशेष न्यायालय को:-
अगर कोई थाने का अधिकारी अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करता है तब पीड़ित व्यक्ति को संबंधित विशेष न्यायालय या अन्य विशेष न्यायालय शिकायत दर्ज करना है। उसके बाद विशेष न्यायालय या अन्य विशेष न्यायालय द्वारा उस लोकसेवक के विरुद्ध कार्रवाई के आदेश दिया जाएगा।
बी. आर. अहिरवार होशंगाबाद(पत्रकार एवं लॉ छात्र) 9827737665