पौराणिक कथानुसार नर्मदा नदी को भगवान शिव की पुत्री के रूप में जाना जाता है, इसलिए नर्मदा को शांकरी भी कहते हैं। कथानुसार लोक कल्याण के लिए भगवान शंकर तपस्या करने के लिए मैकाले पर्वत पर पहुंचे। उनकी पसीनों की बूंदों से इस पर्वत पर एक कुंड का निर्माण हुआ। इसी कुंड में एक बालिका उत्पन्न हुई। जो शांकरी व नर्मदा कहलाई। शिव के आदेशनुसार वह एक नदी के रूप में देश के एक बड़े भूभाग में रव (आवाज) करती हुई प्रवाहित होने लगी। रव करने के कारण इसका एक नाम रेवा भी प्रसिद्ध हुआ। मैकाले पर्वत पर उत्पन्न होने के कारण वह मैकाले सुता भी कहलाई।
एक अन्य कथा
एक अन्य कथा के अनुसार चंद्रवंश के राजा हिरण्यतेजा को पितरों को तर्पण करते हुए यह अहसास हुआ कि उनके पितृ अतृप्त हैं। उन्होंने भगवान शिव की तपस्या की तथा उनसे वरदान स्वरूप नर्मदा को पृथ्वी पर अवतरित करवाया। भगवान शिव ने माघ शुक्ल सप्तमी पर नर्मदा को लोक कल्याणर्थ पृथ्वी पर जल स्वरूप होकर प्रवाहीत रहने का आदेश दिया। नर्मदा द्वारा वर मांगने पर भगवान शिव ने नर्मदा के हर पत्थर को शिवलिंग सदृश्य पूजने का आशीर्वाद दिया तथा यह वर भी दिया कि तुम्हारे दर्शन से ही मनुष्य पुण्य को प्राप्त करेगा। इसी दिन को हम नर्मदा जयंती के रूप में मनाते है।
आरती उमा घाट जबलपुर
नर्मदा जयंती पर जबलपुर के अतिरिक्त नर्मदा तटों में भक्तों की भीड़ लगी रहती है। वहीं अमरकंटक, मण्डला ,होशंगाबाद , नेमावर और ओंकारेश्वर में भी नर्मदा नदी के घाटों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है तथा अपनी अपनी परम्परा अनुसार नर्मदा जयंती मानते है। जयंती कार्यक्रमों को देखने और इनमें नर्मदा के भक्तों का उत्साह देखते ही बनता है।