इतने लंबे लॉकडाउन की वजह से अर्थव्यवस्था में भारी संकुचन हुआ है, जिससे किसान, कामगार, दिहाड़ी मजदूर के साथ प्रभावित होने वालों में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्ध्योग भी हैं। आर्थिक स्थिति को बेहतर करने के लिए पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीस लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज की घोषणा की थी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत पैकेज के विवरण में छोटे और मझोले उद्यमों के लिए समुचित पूंजी मुहैया कराने के साथ उनकी परिभाषाओं में भी जरूरी बदलाव का उल्लेख था। इसका सीधा लाभ समाज के उस वर्ग को नहीं मिला जिसे आज इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। उन उपायों पर केंद्रीय कैबिनेट की मुहर लगने से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्ध्योग क्षेत्र के लिए 70 हजार करोड़ की राशि उपलब्ध हो सकेगी। यदि ये उद्ध्योग समाज हित को अपने हित से उपर रखे तो देश का आर्थिक नक्शा बहुत बदल सकता है।
सब जानते हैं है कि कुल घरेलू उत्पादन में इस क्षेत्र का हिस्सा करीब 30 प्रतिशत है और इसमें 12 करोड़ के आसपास लोग कार्यरत हैं, असंगठित क्षेत्र के कामगारों को जोड़े तो यह संख्या 20 करोड़ के आसपास होती है।देश के निर्यात में छोटे और मझोले उद्यम लगभग 45 प्रतिशत का योगदान देते हैं। लॉकडाउन में यह क्षेत्र के बंदी के कगार के पर पहुंच गया जिससे उत्पादन में भारी कमी आयी है तथा बेरोजगारी भी बड़ी है। जिससे मांग में भी गिरावट आयी है और आपूर्ति ठप्प है। यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि असंगठित क्षेत्र के बड़ा भाग इन्हीं उद्यमों का है। अब जब पूंजी की कमी दूर होगी, तो उत्पादन और रोजगार भी बढ़ेगा। इस तरह से मांग में भी बढ़ोतरी होगी तथा आर्थिक गतिविधियां धीरे-धीरे पटरी पर लौटने लगेंगी।
इस क्षेत्र के कारोबारियों की समस्याओं के समाधान को आसान बनाने के लिए सरकार ने चैंपियंस नामक वेब पोर्टल की शुरुआत भी की है, जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी के हाथों हुआ है। उद्घाटन के साथ अनेक शिकायतें भी दर्ज हुई हैं। तकनीक के इस दौर में सुगमता से सूचनाओं और जानकारियों को हासिल करना तथा शिकायतों का त्वरित निवारण जरूरी है, आम तौर पर अभी तक उन छोटे कारोबारियों के लिए बैंकों से कर्ज लेना लगभग असंभव होता था, जिनके पास गारंटी के लिए कोई परिसंपत्ति नहीं होती थी, लेकिन ऐसे कारोबारी अब आसानी से कर्ज लेकर अपने उद्यम को आगे बढ़ा सकते हैं।पर ये रास्ता अभी सुगम नहीं दिख रहा है,बैंक उदारता नहीं बरत रहे हैं। बड़े उद्ध्योगों और भगोड़े करोडपतियों ने बैंक के विश्वास को हिला दिया है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि देश के इतिहास में पहली बार ऐसी व्यवस्था की गयी है, जिसके तहत रेहड़ी-पटरी या ठेला लगाकर अपनी जीविका चलानेवाले लोग बैंकों से कर्ज हासिल कर सकेंगे। सरकारकी घोषणा और बैंक के विश्वास के पैमाने एकदम जुदा हैं। अब बचती है प्रधानमंत्री स्व-निधि योजना जिससे से 50 लाख ऐसे लोग फायदा उठा सकेंगे, जिनका सम्बन्ध कहीं न कही राजनीति से जुडा है। वर्तमान में बदलती आर्थिक परिस्थितियों में सुदूर देहात से लेकर कस्बों तक और शहरों से लेकर महानगरों तक उद्यमिता को बढ़ावा देने की दरकार है ताकि आत्मनिर्भरता के संकल्प को साकार किया जा सके तथा हर स्तर पर कारोबार, रोजगार और आमदनी के मौके बनाये जा सकें।
हमारे देश में न तो कारोबार करने की इच्छाशक्ति की कमी है और न ही श्रम की उपलब्धता में कोई समस्या है।सरकार की हालिया पहलों से समुचित संसाधन, विशेषकर पूंजी, जुटाने की अड़चनें अगर दूर हो जायेंगी, तो बहुत से हाथों को काम मिल सकता है। इससे आमदनी में बढ़त के साथ ही उपभोक्ताओं की मांग भी बढ़ेगी| सरकार को इन पहलों को अब अमल में लाने की कवायद पर ध्यान दिया जाना चाहिए। घोषनाए तो बहुत हो चुकी।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।