कभी-कभी कुछ शातिर अपराधी जमानत की शर्तों का उल्लंघन करते हैं। पीड़ित परिवार को परेशान करने के लिए कोर्ट में पेश नहीं होते। सवाल यह है कि क्या इस तरह की गतिविधियों को एक नया अपराध माना जाता है। ऐसी स्थिति में पुलिस क्या कर सकती है। क्या केवल जमानत की शर्तों का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को पकड़कर कोर्ट के सामने पेश करेगी या फिर उसके खिलाफ एक और नई FIR दर्ज की जा सकती है। आइए जानते हैं:-
भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 229 क की परिभाषा:-
अगर ऐसा कोई व्यक्ति(अपराधी) जो न्यायालय द्वारा जमानत या बधपत्र पर छूटा हैं और जानबूझकर कर न्यायालय के आदेश को नही मान रहा है या पेशी पर न्यायालय में हाजिर नहीं हो रहा है तब वह अपराधी व्यक्ति इस धारा के अंतर्गत अपराधी होगा।
दण्ड का प्रवधान:-
इस तरह के अपराध संज्ञये एवं अजमानतीय अपराध होते हैं। इनकी सुनवाई किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा की जा सकती है।
सजा - एक वर्ष की कारावास या जुर्माना या दोनो से दण्डित किया जा सकता है।
बी. आर. अहिरवार होशंगाबाद(पत्रकार एवं लॉ छात्र) 9827737665