एक ‘परिपत्र’ और ‘साहब’ हलकान / EDITORIAL by Rakesh Dubey

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सरकारें साहबों से चलती हैं, इन दिनों दिल्ली से नीचे तक साहब खफा हैं। उनकी नाराजगी में पिछले सप्ताह सरकार ने एक परिपत्र जारी कर तड़का लगा दिया है। इस परिपत्र में केंद्रीय मंत्रालयों में संयुक्त सचिव स्तर पर मझोले दर्जे के साहबों के लिए संयुक्त सचिव के लिए नाम सूचीबद्ध करने के नए नियम उल्लिखित हैं। कैबिनेट की नियुक्ति समिति ने कहा है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी अब 16 वर्ष की सेवा के बाद ही संयुक्त सचिव स्तर के पदों पर नियुक्ति के लिए सूचीबद्ध हो सकेंगे।इस नये परिपत्र के बाद साहबों में बैचेनी बढ़ गई है।

यूँ तो पहले आईएएस अधिकारी केंद्र में 16 वर्ष की सेवा के बाद आसानी से संयुक्त सचिव पद के लिए सूचीबद्ध होने की अर्हता प्राप्त कर लेते थे। हालांकि उनमें से कई को इस अहर्ता प्राप्त करने में 18 वर्ष तक का समय भी लगा था। जैसे 2002 बैच के साहबान अब संयुक्त सचिव बनने के लिए सूचीबद्ध हो रहे हैं। ऐसे में आईएएस अधिकरियों को 16 वर्ष बाद संयुक्त सचिव के रूप में सूचीबद्ध करने की बात आश्वस्त करती है।

परंतु कैबिनेट की नियुक्ति समिति [एसीसी] के इसी परिपत्र में उल्लेखित एक और निर्देश आईएएस अधिकारियों की रातों की नींद उड़ा रहा है। इस निर्देश में कहा गया है कि 2007 के बैच के बाद के आईएएस अधिकारियों को यदि केंद्र में संयुक्त सचिव स्तर पर सूचीबद्ध होना है तो उन्हें सेंट्रल स्टाफिंग स्कीम (सीएसएस) के अंतर्गत उपसचिव या निदेशक स्तर पर दो वर्ष का अनुभव अनिवार्य रूप से प्राप्त करना होगा। सेंट्रल स्टाफिंग स्कीम ही वो प्रक्रिया है जिसकी जटिलता और खौफ से सारे साहब घबराते हैं |

इसमें कोई दो राय नहीं कि उक्त परिपत्र देश के कई आईएएस अधिकारियों पर गहरा असर डालेगा। यह वैसा ही होगा जैसे वर्ष 2019 के आम चुनाव से ऐन पहले सरकार ने निजी क्षेत्र के पेशेवरों को केंद्र में संयुक्त सचिव स्तर पर नियुक्त करने का निर्णय लिया था । यह गैर आईएएस विशेषज्ञों को सरकार से जोडऩे का छोटा लेकिन जोखिम भरा कदम था। यह प्रक्रिया अप्रैल 2019 में उस समय पूरी हुई जब निजी क्षेत्र के नौ पेशेवरों को वित्त, वाणिज्य, नागरिक उड्डयन, सड़क परिवहन, पर्यावरण और ऊर्जा विभाग में संयुक्त सचिव के रूप में नियुक्त किया गया।

इसके करीब एक वर्ष बाद एक और निर्णय लिया गया जिसने आईएएस अधिकारियों के संयुक्त सचिव पद तक पहुंचने के सफर को और मुश्किल कर दिया । अब तक, एक आईएएस अधिकारी के लिए संयुक्त सचिव का पद नई दिल्ली के केंद्रीय मंत्रालयों में अहम पदों पर लंबी पदस्थापना का आसन मार्ग था । इस मार्ग के यात्री साहबों को इसके बाद अपने काडर वाले राज्यों में नहीं जाना पड़ता। पांच वर्ष तक संयुक्तसचिव के पद पर रहने के बाद आमतौर पर अतिरिक्त सचिव के रूप में पदोन्नति हो जाती है और उसके बाद या तो विशेष सचिव या फिर सेवानिवृत्ति तक सचिव। 2006 के बाद सेवा में आने वाले अनेक आईएएस अधिकारी नई शर्त से प्रसन्न नहीं हैं।

