ग्वालियर। शहर में कोरोना वायरस कोविड-19 महामारी ने जहां सभी व्यवसाय प्रभावित कर दिए वहीं इसका सबसे अधिक असर सवारी वाहनों पर पड़ा है और महामारी के भय के कारण अधिकांश लोग सवारी वाहनों से जाने की बजाय पैदल चलना पसंद कर रहे हैं और इसका असर सीधा-सीधा सवारी वाहनों के मालिक और ठेके पर टेपो, ऑटो चलाने वाले चालकों पर पड़ रहा है। हालात यह है कि सिटी बसों से भी जाने से लोग कतरा रहे हैं। इस कारण से तकरीबन साठ फीसदी सवारी वाहना परमीशन मिलने के तेरह दिन बाद भी वाहन मालिकों के घरों पर खड़े हैं और धूल खा रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि कोरोना वायरस कोविड-19 महामारी के चलते 24 मार्च को मध्यरात्रि से देशभर में लॉकडाउन लगा दिया और लॉकडाउन लगने के साथ ही सभी सवारी वाहनों का संचालन बंद कर दिया गया। जैसे-जैसे माहौल ठीक हुआ सभी बाजार खुले और एक जून को अनलॉक एक के साथ ही सवारी वाहनों के संचालन को भी प्रशासन ने हरी झंडी दे दी। प्रशासन ने हरी झंडी तो दे दी पर साथ ही सवारी वाहनों में सवारियों के बैठाने को लेकर गाइडलाइन जारी करते हुए टेपो में तीन तो ऑटो और ई-रिसा में दो-दो सवारी बैठाने की परमीशन दी। अधिक सवारी बैठाने पर चालान की बात भी कही गई। प्रशासन ने भले ही एक जून को सवारी वाहनों को हरी झंडी दे दी पर शहर में पहले दिन टेपो नजर नहीं आए और टेम्पो संचालकों ने प्रशासन ने टेम्पो में पांच सवारी बैठाने को लेकर मांग रखी पर प्रशासन ने कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप को ध्यान में रखते हुए केन्द्र सरकार द्वारा जारी गाइडलाइनके अनुरूप ही सवारी वाहनों के संचालन की परमीशन दी।
अंतत: दो जून से शहर में टेम्पो और ऑटो के साथ सिटी बसों का संचालन तो हो गया पर आज ग्यारह दिन बीत जाने के बाद भी सवारी वाहन रतार नहीं पकड़ पा रहे और हालात यह है कि सवारी वाहनों में सवारी दूर-दूर तक नजर नहीें आ रही। जिन टेम्पो में पांव रखने तक की जगह नहीं मिलती थी आज हालात यह है कि एक-दो सवारी के साथ टेम्पो शहर में रेंगते नजर आ रहे हैं। कमोवेश यही हाल ऑटो और ई- रिक्सा का है। कोरोना महामारी ने लोगों को इतना भयभीत कर दिया कि लोग सवारी वाहनों में बैठने की बजाय पैदल चलना ज्यादा पंसद कर रहे हैं।
बहुत ही जरूरी काम होने पर टेम्पो व अन्य साधन से जाना पसंद कर रहे हैं। ऐसे में टेम्पो और ऑटो संचालकों व इनके भरोसे परिवार पालने वाले ठेके पर वाहन चलाने वाले चालकों के समक्ष परिवार के भरण-पोषण का संकट आ खड़ा हो गया है। पहले ही कोरोना के कारण तीन माह से आर्थिक तंगी से जूझ रहे वाहन मालिक और चालक अब परमीशन मिलने के बाद भी उसी हाल में जिस हाल में लॉकडाउन के समय थे।
संवाददाता ने टेम्पो संचालकों से इस संबंध में चर्चा की तो उन्होंने बताया कि लोगों में कोरोना का भय है। इस कारण सवारियों का टोटा है। लोग टेम्पो में भीड़-भाड़ के कारण बैठना कम पसंद कर रहे हैं। या तो अपने निजी वाहन से चल रहे हैं या फिर अपने मिलने वाले या आस-पड़ोस के लोगों से लिट लेकर बाजार के काम निपटा रहे हैं।
चालान का भी भय सताता है
टेम्पो चालकों का कहना है कि एक तो सवारियां नहीं मिल रहीं और किसी प्रकार अगर सवारियां मिल भी जाएं जो तो प्रशासन का डंडा। अधिक सवारियां बैठाने पर हमेशा चालान का भय बना रहता है ऐसे में अगर प्रशासन पांच सवारियां बैठाने की अनुमति दे दे तो कम से कम चालान का भय तो नहीं रहेगा।
सिटी बसों में भी सवारियों का है टोटा
प्रशासन ने सिटी बसों का संचालन तो कर दिया पर सिटी बसों में भी सवारियां नहीं बैठ रहीं और जहां पहले दो-पांच मिनट रुकने के बाद ही अच्छी-खासी सवारियां मिल जाती थीं उन स्टॉपेजों पर आधा-आधा घंटा रुकने के बाद भी बड़ी मुश्किल से एक या दो सवारी मिल रहीं हैं और पूरी बस में चार-पांच सवारियां बैठी नजर आ रहीं हैं।
महज साठ रुपए का लग रहा है चक्कर
टैम्पो संचालकों का कहना है कि लॉकडाउन से पहले एक चक्कर डेढ़ सौ रुपए का लगता था लेकिन अब वही चक्कर महज पचास-साठ रुपए का लग रहा है। इस स्थिति में कैसे ठेका निकालें और कैसे परिवार पालें यह चिंता सता रही है।