कभी-कभी ऐसा भी होता है जब पुलिस किसी आरोपी की गिरफ्तारी के लिए सफलतापूर्वक घेराबंदी कर दी है और आरोपी को सरेंडर करने के लिए बोलती है लेकिन आरोपी शासकीय प्रक्रिया का विरोध करता है और फरार हो जाता है, तब ऐसी स्थिति में क्या होगा। फिल्मों में बताते हैं कि ईमानदार पुलिस इंस्पेक्टर अपराधी को पाताल से भी ढूंढ निकालता है परंतु भारतीय दंड संहिता के अनुसार ऐसे आरोपी के खिलाफ एक और मामला दर्ज किया जाएगा। अपराधियों को यह बात समझ लेना चाहिए कि रियल लाइफ में वह पुलिस के साथ चोर सिपाही का खेल नहीं खेल सकते। यदि ऐसा किया तो एक और मुकदमे का सामना करना पड़ेगा।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 224 की परिभाषा :-
धारा 224 की परिभाषा सरल शब्दों में:- अगर कोई आरोपी या अपराधी किसी पुलिस की हिरासत या कानूनी अभिरक्षा से छूट कर भाग जाए या गिरफ्तार होने के लिए विरोध करे, उसमे बाधा उत्पन्न करे तब वह आरोपी या अपराधी इस धारा के अंतर्गत भी दोषी ठहराया जाएगा।
निम्न कृत्य जो अपराध की श्रेणी में नहीं आते :-
1. कोई व्यक्ति को पूछताछ के लिए थाने बुलाया जाए और सिपाही की अभिरक्षा में रखा गया है तब वह व्यक्ति वहाँ से भाग जाए तब वह अपराध नहीं होगा।
2. किसी अन्य व्यक्ति को आरोपी के साथ हिरासत में लेना और वह व्यक्ति हिरासत से भाग जाए तब भी कोई अपराध नहीं होता है।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 224 में दण्ड का प्रावधान:-
इस धारा के अपराध संज्ञये एवं जमानतीय अपराध होते हैं। इनकी सुनवाई किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा की जा सकती है। सजा- दो वर्ष की कारावास या जुर्माना या दोनो से दण्डित किया जा सकता है।
【नोट:- धारा 224 के अंतर्गत दिया गया दण्ड आरोपी को उसके अपराध के देय दण्ड के अतिरिक्त होगा। और दोनों अपराध के दण्ड साथ-साथ चलना आवश्यक नहीं है।】
उधारानुसार वाद:- इन रि कुलंडईवेलु मामला- पुलिस सब इंस्पेक्टर आरोपी को गिरफ्तार करके पुलिस स्टेशन ले जा रहा था, उसे भीड़ ने जबरदस्ती छुड़वा दिया और बाद में उसने पंद्रह दिन तक स्वयं को पुलिस अभिरक्षा में समर्पित नहीं किया, जब पुनः गिरफ्तार कर लिया गया। मद्रास उच्च न्यायालय ने फैसला किया कि आरोपी धारा 224 के अपराध का दोषी होगा। क्योंकि वह पुलिस की विधिपूर्ण से भगा हुआ था।
बी. आर. अहिरवार होशंगाबाद (पत्रकार एवं लॉ छात्र) 9827737665