हिंदू धर्म ग्रंथों में मनुष्य के 16 संस्कार निर्धारित किए गए हैं। पुंसवन संस्कार इस लिस्ट में दूसरे स्थान पर है। कुछ विद्वानों का कहना है कि पुंसवन संस्कार करने के दो प्रमुख उद्देश्य होते हैं पहला पुत्र की प्राप्ति और दूसरा स्वस्थ सुंदर तथा गुणवान संतान। प्रश्न यह है कि क्या यह व्याख्या सही है। क्या सचमुच हिंदू धर्म ग्रंथों में ऐसा कोई विधान बताया गया है जिससे गर्भ में पल रहे शिशु के लिंग का निर्धारण किया जा सके।
स्मृति संग्रह में क्या लिखा है
स्मृति संग्रह में पुंसवन संस्कार के संदर्भ में निर्देश प्राप्त होते हैं। स्मृति संग्रह के अनुसार गर्भ से पुत्र की प्राप्ति हो इसलिए पुंसवन संस्कार किया जाता है। यह संस्कार गर्भधारण के तीसरे माह में किया जाता है। मेडिकल साइंस के अनुसार यह वही समय है जब एक भ्रूण आकार धारण करते हुए शिशु का रूप लेता है। संस्कार के दौरान गर्भवती माता को कुछ विशेष प्रकार के श्लोक सुनाए जाते हैं।
पुत्र से तात्पर्य पुरुष या कुछ और
ज्योतिष विशेषज्ञ एवं हिंदू धर्म ग्रंथों की आधुनिक युग में नवीन व्याख्या का प्रयास कर रहे आचार्य आनंद बताते हैं कि दरअसल ज्यादातर विद्वानों ने 'पुत्र प्राप्ति' वाले श्लोक के बाद आगे अध्ययन करने का कष्ट नहीं किया या फिर अधिक दक्षिणा के लालच में इसे छुपा लिया गया। हिंदू धर्म शास्त्रों में 'पुत्र से तात्पर्य' स्पष्ट रूप से बताया गया है। 'पुम्' नामक नरक से जो रक्षा करता है, उसे पुत्र कहते हैं। (यानी पुत्र से तात्पर्य पुरुष संतान से नहीं है बल्कि एक ऐसी संतान जो गुणवान हो, संवेदनशील हो, शक्तिशाली हो, सकारात्मक विचार से युक्त हो) ऐसी संतान की प्राप्ति के लिए पुंसवन संस्कार की विधि स्थापित की गई है।
पुंसवन संस्कार में क्या होता है
मेडिकल साइंस के अनुसार गर्व के तीसरे महीने में भ्रूण आकार लेने लगता है। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी के साथ गर्भ में जीवित शिशु ज्ञान ग्रहण करने लगता है। पुंसवन संस्कार के माध्यम से गर्भवती माता को सकारात्मक विचार के साथ, सात्विक भोजन एवं परिवार की परंपरा के अनुसार संस्कारों का प्रत्यारोपण किया जाता है। जब गर्भवती महिला इन्हें धारण करती है तो उनके गर्भ में पल रही संतान को भी इसी के अंश प्राप्त होते हैं। परिणाम स्वरूप एक योग्य संतान की उत्पत्ति होती है और योग्य संतान ही माता-पिता को वृद्धावस्था में नरक के समान कष्ट भोगने से बचा सकती है।
पुंसवन संस्कार की विधि
वट वृक्ष की जटाओं के मुलायम सिरों का छोटा टुकड़ा, गिलोय, पीपल की कोपल-मुलायम पत्ते संग्रहित कर लें।
सबका पेस्ट बनाकर, उसमें पानी मिलाकर घोल तैयार कर लेंग।
साबूदाना की खीर बना कर रखें, यदि साबूदाना उपलब्ध नहीं है तो चावल की खीर बना सकते हैं।
गाय के दूध में खीर बनानी चाहिए।
निर्धारित क्रम में मंगलाचरण, षट्कर्म, संकल्प, यज्ञोपवीत परिवर्तन, कलावा-तिलक एवं रक्षाविधान तक का यज्ञीय क्रम पूरा करके नीचे लिखे क्रम से पुंसवन संस्कार के विशेष कर्मकाण्ड कराना चाहिए। औषधि की कटोरी (जिसमें वट, गिलोय, पीपल आदि का घोल है) गर्भवती महिला के हाथ में होना चाहिए।
पुंसवन संस्कार के लिए ब्राह्मण मन्त्र :-
ॐ अद्भ्यः सम्भृतः पृथिव्यै रसाच्च, विश्वकर्मणः समर्वत्तताग्रे।
तस्य त्वष्टा विदधद्रूपमेति, तन्मर्त्यस्य देवत्वमाजानमग्रे।।
इसके बाद गर्भवती महिला नाक के पास औषधि को ले जाकर धीरे-धीरे श्वास के साथ उसकी गन्ध धारण करे। आंखें बंद करके इमैजिनेशन करें, औषधियों के श्रेष्ठ गुण गर्भ के भीतर संतान के शरीर में प्रवेश कर रही हैं। वेद मन्त्रों तथा दिव्य वातावरण द्वारा इस उद्देश्य की पूर्ति में सहयोग मिल रहा है।
गर्भवती महिला के घर परिवार के सभी वयस्क परिजनों के हाथ में अक्षत, पुष्प आदि देकर मन्त्रोच्चारण करे:-
ॐ सुपर्णोऽसि गरुत्माँस्त्रिवृत्ते शिरो, गायत्रं चक्षुबरृहद्रथन्तरे पक्षौ।
स्तोमऽआत्मा छन्दा स्यंगानि यजूषि नाम।
साम ते तनूर्वामदेव्यं, यज्ञायज्ञियं पुच्छं धिष्ण्याः शफाः
सुपर्णोऽसि गरुत्मान् दिवं गच्छ स्वःपत !!
