देश : भरे भंडार और भूखे लोग / EDITORIAL by Rakesh Dubey

मध्य्प्रदेश सरकार खुश है, बधाई बाँट रही है कि गेहूं के उत्पादन में वो अव्वल है। वैसे इस बार पूरे देश में 29.19 करोड़ टन अनाज का उत्पादन हुआ है। यह आबादी की जरूरत से 7 करोड़ टन ज्यादा। मध्य-प्रदेश के गोदामों में गेहूं, चना, मूंग, धान सहित दो करोड़ टन अनाज भरा पड़ा है। फिर भी किसान के हाथ कर्जे में सने हैं, और मजदूर का पेट खाली है। कहने समर्थन मूल्य पर 1 करोड़ 25 लाख 88 हजार 986 टन गेहूं खरीदा जा चुका है। लेकिन इसके भंडारण का संकट पैदा हो गया है। करीब 11 लाख टन गेहूं खुले में पड़ा है। निसर्ग तूफान के प्रभाव के चलते हुई बारिश से खुले में पड़ा गेहूं बड़ी मात्रा में खराब हो गया है। इसके सरकार का दावा है महज 0.13 प्रतिशत गेहूं ही खराब हुआ है।

पूरे देश में इस बारिश से गेहूं भीगा है। देश के गोदाम पहले से ही भरे पड़े हैं। गोदामों मेंअनाज भरा होने से अतिरिक्त अनाज को भरने के लिए न तो बोरों का प्रबंध है और न ही गोदामों में जगह? इसके भंडारण के लिए जिला कलेक्टर रेलवे स्टेशन, हवाई पट्टी और मंडी के टीनशेडों में जगह तलाश रहे हैं। मध्यप्रदेश के उज्जैन कलेक्टर ने हवाई पट्टी पर गेहूं के भंडारण की अनुमति नागरिक उड्डयन मंत्रालय से मांगी है।

सरकारें जानती हैं कि हर साल अनाज की खरीद होनी है तो फिर इसका प्रबंध पहले से क्यों नहीं किया जाता? देश में किसानों की मेहनत और जैविक व पारंपरिक खेती को बढ़ावा देने के उपायों के चलते कृषि पैदावार लगातार बढ़ रही है।अब सिर्फ हरियाणा-पंजाब ही गेहूं उत्पादन में अग्रणी नहीं हैं, अब मध्य-प्रदेश, बिहार, उत्तर-प्रदेश और राजस्थान में भी गेहूं की रिकार्ड पैदावार हो रही है। इस पैदावार को 28 करोड़ टन तक पहुंचाने का सरकारी लक्ष्य था, जो इस बार 29.19 करोड़ टन अनाज पैदा करके पूरा कर लिया गया है। पूरा देश कोरोना से बड़े बारदाना और भंडारण के संकट से जूझ रहा है। बारदाना उपलब्ध कराने की जवाबदारी केंद्र सरकार की है, लेकिन यह कोई बाध्यकारी नहीं है। राज्य सरकारें चाहें तो वे भी बारदाना खरीद सकती हैं।

न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अनाज की पूरे देश में एक साथ खरीद, भंडारण और फिर राज्यवार मांग के अनुसार वितरण का दायित्व भारतीय खाद्य निगम के पास है। जबकि भंडारों के निर्माण का काम केंद्रीय भण्डार निगम संभालता है। इसी तर्ज पर राज्य सरकारों के भी भण्डार निगम हैं। दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि आजादी के 72 साल बाद भी बढ़ते उत्पादन के अनुपात में केंद्र और राज्य दोनों ही स्तर पर अनाज भंडारण के पर्याप्त प्रबंध नहीं हैं।एफसीआई की कुल भंडारण क्षमता बमुश्किल 738 करोड़ टन है। इसमें किराए के भंडार गृह भी शमिल हैं। यदि सीडब्ल्यूसी और निजी गोदामों को भी जोड़ लिया जाए तो यह क्षमता 12.5 करोड़ टन अनाज-भंडारण की है।

किसानों के वोट के लालच में हर बार राज्य सरकारें जिस हिसाब से समर्थन मूल्य पर अनाज की खरीदती हैं, जिस कारण कई करोड़ टन अतिरिक्त अनाज खरीद लिया जाता है। नतीजतन समुचित भंडारण नामुमकिन हो जाता है। भंडारण की ठीक व्यवस्था न होने के कारण कई साल से डेढ़ से दो लाख टन अनाज खराब हो रहा है। इस अनाज से एक साल तक दो करोड़ से भी ज्यादा लोगों को भोजन कराया जा सकता है। 

किसान को भुगतान की भी कोई निरापद प्रणाली नहीं तय हो सकी है किसान सहकारी और सरकारी बैंको में भुगतान को लेकर हैरान होता रहता है। अब लॉक डाउन के कारण मजदूर और जवान भी परेशानो की कतार में आ गये हैं। सरकार को समाधान खोजना चाहिये।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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