महामृत्युंजय भगवान भोलेनाथ भक्तों के मनोरथ किस प्रकार से पूरे करते हैं, यह कथा इसी विषय पर केंद्रित है। कथाकार ने कथा को प्रमाणित नहीं किया है परंतु यदि आप शिव में श्रृद्धा रखते हैं तो विश्वास कर पाएंगे कि यह असंभव नहीं था, क्योंकि शिव भक्तों के जीवन में इस प्रकार के अनुभव आते रहते हैं।
सावन का पवित्र महीना शुरू ही हुआ था। 8 साल का एक बच्चा 1 रूपये का सिक्का मुट्ठी में लेकर एक दुकान पर जाकर पूछने लगा,
क्या आपकी दुकान में भगवान मिलेंगे?
दुकानदार ने यह बात सुनकर सिक्का नीचे फेंक दिया और बच्चे को निकाल दिया।
बच्चा पास की दुकान में जाकर 1 रूपये का सिक्का लेकर चुपचाप खड़ा रहा।
ए लड़के.. 1 रूपये में तुम क्या चाहते हो?
मुझे भगवान चाहिए। आपकी दुकान में है?
दूसरे दुकानदार ने भी भगा दिया।
लेकिन, उस अबोध बालक ने हार नहीं मानी। एक दुकान से दूसरी दुकान, दूसरी से तीसरी, ऐसा करते करते कुल चालीस दुकानों के चक्कर काटने के बाद एक बूढ़े दुकानदार के पास पहुंचा। उस बूढ़े दुकानदार ने पूछा,
तुम भगवान को क्यों लेना चाहते हो? क्या करोगे भगवान लेकर?
पहली बार एक दुकानदार के मुंह से यह प्रश्न सुनकर बच्चे के चेहरे पर आशा की किरणें लहराईं, लगता है इसी दुकान पर ही भगवान मिलेंगे! बच्चे ने बड़े उत्साह से उत्तर दिया।
इस दुनिया में मां के अलावा मेरा और कोई नहीं है। मेरी मां दिनभर काम करके मेरे लिए खाना लाती है। मेरी मां अब अस्पताल में हैं। अगर मेरी मां मर गई तो मुझे कौन खिलाएगा ? डाक्टर ने कहा है कि अब सिर्फ भगवान ही तुम्हारी मां को बचा सकते हैं। क्या आपकी दुकान में भगवान मिलेंगे?
हां, मिलेंगे...! कितने पैसे हैं तुम्हारे पास?
सिर्फ एक रूपए।
कोई दिक्कत नहीं है। एक रूपए में ही भगवान मिल सकते हैं।
दुकानदार बच्चे के हाथ से एक रूपए लेकर उसने पाया कि एक रूपए में एक गिलास पानी के अलावा बेचने के लिए और कुछ भी नहीं है। इसलिए उस बच्चे को फिल्टर से एक गिलास पानी भरकर दिया और कहा, यह पानी पिलाने से ही तुम्हारी मां ठीक हो जाएगी।
अगले दिन कुछ मेडिकल स्पेशलिस्ट उस अस्पताल में गए। बच्चे की मां का ऑपरेशन हुआ और बहुत जल्दी ही वह स्वस्थ हो उठीं।
डिस्चार्ज के कागज़ पर अस्पताल का बिल देखकर उस महिला के होश उड़ गए। डॉक्टर ने मुस्कुराते हुए कहा, "टेंशन की कोई बात नहीं है। एक वृद्ध सज्जन ने आपके सारे बिल चुका दिए हैं। साथ में एक चिट्ठी भी दी है"।
महिला चिट्ठी खोलकर पढ़ने लगी, उसमें लिखा था- "मुझे धन्यवाद देने की कोई आवश्यकता नहीं है। आपको तो स्वयं भगवान ने ही बचाया है।
मोरल ऑफ द स्टोरी यह है कि भगवान भक्ति से प्रसन्न होते हैं। भक्तों की निर्मलता और भगवान को प्राप्त करने के उसके प्रयास चाहे कैसे भी हो, सफल जरूर होते हैं। जरूरी नहीं कि भगवान एक बड़े से प्रकाश पुंज से प्रकट हों और 'तथास्तु' कहते हुए आपकी मनोकामना पूरी करें। वह किसी दुकानदार के हृदय में उस समय निवास कर सकते हैं जब बालक एक रुपए लेकर भगवान की तलाश कर रहा हो। यदि मदद दुकानदार ने की होती तो वह उसका श्रेय अवश्य लेता परंतु उसने ऐसा नहीं किया क्योंकि जो कुछ भी किया वह दुकानदार के हृदय में स्थित भगवान भोलेनाथ ने किया।