प्राचीन काल की अगर हम बात करें तो उस समय के लोग नदी, तालाब, नहरें आदि का पानी पी कर जीवन यापन करते थे। फिर कुआं, नल, हैंडपंप का समय वर्तमान युग में आया। फिर भी कुछ लोग आज भी प्राचीन परम्परा के अनुसार नदियों का पानी पीने के लिए उपयोग करते हैं। आज के लेख में हम आपको बताएंगे कि सार्वजनिक जल स्त्रोत को अपवित्र करना भी एक दंडनीय अपराध है।
भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 277 की परिभाषा:-
अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर कर या उतावलेपन में निम्न कृत्य करेगा वह इस धारा के अंतर्गत दोषी होगा-
1.जल स्त्रोत या जलाशय कुंड, कुआँ, पीने के पानी की टंकी, तालाब, हैंडपंप, नदियां आदि को जानबूझकर कर अपवित्र (मैला या गन्दा) करेगा।
2. किसी भी व्यक्ति के पीने के पानी में कुछ अपवित्र वस्तु जानबूझकर डाल देगा आदि।
भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 277 में दण्ड का प्रावधान:-
यह अपराध किसी भी तरह से समझौता योग्य नहीं होते हैं ।यह अपराध संज्ञये एवं जमानतीय अपराध होते हैं।इनकी सुनवाई किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा की जा सकती है।
सजा- तीन माह कि कारावास या पांच सौ रुपए का जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जा सकता हैं।
उधारानुसार:- अगर किसी सार्वजनिक स्थान पर कोई कुआ (कुंड) बना हुआ है। और गांव के कुछ लोग उस कुएं से पीने का पानी भरते हैं, अगर कोई व्यक्ति उस कुएं के या कुंड के पानी को मैला कर दे। या नहाने का पानी उस कुएं में मिला दे। तब मैला करने वाला व्यक्ति इस धारा के अंतर्गत अपराधी होगा।
बी. आर.अहिरवार होशंगाबाद(पत्रकार एवं लॉ छात्र) 9827737665