कई बार आपने भी सुना होगा कुछ डॉक्टर बिल बढ़ाने के लिए मरीज को दवाई के नाम पर कुछ इस तरह की चीजें (बोतल/ इंजेक्शन/ कैप्सूल या फिर टेबलेट) दे देते हैं जिनमें किसी भी प्रकार की दवाई नहीं होती। मनुष्य के शरीर पर उनका किसी भी प्रकार का रासायनिक प्रभाव नहीं पड़ता। मरीज को जब इसके बारे में पता चलता है तो वह स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारी या फिर अपने जिले के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट/ कलेक्टर से शिकायत करता है। क्योंकि ज्यादातर लोग नहीं जानते कि ऐसी स्थिति में संबंधित अस्पताल/ डॉक्टर के खिलाफ स्थानीय पुलिस थाने में भारतीय दंड संहिता 1860 के तहत आपराधिक मामला दर्ज कराया जा सकता है। आइए हम बताते हैं किस धारा के तहत इस तरह का मामला दर्ज होता है।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 276 की परिभाषा:-
अगर कोई अस्पताल द्वारा, डॉक्टर द्वारा, क्लीनिक द्वारा कोई निर्माण या बनावटी दवाई को प्रस्तुत करना या प्रदर्शित करना, अस्पताल में उपयोग लेना आदि अपराध है। यह अपराध इतना साबित कर देने मात्र से पूरा हो जाता हैं कि दवाई वह नहीं है।
उदाहरणार्थ:- कोई व्यक्ति को मेडिकल स्टोर द्वारा सेफ़्रोन की जगह सेवीन दवाई दे देना।
भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 276 में दण्ड का प्रावधान:-
धारा 276 के अपराध संज्ञये एवं असंज्ञेय दोनो प्रकार के होते है और जमानतीय और अजामन्तीय दोनों प्रकार के होते हैं। दोनो धाराओं के अपराध की दण्ड की सजा को तीन भागों में विभाज है:-
1.कुछ राज्यों में धारा 276 के अपराध असंज्ञेय एवं जमानतीय अपराध है एवं किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा इनकी सुनवाई हो सकती हैं। सजा- धारा 276 के अपराध में 6 माह की कारावास या जुर्माना या दोनो से दण्डित किया जा सकता हैं।
2. धारा 276 के अपराध मध्यप्रदेश राज्य प्रस्तावित विधेयक संशोधन 2014 के अनुसार यह अपराध संज्ञये एवं अजामन्तीय अपराध होगा। इनकी सुनवाई सेशन न्यायालय द्वारा पूरी होगी। सजा- उपयुक्त दोनो धारा के अपराध में आजीवन कारावास जुर्माने के साथ या जुर्माने के बिना।
3. धारा 276 के अपराध में राज्य संशोधन उत्तर प्रदेश एवं पश्चिम बंगाल में संज्ञये एवं गैर जमानतीय अपराध है। इनकी सुनवाई सेशन न्यायालय द्वारा की जाती हैं। सजा- उपयुक्त दोनो धारा के अपराध में आजीवन कारावास जुर्माने के साथ या जुर्माने के बिना।
बी. आर. अहिरवार होशंगाबाद(पत्रकार एवं लॉ छात्र) 9827737665