मध्यप्रदेश में अध्यापक संवर्गीय शिक्षक साथियों की असामयिक मृत्यु पर मन विचलित हो जाता है क्योंकि शासन द्वारा पुरानी पेंशन और पारिवारिक पेंशन की सामाजिक सुरक्षा की क्रमशः सेवानिवृत्ति और कर्मचारियो की असामयिक मृत्यु पर व्यवस्था नही कि गई है। समूह बीमा और उपादान की स्थिति भी विवादास्पद है। यदि उपादान मिला भी तो राज्य शिक्षा सेवा के प्रावधानों के अनुसार उसकी गणना 1 जुलाई 2018 या उसके बाद ही होना है जिसके कारण शायद संघर्षशील पीढ़ी उपादान की सेवाशर्त पूरी न करने के कारण लाभ से भी वंचित हो जाए?
कर्मचारी की असामयिक मृत्यु पर इसलिए भी चिंता होती है की परिवार का उदर-पोषण करने वाला सदस्य ही इस दुनिया मे नही रहेगा तो उसके परिवार के सदस्यो का क्या होगा? शासन ने एक विवादास्पद नियम और बना डाला कि यदि NPS प्राप्त कर्मचारी की सेवानिवृत्ति के पहले मृत्यु हो जाए तो उसकी NSDL में जमा समस्त राशि राजसात हो जाएगी। परिवार के किसी भी सदस्य को नेशनल पेंशन स्कीम के तहत पेंशन का लाभ नही मिलेगा।
आज अध्यापक हितों के लिए संघर्ष करने वाले अनेक साथी हमारे बीच में नही हैं। वे असमय काल के गाल में समा चुके है। उनके परिवार के सदस्य दाने-दाने को मोहताज हो चुके है। जीवन यापन के लिए संघर्ष कर रहे है। प्रतिष्ठा के विरूद्ध काम करने के लिए बाध्य हो रहे है। ऐसे में अपने दिवंगत साथियो के मदद के लिए राहत कोष की आवश्यकता महसूस की जा रही है। निष्ठुर सरकारो से दिवंगत कर्मचारियो के परिवार के सदस्यो की मदद की अपेक्षा करना व्यर्थ है। हमारे जायज संघर्ष और संवैधानिक मांग को वे निरंतर ठुकराते जा रहे है। क्यो न अध्यापक संवर्गीय शिक्षक ही अपने दिवंगत साथियो के परिवार की मदद के लिए स्वयं ही पहल करे?
यह पुनीत प्रयोग मध्यप्रदेश में सबसे पहले अध्यापक संवर्गीय शिक्षक करे तो हो सकता है NPS के दायरे में आने वाले संवर्गो के लिए यह अनुकरणीय पहल हो जाए। इसके लिए अध्यापक संवर्गीय शिक्षक के वेतन से प्रति माह कम से कम कटौती 10/- रूपये होना सुनिश्चित हो।शासन स्तर पर इसका एक "प्रादेशिक राहत कोष" बने एवं कर्मचारी की असमायिक मृत्यु पर एक फिक्स राशि शासन स्तर से ही इस राहत कोष से दिवंगत कर्मचारी के परिवार के सदस्यो को देय हो। इसका प्रबंधन शासन स्तर पर ही होना चाहिए। इसके लिए सभी अध्यापक संवर्गीय शिक्षक संघो के प्रमुख शासन को लिखकर निवेदन करे।
मै विश्वास दिलाता हूं कि अध्यापक संघर्ष समिति मध्यप्रदेश की इस पुनीत कार्य में आसानी से सहमति बन जाएगी। इसके लिए सभी संघ प्रमुख और प्रांतीय पदाधिकारी एक निश्चित दिनांक को भोपाल में बैठक कर सहमति पत्र बनाकर शासन को सौपे तो हो सकता है शासन इस कार्य में प्रबंधन की सहमति दे दे और अध्यापक संवर्गीय शिक्षको को अपने दिवंगत साथियों के परिवार के लिए बार-बार चंदा भी न मांगना पडे क्योंकि यह देखा गया है कि अधिकांश साथी चंदे के नाम पर कन्नी काटने लग जाते है। रमेश पाटिल
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