भारतवर्ष में निवासरत हिंदू संप्रदाय में 16 संस्कारों का विधान है। सीमंतोन्नयन संस्कार इस क्रम का तीसरा संस्कार है। यह संस्कार उस समय किया जाता है जब माता का गर्भ चौथे, छठे या फिर आठवें माह में हो। दरअसल, यह गर्भ में पल रहे शिशु की पाठशाला का विधिवत शुभारंभ है।
सीमंतोन्नयन संस्कार की जरूरत क्या है
सभी जानते हैं कि गर्व के चौथे माह में शिशु के अंग-प्रत्यंग, ह्रदय आदि आकार लेने लगते हैं। हृदय में धड़कन सुनाई देने लगती है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार इसी समय शिशु की जागृति इच्छाएं माता के हृदय में प्रकट होने लगती हैं। मान्यता है कि इस समय यदि गर्भवती माता को अच्छे व्यवहार के साथ सुनियोजित अध्ययन में शामिल किया जाए तो गर्भ में पल रहे शिशु के मन में उसका गहरा प्रभाव पड़ता है।
सीमंतोन्नयन संस्कार का मूल आधार क्या है
भारतवर्ष के प्राचीन हिंदू शास्त्रों के अनुसार भक्त प्रह्लाद की माता कयाधु को देवर्षि नारद जी भगवत भक्ति के उपदेश दिया करते थे। यही उपदेश गर्भ में भक्त प्रहलाद सुना करते थे। इसी प्रकार व्यास पुत्र शुकदेव ने अपनी मां के गर्भ में ही सारा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। महाभारत का प्रसंग तो आपको याद ही होगा। अर्जुन अपनी गर्भवती पत्नी सुभद्रा को चक्रव्यूह को तोड़ने की विधि बता रहे थे, गर्भ में पल रहे शिशु के मन पर उसकी स्थाई स्मृति बन गई। महाभारत युद्ध के समय अभिमन्यु को वही पुनः स्मृति हुई और उन्होंने चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए शस्त्र उठाए।