गणपत गर्ग / पोकरण, राजस्थान। पश्चिमी रेगिस्तान की भूमि भले ही बंजर हो, लेकिन प्रकृति ने इस क्षेत्र को भी कुछ अनमोल सौगातें प्रदान की हैं। प्रचंड गर्मी की शुरुआत होते ही रेगिस्तान में विषम हालात पैदा हो जाते हैं। कई बार तापमान 50 डिग्री भी पार कर जाता है। जिससे कई जीव जंतुओं की मौत हो जाती है। इस तेज़ गर्मी में कई पेड़ पौधे भी झुलस जाते हैं। ऐसी स्थिति में एक पेड़ ऐसा है जो जितनी ज्यादा गर्मी पड़ती है उतना ज्यादा हरा होता चला जाता है। लू के थपेड़े जितने तेज होते हैं यह पेड़ उतना ही फलदार और इसके फल उतना ही स्वादिष्ट होते चले जाते हैं। स्थानीय भाषा में इसे पीलू कहते हैं।
भूख मिट जाती है, लू नहीं लगती, प्यास बुझ जाती है
यह फल मई व जून तथा हिन्दी के ज्येष्ठ व आधे आषाढ़ माह में लगते हैं। इसकी विशेषता यह है कि इसका सेवन करने से पेट की आग तो बुझती ही है, रेगिस्तान में लू भी नहीं लगती। इसे खाने से शरीर में पानी की कमी पूरी हो जाती है, आटा प्यास भी नहीं लगती। रेगिस्तान के इस फल को देसी अंगूर भी कहा जाता है।
प्रोफेसर मीणा से विज्ञान की भाषा में समझिए
इस संबंध में वनस्पति विज्ञान महाविद्यालय, जैसलमेर के प्राध्यापक प्रो. श्यामसुन्दर मीणा बताते हैं कि पीलू का पेड़ एक मरूद्भीद पादप है और इसे यहां की जीवन रेखा भी कहा जाता है। मरूद्भीद पादप में पाए जाने वाले पौधे विपरीत परिस्थितियों में भी स्वयं को जीवित रखने में सक्षम होते हैं। यह पौधों की उन श्रेणियों में होता है जो शुष्क स्थानों पर उगते हैं। अकाल और भीषण गर्मी के दौरान जब अधिकतर पेड़-पौधे सूख जाते है और उनमें पतझड़ शुरू हो जाता है, ऐसे समय में भी यह पौधा हरा भरा रहता है और इसमें फल भी होते हैं। जो यहां के आमजन के साथ साथ जीव-जंतुओं में पानी की कमी और अन्य कई आवश्यक तत्वों की पूर्ति करता है।
इस पेड़ की टहनियां टूथब्रश और पत्ते माउथ फ्रेशनर
प्रो मीणा ने बताया कि इसमें विटामिन सी और कॉर्बोहाइड्रेडस भरपुर मात्रा में पाया जाता है। इतना ही नहीं इस पौधें की हरी टहनियां ग्रामीणों के लिए टूथब्रश और इसके पत्ते माउथ फ्रेशनर की तरह प्रयोग में लाये जाते हैं। इसके अलावा परंपरागत औषधि के रूप में भी इसके फल, फुल, पत्तियों आदि का कई रोगों के उपचार में प्रयोग किया जाता है।
यह फल मानसून की भविष्यवाणी भी करता है
बहरहाल मारवाड़ क्षेत्र में ऐसी मान्यता है कि जिस वर्ष पीलू की जोरदार उपज होती है उस वर्ष मानसून अच्छा होता है। इस वर्ष मारवाड़ में इसकी ज़बरदस्त पैदावार से स्थानीय लोगों को उम्मीद है कि इस क्षेत्र में अच्छी वर्षा होगी। इधर मानसून की चाल भी इस मान्यता को और मज़बूत कर रहा है। (चरखा फीचर)