सुविधा का संतुलन सारे साहब बना कर चलते हैं, जिसके तहत अभी तक अधिकांश आईएएस अधिकारी अपने कार्यकाल के शुरुआती डेढ़ दशक राज्यों में बिताते हैं क्योंकि पद अपेक्षाकृत बेहतर होता है, उनके पास अधिकार ज्यादा होते हैं और केंद्र के उप सचिव या निदेशक की तुलना में आवास सुविधा आदि भी बेहतर होती है। केंद्र का उपसचिव स्तर का अधिकारी राज्य में संयुक्त सचिव या जिलाधिकारी होता है और केंद्र का निदेशक अक्सर राज्य सचिवालय में विशेष सचिव होता है।

साहबी का रुतबा वाहन के बगैर अधूरा है |केंद्र में रहने पर उपसचिव या निदेशक को कुछ वर्ष पहले तक घर से कार्यालय ले जाने के लिए आधिकारिक वाहन तक नहीं मिलता था। सन 2016 में नियमों में संशोधन करके कहा गया कि वे इसके लिए किराये पर कार ले सकते हैं। फरवरी 2020 में यह सुविधा तीन वर्ष के लिए बढ़ा दी गई ताकि यह पद अधिक आकर्षक लगे और राज्यों से आने वाले उप सचिवों और निदेशकों की कमी दूर हो।

व्यक्तिगत दृष्टि से भी देखें तो साहब राज्यों में रहना पसंद करते हैं ताकि उनके बच्चे एक ही शहर में बड़े हों। एक बार 16 या 18 वर्ष की सेवा हो जाने के बाद वे केंद्र में संयुक्त सचिव की नौकरी का चयन करते थे , परंतु अब नई शर्तों के बाद उन्हें एक नई परिस्थिति का सामना करना पड़ेगा।

गौर तलब है आईएएस, 37 अखिल भारतीय सेवाओं अथवा समूह A सेवाओ में इकलौती ऐसी सेवा है जो सेंट्रल स्टाफिंग स्कीम में हिस्सा लेती है। इसका गठन इसलिए किया गया था ताकि केंद्र सरकार को मंत्रियों को नीति निर्माण करने में सहायता के लिए तथा विभिन्न कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के लिए मझोले और वरिष्ठ स्तर पर नई प्रतिभाएं हमेशा उपलब्ध रहें ।

मूल विचार यह था कि विशेष सेवाओं में मसलन भारतीय पुलिस सेवा, भारतीय राजस्व सेवा, भारतीय आर्थिक सेवा, भारतीय दूरसंचार सेवा, भारतीय अंकेक्षण एवं लेखा सेवा, भारतीय वन सेवा, केंद्रीय अभियांत्रिकी सेवा और भारतीय सांख्यिकी सेवा जैसी सेवाओं के अधिकारियों का लाभ लिया जा सके, परंतु व्यवहार में तो केंद्र में संयुक्त सचिव स्तर के पदों पर आईएएस अधिकारियों ने एकाधिकार कर लिया है।

सरकार ने सभी आईएएस अधिकारियों के लिए संयुक्त सचिव पद की खातिर सूचीबद्ध होने के पहले दो वर्ष तक उप सचिव या निदेशक के रूप में काम करने की जो शर्त रखी है उससे उसे उपसचिवों और निदेशकों की कमी पूरी करने में तो मदद मिलेगी, परंतु यह अलग बहस का विषय है कि क्या यह कदम केंद्र को और अधिक गैर आईएएस संयुक्त सचिव चुनने में भी मदद करेगा ?
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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