अक्सर ऐसा होता है कि कोई लोक-सेवक भ्रष्टाचार या भेदभाव रखते हुए, किसी व्यक्ति की रिपोर्ट या आदेशों को गलत बना देता है जिससे कोई निर्दोष व्यक्ति फंस जाता है। कभी-कभी तो लोक-सेवक द्वारा न्यायालय में चल रही न्यायिक कार्यवाही में गलत रिपोर्ट, आदेश, अधिमत आदि पेश कर देते हैं जिससे निर्दोष व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अगर कोई लोक-सेवक ऐसा कार्य करता है। तब वह भारतीय दण्ड संहिता के अंतर्गत अपराध होगा।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 219 की परिभाषा:-
अगर किसी लोकसेवक द्वारा न्यायिक कार्यवाही के किसी चरण में भ्रष्टाचार या भेदभावपूर्वक कोई रिपोर्ट, आदेश, निर्णय या अभिमत दिया जाए या तैयार किया जाए यह जानते हुए कि ऐसा करना विधि के विरुद्ध हैं। वह लोकसेवक इस धारा के अंतर्गत दोषी होगा। इस धारा का एक उद्देश्य यह है कि सरकारी अधिकारी की हैसियत से अपनी अधिकार -शक्ति का अवैध कार्य के लिए दुरपयोग करना है।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 219 में दण्ड का प्रावधान:-
इस धारा के अपराध असंज्ञेय एवं जमानतीय अपराध होते हैं। इनकी सुनवाई प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा की जाती हैं। सजा- सात वर्ष की कारावास या जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जा सकता है।
बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद म.प्र.) 9827737665