मंत्र समाप्ति पर एक प्लेट में सभी लोगों का अक्षत पुष्प एकत्रित करके गर्भवती महिला को सौंप दें। गर्भवती महिला उस प्लेट को गर्व से स्पष्ट करके दाई और देंगी।
सभी लोग प्रार्थना करेंगे कि, गर्भ के भीतर शिशु को सद्भाव एवं देवताओं के अनुग्रह का लाभ देने के लिए पूजन किया जा रहा है। इसकी सफलता के लिए हम सभी प्रार्थना करते हैं।
इसके बाद गर्भवती महिला अपना दाहिना हाथ पेट पर रखे।
पति सहित परिवार के सभी परिजन अपना हाथ गर्भवती महिला की तरफ आश्वासन की मुद्रा में उठाएँ।
मन्त्र पाठ हो:-
ॐ यत्ते ससीमे हृदये हितमन्तः प्रजापतौ।
मन्येऽहं मां तद्विद्वांसं, माहं पौत्रमघन्नियाम्।
उपस्थित सभी लोग संकल्प लेंगे,
गर्भवती महिला, इष्ट देव के अंश को जन्म लेने की प्रक्रिया में है। हम सभी लोग इस प्रयास में उसका हर संभव सहयोग करेंगे। हम सभी प्रार्थना करते हैं कि, यहां उपस्थित सभी दैवीय शक्तियां उस पर कृपा करें।
आश्वास्तना के बाद अग्नि स्थापन से लेकर गायत्री मन्त्र की आहुतियाँ पूरी करने का क्रम चलाएँ।
उसके बाद विशेष आहुतियाँ प्रदान की जाएँ
ॐ धातादधातु दाशुषे, प्राचीं जीवातुमक्षिताम्। वयं देवस्य धीमहि, सुमतिं वाजिनीवतः स्वाहा। इदं धात्रे इदं न मम।।
विशेष आहुतियों के बाद शेष बची खीर प्रसाद रूप में एक कटोरी में गर्भवती महिला को दी जाए, वह उसे लेकर मस्तक से लगाकर रख ले, सारा कल पूरा होने पर पहले उसी का सेवन करे। भावना करे कि यह यज्ञ का प्रसाद दिव्य शक्ति सम्पन्न है। इसके प्रभाव से राम-भरत जैसे नर पैदा होते हैं। ऐसे संयोग की कामना की जा रही है।
ब्राह्मण मन्त्रोच्चारण करें:-
ॐ पयः पृथिव्यां पयऽओषधिषु, पयो दिव्यन्तरिक्षे पयोधाः! पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम्।
सारा क्रम पूरा हो जाने पर विसर्जन के पूर्व आशीर्वाद दिया जाए। आचार्य गर्भवती महिला को को शुभ मन्त्र बोलते हुए फल-फूल आदि प्रदान करें, गर्भवती महिला आंचल फैला कर स्वीकार करें। उपस्थित बुजुर्ग आशीर्वाद प्रदान करें। उपस्थित बच्चे एवं अविवाहित सदस्य पुष्प वर्षा करें। गर्भवती महिला अपने परिवार की परंपरा के अनुसार चरण स्पर्श अथवा सबको प्रणाम करें। सब को नमस्कार करें।