भारत की सरकारी व्यवस्थाओं में आयोग का अपना महत्व होता है। आयोग संबंधित विषय का अध्ययन करता है और सरकार के अलावा दूसरे व उससे जुड़े हुए सभी पक्षों के हितों को ध्यान में रखते हुए अनुशंसा करता है। वेतन आयोग भी ऐसा ही करता है। आपने अक्सर देखा होगा कर्मचारी संगठन वेतन आयोग की अनुशंसा को लागू करने के लिए सरकार पर दवाब बनाते हैं। सवाल यह है कि क्या वेतन आयोग की सिफारिश को लागू करवाने के लिए न्यायालय की शरण ली जा सकती है। क्या वेतन आयोग की अनुशंसा संबंधित सरकार पर पूर्ण रूप से बाध्यकारी होती है।
एडवोकेट श्री अमित चतुर्वेदी (मध्य प्रदेश हाई कोर्ट, जबलपुर) बताते हैं कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 309 के परन्तुक के अधीन प्राप्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, सरकार, वेतन आयोग की अनुशंसा से विपरीत या भिन्न नियम भी वेतन पुनरीक्षण के संबंध में बना सकती है। इसके अतिरिक्त, सिफारिश को लागू करने की तिथि के विषय मे निर्णय करने के लिए, संबंधित सरकार स्वतंत्र होती है एवं भूतलक्षी प्रभाव से लागू कर, काल्पनिक वेतन निर्धारण का निर्णय भी ले सकती है।
परंतु यदि सरकार सभी कर्मचारियों के संबंध में वेतन आयोग की अनुशंसा को स्वीकार करती है, उपरोक्त परिस्थिति में, कर्मचारियों के एक विशेष संवर्ग को पश्चातवर्ती तिथि से, वेतन पुनरीक्षण का लाभ दिया जाना, विधि की दृष्टि में भेदभाव एवं संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 16 का अतिक्रमण माना जाता है। अपितु, सामान्यतः, वेतन आयोग की अनुशंसा का क्रियान्वयन या इससे संबंधित नीति को न्यायिक पुनरीक्षण के आधीन नही लाया जा सकता है।