आप भारत के उत्तर में हो या दक्षिण में, पूर्व में या पश्चिम में या फिर मध्य में यदि आपकी जन्म पत्रिका में अकाल मृत्यु का योग है। आपको या आपके परिजनों में से कोई असाध्य रोग या फिर गंभीर दुर्घटना का शिकार हो जाता है तो आपने अवश्य देखा होगा कि ज्योतिष के सभी विद्वान 'महामृत्युंजय मंत्र' के सवा लाख पाठ का विधान हेतु सुझाव देते हैं। प्रश्न यह है कि अकाल मृत्यु से मुक्ति के लिए भगवान शिव को प्रसन्न करने वाला महामृत्युंजय मंत्र ही क्यों। मृत्यु के कारक ग्रह को शांति करने वाला अनुष्ठान क्यों नहीं।
महामृत्युञ्जय मन्त्र / महामृत्युंजय मंत्र की कथा
हिंदुओं के सर्वमान्य पद्म पुराण में इस कथा का विवरण मिलता है। महामुनी मृकण्डु ने संतान प्राप्ति के लिए भगवान शिव का पत्नी सहित कठोर तप किया। फल स्वरूप भगवान शिव ने प्रकट होकर उन को पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया परंतु भगवान शिव ने उनके सामने दो विकल्प रखे। कहा कि हे महामुनी यदि आप गुणवान, सर्वज्ञ, यशस्वी, परम धार्मिक और समुद्र की तरह ज्ञानी पुत्र चाहते हैं तो वह अल्पायु होगा। 16 वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हो जाएगी। यदि आप 100 वर्ष की पूर्ण आयु वाला पुत्र चाहते हैं तो फिर वह गुणों से हीन और अयोग्य होगा।
महामुनी श्रीमृकण्डु ने विनम्रता पूर्वक कहा कि हे प्रभु मैं गुणों से संपन्न में सर्वश्रेष्ठ पुत्र की कामना करता हूं, फिर चाहे उसकी आयु कम ही क्यों ना हो। भगवान शिव 'तथास्तु' वचन देते हुए अपने धाम श्री कैलाश पर्वत को लौट गए। भगवान शिव के आशीर्वाद स्वरुप महामुनी श्रीमृकण्डु की पत्नी ने निर्धारित अवधि के पश्चात एक सुंदर और गुणवान पुत्र को जन्म दिया।
महामुनी श्रीमृकण्डु ने अपने पुत्र का नाम मार्कण्डेय रखा। बालक प्रारंभ से ही शिव भक्त था। जब ऋषि मार्कंडेय ने अपनी आयु के 16 वर्ष में प्रवेश किया तो उनके पिता ने अपनी चिंता के विषय में पूरी बात बताई। मार्कण्डेय ने पिता को उत्तर दिया कि अब भगवान शिव ही अकाल मृत्यु से मेरी रक्षा करेंगे। ऋषि मार्कंडेय ने 'महामृत्युंजय मंत्र' का अनुसंधान किया। और उसका सवा लाख जप प्रारंभ कर दिया।
निर्धारित तिथि को जब यमराज बालक मार्कण्डेय के प्राणों का हरण करने के लिए प्रकट हुए तो महामृत्युंजय का जप कर रहे मार्कण्डेय ने यमराज को सवा लाख जप समाप्त होने तक प्रतीक्षा करने के लिए कहा। यमराज ने बालक के आग्रह को ठुकरा दिया और महामृत्युंजय मंत्र का जप कर रहे मार्कण्डेय के प्राणों का हरण प्रारंभ कर दिया। यह देख भगवान शिव क्रोधित हो उठे और शिवलिंग से प्रकट हो गए। उनके क्रोधित नेत्रों को देखकर यमराज मार्कण्डेय को मुक्त करके वापस लौट गए।
बाद में ऋषि मार्कंडेय ने मार्कंडेय पुराण की रचना की। जिसमें 9000 श्लोक हैं। मुख्यधारा की सभी हिंदू परंपराओं में ऋषि मार्कंडेय को आदरणीय स्थान दिया जाता है। कहते हैं कि महामृत्युंजय के जप से प्रकट हुए भगवान शिव के क्रोध के कारण वापस लौटे यमराज उसके बाद कभी भी ऋषि मार्कंडेय के प्राणों का हरण करने के लिए नहीं आए। ऋषि मार्कंडेय को अमर माना जाता है। यही कारण है कि अकाल मृत्यु से मुक्ति के लिए महामृत्युंजय का पाठ किया जाता है।