हम पिछले लेख में भी ये बता चुके हैं कि दण्ड संहिता के निर्माताओं की दूरदर्शिता एवं सामाजिक समस्याओं के प्रति जागरूकता का उत्कृष्ट प्रमाण हैं जिसके लिए उनकी सराहना की जानी चाहिए। जो वर्तमान में हो रहे छोटे-छोटे बुरे कृत्य जिससे जन-जीवन में सामान्य संकट भी उत्पन्न होता है, उसे अपराध की श्रेणी में रखा गया है। आज के लेख में हम आपको बताएगे अगर कोई व्यक्ति हवा (वायु) को प्रदूषित करता है तो वह भी एक दंडनीय अपराध है।
भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 278 की परिभाषा:-
अगर कोई व्यक्ति द्वारा निम्न कृत्य किये जाते हैं तब वह इस धारा के अंतर्गत दोषी पाया जाएगा-
1. वायुमंडल को प्रदूषित किया जाए।
2.वायुमंडल या हवा को इस प्रकार प्रदूषित किया जाना जिससे जन-साधारण के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो।
3. सार्वजनिक स्थान जैसे शौक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों, दुकानों, वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों, सिनेमा घरों, पार्को, बस-स्टॉप तथा रेल्वे स्टेशनों आदि स्थानों पर धूम्रपान करना दंडनीय अपराध माना जाता है।
【नोट:- न्यायालय द्वारा राज्य सरकार को निर्देश दिए कि वह दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 133(1)(क) के अंतर्गत आदेश जारी करके सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान पर पूर्ण पाबंदी लगाए】
आईपीसी की धारा 278 दण्ड का प्रावधान:-
यह अपराध असंज्ञेय एवं जमानतीय अपराध होते हैं।इनकी सुनवाई किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा हो जाती है। सजा- पांच सौ रुपये के जुर्माने से दंडित किया जाएगा।
उधारानुसार वाद- उच्चतम न्यायालय ने धूम्रपान के कारण जन-स्वास्थ्य को होने वाली गंभीर हानि को दृष्टिगत रखते हुए मुरली देव बनाम भारत संघ के वाद में अभिनिर्धारित किया कि सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान पर पूर्ण रोक लगाई जानी चाहिए क्योंकि तंबाकू तथा इसके कारण उत्पन्न होने वाले रोगों के कारण प्रतिदिन लगभग तीन लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हो रही हैं जो वास्तव मे गंभीर चिंता का विषय है।
बी. आर.अहिरवार होशंगाबाद(पत्रकार एवं लॉ छात्र) 9827737665