प्रवेश सिंह भदौरिया। मानसिक तनाव एक ऐसी अवस्था जो सभी के जीवन में कभी ना कभी आती ही है। खुदकुशी करने का मन भी होता है लेकिन यदि आप उस "क्षणिक अवसाद" से बच गये तो मजबूत बनकर ही निकलते हो।मैं यहां अपने छोटे से जीवनकाल को वर्णित कर रहा हूं जिसमें बहुत उतार चढ़ाव आये हैं।
"माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, भोपाल से इंटर की परीक्षा बस प्रथम श्रेणी से जैसे-तैसे पास करने के बाद पीएमटी की परीक्षा की तैयारी का मन बनाया।" कहानी आगे बढ़े पहले परिवार के बारे में बता दूं।जब से याद है तब पिताजी कठोर, अनुशासन का पालन करने वाले एसएएफ में हवलदार थे।वेतन मामूली सी 6000 मासिक मिलती थी।मां गृहणी थीं जो पूरे दिन भर काम करती रहती थीं। नयी साड़ियां बस "करवाचौथ और दिवाली" पर ही मिलती थी उन्हें। मतलब विशुद्ध निम्न मध्यमवर्गीय परिवार जिसमें परिवार के मुखिया का एक सपना था जिसे हम दो भाईयों को पूरा करना था।
"2003 में पीएमटी की तैयारी शुरू की तब हमारे पूरे खानदान में बस भाई ही पीएमटी की तैयारी कर रहे थे।दो साल कब असफलता में निकल गये पता ही नहीं चला। घर में कलेश थोड़ा ज्यादा बढ़ गया जो स्वाभाविक भी था। एक वर्ष बाद भाई हमारे पूरे गांव के इतिहास में दूसरे डॉक्टर बन गये थे जो घर ग्वालियर से बहुत दूर जबलपुर पहुंच गये। अब घर संभालने और सेलेक्ट होने की जिम्मेदारी मुझ पर थी। व्यापम अपने चरम पर था।
परीक्षा फिर से दी मात्र 2 अंक से मेरिट में आने से चूक गया। गांव में बातें होने लगीं कि मुझ पर फालतू में पैसे बर्बाद किए जा रहे हैं कोई दुकान खुलवा दें वही चला लूं काफी है। हिम्मत जबाव देने लगी थी, डिप्रेशन ऐसा कि लगने लगा कि खुदकुशी कर लूं। मरने के लिए घर से निकल भी पड़ा लेकिन फिर सोचा असफलता को जीतने क्यों दूं?
फिर तैयारी करने जुट गया लेकिन फिर वही परिणाम। इस बार 0.012 अंक से सेलेक्ट होने से चूक गया। लगभग सभी दोस्त चयनित हो गये थे। तीन दिन तक कमरे में बंद कर लिया, सोचा क्या करुं? फिर डेंटल मेडिकल कॉलेज में एडमिशन ले लिया। 15 दिन बुझे मन से कॉलेज जाने के बाद मन में ख्याल आया कि मैं ये कर क्या रहा हूं? बोरिया बिस्तर समेटा और वापस ग्वालियर आ गया, फिर से तैयारी करने के लिए। इस बार रैंक आयी वो भी 44.
आज मेरे बड़े भाई सर्जरी से पीजी कर रहे हैं और मैं चिकित्सा शिक्षक की हैसियत से काम कर रहा हूं। परिवार फिलहाल खुश है।" कभी कभी सोचता हूं यदि उस दिन मैं खुदकुशी कर लेता तो परिवार का क्या होता? "मरना आसान है लेकिन जीना जरुरी है,आपके परिवार के लिए"। (शायद अब लेखक का परिचय देने की जरूरत नहीं है। )
मोरल ऑफ द स्टोरी
मोरल ऑफ द स्टोरी यह है कि सक्सेस और अनसक्सेस फिक्स एंड फाइनल नहीं होते। यह चेंज होते रहते हैं। हमें सिर्फ यह देखना चाहिए कि हमारे अंदर ग्रोथ हो रही है या नहीं। दूसरी इंपॉर्टेंट बात यह है कि हमारे पास-पड़ोसी या रिश्तेदार हमारी लाइफ पर कमेंट कर सकते हैं परंतु हमारी लाइफ को कंट्रोल नहीं कर सकते। उनकी तालियां बजाने से प्राउड गालियां देने से डिप्रेशन नहीं होना चाहिए।