अमित चतुर्वेदी। संविधान के अनुच्छेद 14 (1) के अनुसार, विधि के समक्ष सभी नागरिक समान हैं। किसी भी नागरिक को विधि के समक्ष किसी भी प्रकार भी प्रकार का विशेषाधिकार प्राप्त नही है। यह एक प्रकार का नकारात्मक अधिकार है। उदाहरण के लिए, एक साधारण नागरिक एवं प्रधानमंत्री कोई अपराध करते हैं। संबंधित अपराध के लिए, दोनो व्यक्ति समान रूप से दंड के पात्र हैं।
संविधान के अनुच्छेद 14 (2) के अनुसार, सभी नागरिकों को विधि या कानून का समान संरक्षण प्राप्त है। यह एक वृहद अवधारणा है। यहां संरक्षण का अर्थ समझने का प्रयास करते हैं। संविधान के अनुच्छेद 14 के भाग 2 का संरक्षण समान परिस्थितियों में स्थापित व्यक्तियों के लिए है। अर्थात, समान परिस्थितियों में कार्यरत व्यक्तियों के बीच भेदभाव नही किया जाना चाहिये।
कर्मचारियों के मामलों में कई अवसरों पर देखा जाता है कि, शासन समान परिस्थितियों में स्थापित या एक ही सेवा नियमों से शासित कर्मचारियों को कोई आर्थिक लाभ या सेवा लाभ देते समय एक, एक ही संवर्ग के कुछ कर्मचारियों को उस परिधि से बिना किसी कारण के बाहर रखती है वंचित कर देती है।
दूसरे शब्दों में, कोई लाभ देते समय, बिना किसी युक्तियुक्त कारण के कट ऑफ तिथि या निश्चित तिथि अधिरोपण कर समान संवर्ग के कुछ व्यक्तियों या कर्मचारियों को उपरोक्त परिधि से बाहर कर दिया जाता है। जबकि, संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुसार, एक वर्ग या संवर्ग के भीतर ही दूसरा संवर्ग नही बनाया जा सकता है। इस प्रकार की परिस्थितियां विशेष वेतन वृद्धि या वेतनमान प्रदान करते समय उत्पन्न होती हैं। यद्यपि, उपरोक्त भेदभाव संविधान के प्रतिकूल एवं अवैध कहा जा सकता है एवं सक्षम न्यायालय में चुनौती के योग्य होता है।
लेखक श्री अमित चतुर्वेदी मध्यप्रदेश हाईकोर्ट, जबलपुर में एडवोकेट है।