आपने अक्सर रेल एक्सीडेंट की खबरें सुनी होंगी। इनमें से कुछ खबरें ऐसी भी होती है जिनमें बताया जाता है कि ट्रेन के पायलट को ट्रैक पर लोगों की भीड़ दिखाई दे रही थी उसने हॉर्न बजाया लेकिन लोग नहीं हटे और हादसा हो गया। सवाल यह है कि जब उसे लोग दिख गए थे तो फिर उसने फोन क्यों बजाया ब्रेक क्यों नहीं लगाया। जब 8-10 लाख रुपए की कार में हैंड ब्रेक होता है तो फिर 10 करोड़ की ट्रेन में हैंडब्रेक क्यों नहीं होता।
सबसे पहले हैंडब्रेक का इंट्रोडक्शन
हां तो भाइयों बहनों हैंडब्रेक तो आपने देखा ही होगा। वही, जो छोटा सा होता है और दोनों सीटों के बीच में लगा होता है। इसके दोनों सीटों के बीच में लगे होने का भी बड़ा रीजन होता है। यह भी आप जानते ही हैं कि हैंड ब्रेक लगाने से कार के चारों पहिए एक साथ जाम हो जाते हैं। इसे कार का इमरजेंसी ब्रेक भी कहते हैं। अब हम आपको बताते हैं कि यदि कार 40 किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड से ज्यादा स्पीड में चल रही है और अचानक हैंड ब्रेक लगा दिया जाए तो कार तत्काल नहीं रुकेगी बल्कि उसके पहिए घिसटते हुए आगे तक जाएंगे, इस दौरान ड्राइवर का कार पर से कंट्रोल भी छूट सकता है, लेकिन हां यदि ब्रेक फेल हो गया है या फिर सामने कोई बड़ा हादसा सुनिश्चित दिखाई दे रहा है तो उसकी तुलना में हैंडब्रेक कार के अंदर बैठे हुए लोगों के लिए जान बचाने वाला हो सकता है।
अब ट्रेन के ब्रेक के बारे में
ट्रेन में वही ब्रेक होता है, जो सड़क पर चलने वाले ट्रक या बस में होता है – एयर ब्रेक। एक पाइप होता है जिसमें ज़ोर की हवा भरी होती है. ये हवा नायलॉन के एक ब्रेक शू को आगे-पीछे करती है. ब्रेक शू पहिए पर रगड़ खाता है और पहिया रुकने लगता है। असल बात ये है कि किसी ट्रेन को 150 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से भगाना अपेक्षाकृत आसान होता है। पेचीदा काम है ब्रेक लगाना। लोकोपायलट के पास दो ब्रेक होते हैं। एक इंजन के लिए और दूसरा पूरी ट्रेन के लिए। ट्रेन के हर डिब्बे के हर पहिए पर ब्रेक होता है। ये सभी आपस में ब्रेक पाइप से जुड़े होते हैं। जब ड्राइवर ब्रेक लीवर को घुमाता है, ब्रेक पाइप में हवा का दबाव कम होने लगता है और ब्रेक शू पहिए से रगड़ खाने लगता है। अगर 24 डिब्बों की ट्रेन 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही हो और लोकोपायलट इमरजेंसी ब्रेक लगा दे, तो ब्रेक पाइप का प्रेशर पूरी तरह खत्म हो जाएगा और गाड़ी के हर पहिए पर लगा ब्रेक शू पूरी ताकत के साथ रगड़ खाने लगेगा। इसके बावजूद ट्रेन 800 से 900 मीटर तक जाने के बाद ही रुक पाएगी। यानी हादसा निश्चित रूप से हो जाएगा। इसके साथ यह भी हो सकता है कि ट्रेन की बोगियां आपस में टकरा जाएं या फिर पटरी से नीचे उतर जाए।
ट्रेन में हैंडब्रेक क्यों नहीं होता
ट्रेन में हैंड ब्रेक होता है, उसे इमरजेंसी ब्रेक कहा जाता है परंतु उसका उपयोग बहुत कम किया जाता है क्योंकि इमरजेंसी ब्रेक यूज करने की स्थिति में भी खतरा तो बना ही रहता है। ट्रेन के अंदर भी इंसान यात्री होते हैं और रेलवे ट्रैक पर भी। पायलट को पलक झपक ने से पहले फैसला करना पड़ता है कि उसे किसकी जान बचानी है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article
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