भोपाल। मध्यप्रदेश उच्च शिक्षा विभाग के अंतर्गत सूबे के सरकारी कालेजों में अध्यापन कार्य करने वाले अतिथि विद्वानों को किस प्रकार सरकार की गलत नीतियों ने बर्बादी में कगार पर पहुँचा दिया है इसकी बानगी इन दिनों प्रदेश में आसानी से देखी जा सकती है। प्रदेश के उच्च शिक्षित अतिथिविद्वान पिछले दो दशकों से विभिन्न सरकारों से अपने नियमितीकरण की मांग करते आये हैं किन्तु नियमितीकरण तो दूर कई अतिथिविद्वान पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार द्वारा फॉलेन आउट करके बेरोजगार कर दिए गए है।
ताज़ा मामला पीजी कॉलेज खरगोन में पदस्थ फालेन आउट अतिथिविद्वान सुनील चौहान का आया। उल्लेखनीय है कि दिसम्बर 2019 से सहायक प्राध्यापक भर्ती के कारण सुनील चौहान को फालेन आउट करके बेरोजगार कर दिया गया था। तभी से वे आर्थिक तंगी के कारण बेहद परेशान एवं तनावग्रस्त थे और आज उन्होंने आत्महत्या जैसा कदम उठा लिया और अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। अतिथिविद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के संयोजक डॉ देवराज सिंह के अनुसार आज अतिथिविद्वान बेहद बदहाल स्थिति में जीवन यापन कर रहे है।
फालेन आउट होकर बेरोजगार हो जाने से स्थिति और भयावह हो गई है। आर्थिक तंगी और अनिश्चित भविष्य ने अतिथिविद्वानों को अंदर तक तोड़ के रख दिया है। हमने राज्य शासन को हाल ही में पत्र लिखकर अवगत कराया था कि अतिथिविद्वान फालेन आउट होने व कोरोना संकट के कारण आर्थिक रूप से टूट चुके हैं। जहां सरकार सभी कमजोर वर्गों के लिए सहायता कर रही है। इसी तरह सरकार को अतिथिविद्वानों व फालेन आउट अतिथिविद्वानों के लिए भी सहायता करनी चाहिए। जिससे वे इस संकट की घड़ी में अपने परिवार का भरण पोषण कर सकें।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से अतिथि विद्वानों ने फ़िर लगाई गुहार
अतिथिविद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के मीडिया प्रभारी आशीष पांडे के अनुसार हमने दो दशकों तक इस प्रदेश में नियमितीकरण के लिए संघर्ष किया है। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार से वचनपत्र अनुसार नियमितीकरण हेतु हमने लंबा संघर्ष किया है। हमारे संघर्षों के गवाह स्वयं मुख्यमंन्त्री शिवराज सिंह चौहान,तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव,वरिष्ठ भाजपा नेता डॉ नरोत्तम मिश्रा रहे हैं। अतिथिविद्वानों के मुद्दे को विपक्ष में रहते स्वयं शिवराज सिंह जी ने विधानसभा सत्र के दौरान उठाया था।
उन्होंने कहा था कि नियमितीकरण के संघर्ष में शिवराज हमेशा अतिथिविद्वानों के साथ है। अतः हमें आशा ही नही पूर्ण विश्वास है कि मुख्यमंत्रीजी हमारे नियमितीकरण के संबंध में जल्द निर्णय लेंगे।हालांकि वर्तमान में सबसे बड़ी आपदा के रूप में कोरोना संकट सामने है। हम कोरोना से जंग में सरकार के सदैव साथ है। किंतु सरकार को अविलंब फॉलेन आउट अतिथि विद्वानों को सेवा में वापस लेने का निर्णय लेना चाहिए।हमारे अतिथि विद्वान साथी मानसिक अवसाद बेरोजगारी और आर्थिक बदहाली के कारण महामारी नहीं बल्कि आत्महत्या से मरते जा रहे हैं।
दिवंगत अतिथिविद्वान स्व. सुनील चौहान बेरोजगार होने से बेहद अवसाद में थे। इसके अलावा आर्थिक तंगी ने उन्हें परेशान कर रखा था। इसकी चर्चा वे अक्सर अपने मित्रों के बीच किया भी करते थे और आज उन्होंने आत्महत्या जैसा कदम उठाकर मौत को गले लगा लिया। कोरोना संकट व सरकार बदलने से चयन सूची भी अटक गई जिससे बेरोजगार हुए अतिथिविद्वान पुनः सेवा में बहाल नही हो सके। लॉक डाउन ने स्थिति और बिगाड़ दी। जिसकी परिणति इस दुखद घटना के रूप में सामने आयी है।
इस साल में औसत रूप से हर माह एक अतिथि विद्वान फांसी के फंदे पर झूल रहा है। वर्तमान सरकार से भी अभी तक केवल आश्वासन ही मिला है। नई सरकार के गठन के बाद दो अतिथि विद्वानों ने फांसी के फंदे पर झूल कर जान दी। पिछली सरकार के समय से जारी अतिथि विद्वान आत्महत्या का सिलसिला बदस्तूर जारी है। सूबे के मुखिया से अनुरोध है कि तत्काल फॉलेन आउट हुए अतिथि विद्वानों को सेवा में लेते हुए नियमितीकरण करें जिससे आगे ऐसी कोई अप्रिय घटना विद्वानों के साथ न घटे।
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